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संपादकीय : ‘पापुआ’ देश में मोदी की जय, लेकिन यहां तो लोकतंत्र पर नकेल कस दी!

प्रधानमंत्री मोदी जापान के हिरोशिमा में ‘क्वाड’ परिषद के लिए पहुंच गए हैं। उस क्वाड परिषद में उन्होंने चेताया कि ‘चीन पर नकेल कस देंगे!’ लेकिन चीन पर नकेल कसने का दम उन्होंने दिल्ली से भरा होगा, ये किसी को याद नहीं है।‌ चीन पर नकेल कसेंगे तब कसेंगे, लेकिन देश में लोकतंत्र, संविधान पर नकेल मोदी राज में कसी जा रही है। लोकतंत्र पर नकेल कसकर, उसकी गठरी बनाकर संसद के कोने में रख दिया गया है। देश में ‘हम करें सो कानून’ चल रहा है। जहां भाजपा शासित सरकारें नहीं हैं, वहां सरकारों को काम नहीं करने देना, राज्यपालों के माध्यम से लोकतंत्र और संविधान पर नकेल कसने की समग्र राष्ट्रीय नीति दिखाई दे रही है। मुख्य विषय दिल्ली सरकार का है। यानी केजरीवाल का है। दिल्ली की चुनी हुई केजरीवाल सरकार और वहां के उपराज्यपाल के बीच टकराव मोदी सरकार का खेल है। केजरीवाल को बतौर मुख्यमंत्री काम नहीं करने देना, उनके सभी पैâसलों को उपराज्यपाल द्वारा रोककर रखना, एक साधारण क्लर्क के स्थानांतरण को भी रोक देना और इस प्रकार से लोगों द्वारा चुनी गई सरकार को दबाना। यह सब तय तरीके से किया जा रहा है। दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच चल रहे संघर्ष में सर्वोच्च न्यायालय ने ११ तारीख को दिल्ली सरकार के पक्ष में पैâसला सुनाया था। पैâसला स्पष्ट था। पुलिस, कानून-व्यवस्था और जमीन को छोड़कर देश की राजधानी की सभी सेवाओं का नियंत्रण दिल्ली सरकार को सौंपने का पैâसला सर्वोच्च न्यायालय की ‘खंडपीठ’ ने सुनाया। कोर्ट ने कहा कि जनता द्वारा चुनी हुई सरकार के ये अधिकार हैं और उसमें उपराज्यपाल हस्तक्षेप नहीं कर सकते, लेकिन मोदी सरकार को लोकतंत्र की जय पसंद नहीं आई और सर्वोच्च न्यायालय का पैâसला अस्वीकार करके सर्वोच्च न्यायालय के अवकाश के दौरान, केंद्र ने एक अध्यादेश जारी कर अधिकारियों के तबादलों के लिए एक राष्ट्रीय राजधानी प्राधिकरण की स्थापना की। इस तरह मोदी सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के आदेश को नहीं मानने का स्टैंड लिया। यह अध्यादेश गैर-कानूनी और असंवैधानिक है। दिल्ली जैसे राज्य, देश की राजधानी की सत्ता केजरीवाल ने प्रधानमंत्री की नाक के नीचे से जीती और इसी अहंकार के कारण केंद्र सरकार यह संघर्ष कर रही है।‌ दिल्ली के उपराज्यपाल मनमानी करते हैं। केजरीवाल सरकार ने शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्र में ‘विश्व मान्य’ काम किया है। यह भाजपा शासित एक भी राज्य नहीं कर सके, इस पेटदर्द के कारण संबंधित विभाग का काम देखनेवाले दोनों मंत्रियों सत्येंद्र जैन और मनीष सिसोदिया को केंद्रीय जांच एजेंसियों ने गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया। ये प्रतिशोध की भावना से की गई कार्रवाई है। अगर चुनी हुई सरकार को प्रशासनिक अधिकारियों के तबादले का भी अधिकार नहीं है तो दिल्ली विधानसभा और विधानसभा चुनाव का ‘तमाशा’ किस काम का? दिल्ली महानगरपालिका चुनाव में ‘आप’ ने भाजपा को करारी शिकस्त दी, लेकिन बहुमत होने के बावजूद ‘आप’ को महापौर पद का चुनाव भी मोदी पार्टी ने नहीं कराने दिया और लोकतंत्र में इस अधिकार के लिए भी कड़ा संघर्ष करना पड़ा। इसलिए देश में लोकतंत्र और नागरिक स्वतंत्रता को इस प्रकार ‘गठरी’ बनाए रखना, इसी दौरान वैश्विक मंच पर लोकतंत्र का डंका पीटना, यूक्रेन-रूस के बीच आपसी सौहार्द के बारे में प्रवचन झाड़ना, ‘पापुआ’ नामक ‘पप्पू’ देश में जाकर वहां के प्रधानमंत्री द्वारा चरण स्पर्श करवाना, यह पाखंड है। देश की राजधानी में लोकतंत्र पर नकेल कसी गई है। उसे पहले मुक्त करो और फिर चीन पर नकेल कसने की बात करो। महाराष्ट्र में भी लोकतंत्र और संविधान पर नकेल कसकर ‘पापुआ न्यू गिनी’ छाप सरकार सत्ता पर बिठाई गई और वह भी हमेशा दिल्लीश्वरों के चरण स्पर्श करती रहती है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा महाराष्ट्र सरकार को गैर-कानूनी करार दिए जाने के बाद भी विधानसभा अध्यक्ष कहते हैं, ‘मुझे जो पैâसला लेना है, मैं लूंगा।’ मतलब दिल्ली में भी वैसा ही, जैसा महाराष्ट्र में। कल करारी शिकस्त मिले कर्नाटक में भी वही खेल शुरू होगा। मोदी को व्यक्तिगत और उनकी सरकार को लोकतंत्र, संविधान के प्रति कोई आस्था नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय के पैâसले को कोई अहमियत न देकर उस पैâसले के खिलाफ सरकार अध्यादेश जारी करने लगी है। यह अच्छी बात है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल केंद्र सरकार की इस ‘अध्यादेशशाही’ के खिलाफ तमाम विपक्षी दलों को एकजुट करने का मकसद लेकर देशभर में घूम रहे हैं। लेकिन उनका यह मकसद कांग्रेस के बिना वैâसे पूरा होगा? यह सवाल है। मोदी सरकार ने जो अध्यादेश जारी करके सर्वोच्च न्यायालय की प्रतिष्ठा धूमिल की है, वह तरीका चौंकाने वाला है। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने पैâसले में स्पष्ट कहा है कि संविधान के भाग १४ में प्रशासनिक कर्मचारियों की सेवा के अधिकार को केंद्र और राज्यों के बीच विभाजित किया गया है, जो दिल्ली जैसे केंद्र शासित प्रदेश पर भी लागू होता है। लेकिन आज केंद्र सरकार द्वारा जारी किया गया अध्यादेश दिल्ली सरकार से प्रशासनिक अधिकार छीन लेनेवाला है। प्रशासनिक अधिकारियों के तबादलों के लिए केंद्र सरकार ने एक वैधानिक समिति नियुक्त करने का नाटक किया। इस समिति में दिल्ली के मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव और गृह विभाग के प्रधान सचिव शामिल होंगे। यह बोर्ड बहुमत से जो निर्णय लेगा, उसे लागू किया जाएगा। लेकिन बोर्ड के दोनों अधिकारी केंद्र सरकार के आदेशों का पालन करेंगे और मुख्यमंत्री की राय का कोई मूल्य नहीं होगा। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार को काम करने की आजादी व अधिकार बहाल किया और मोदी सरकार ने उस आजादी पर नकेल कसकर सर्वोच्च न्यायालय की अवहेलना की। मोदी विश्वगुरु हैं। ‘पापुआ’ देश के प्रधानमंत्री उनका पैर छूते हैं, लेकिन मोदी के देश में लोकतंत्र पर नकेल कस दी गई है, उसका क्या? पापुआ के प्रधानमंत्री ने उनका चरण स्पर्श किया। वास्तव में उन्हें साष्टांग दंडवत करना चाहिए था।

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