मोदी सरकार अपनी हर घोषणा और योजना की ‘पब्लिसिटी स्टंट’ करने का कोई मौका नहीं छोड़ती। अगर किसी योजना से आम लोगों को फायदा नहीं भी हुआ हो तो उस योजना का जश्न इतने भव्य तरीके से मनाया जाता है मानो मोदी सरकार ने लाभार्थियों के घर की छतें सोने की बना दी हों। अब जनधन योजना के १० साल पूरे होने पर इस योजना की दशकपूर्ति पर खूब गुणगान किया जा रहा है। देश में जनधन योजना २८ अगस्त २०१४ को लागू की गई थी। अब केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने एलान किया है कि यह योजना पूरी तरह सफल रही है। दशक के मौके पर वित्तमंत्री ने जनधन योजना की विस्तृत जानकारी जाहिर की है। देश में कुल ५३ करोड़ १३ लाख लोगों ने जनधन खाते खोले हैं और २ लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का टर्नओवर हुआ है। इन ५३ करोड़ खातों में से ८० फीसदी ‘एक्टिव’ खाते हैं। इसमें औसत बैलेंस २०१५ के १ हजार ६५ रुपए से बढ़कर ४ हजार ३५२ रुपए पर पहुंच गया है, इस तरह की बड़ाई मारते हुए वित्तमंत्री ने स्वयं ही खुद की भी तारीफ कर ली। जनधन खाते में आधे खाते महिलाओं के होने की भी शेखी बघारी है। पिछले साल वित्तमंत्री ने जनधन योजना को दुनिया की सबसे बड़ी वित्तीय समावेशन योजना, भारतीय मिशन होने की शोशेबाजी की थी। सवाल इतना ही है कि जनधन योजना यानी मोदी सरकार की आर्थिक सफलता के बड़े सबूत के तौर पर जो दिखावा किया जा रहा है वह कितना सच है? यह स्वीकार करते हुए भी कि ५३ करोड़ लोगों ने इस योजना के तहत बैंक खाते खोले हैं, यह पैसा उनका अपना है। उसमें विभिन्न योजनाओं के जो पैसे जमा किए जाते हैं, वह सरकार का यानी जनता का ही है। तो केंद्र सरकार का इससे क्या लेना-देना है? आखिर क्या वजह है कि सरकार इस योजना के नाम पर ढोल पीट रही है? वजह एक ही है। हमेशा की जुमलेबाजी। खाते जनता के हैं, उनमें पैसा जनता का है और श्रेय के गुब्बारे उड़ा रहे हैं शासक। फिर उनमें जो लगभग दो लाख करोड़ रुपए हैं, सरकार इसे वैâसे विनियोजित कर रही है? जनधन योजना का ढोल पीटने वालों को इन सवालों का भी पारदर्शी जवाब देना चाहिए। इस योजना के पीछे का उद्देश्य गरीब लोगों को आर्थिक रूप से साक्षर बनाना था। वो कितना सफल हुआ है? या फिर यहां भी आंकड़ों की बाजीगरी की जा रही है? सरकार ने इस योजना के जो ‘छह स्तंभ’ तय किए हैं उनकी हकीकत क्या है? इस योजना के बाबत बैंकिंग सेवाओं की वैश्विक पहुंच की बात की गई। उसकी स्थिति क्या है? दुनिया की छोड़ो, सरकार का यह दावा कितना सच माना जाए कि देश के ९९ फीसदी गांवों में ५ किलोमीटर के दायरे में बैंक शाखाएं, एटीएम, डाकघर आदि हैं? जनधन योजना की दशकपूर्ति और उस निमित्त ‘करोड़ों के करोड़ों’ उड़ानों का श्रेय लेने वाली मोदी सरकार को अन्य अनुत्तरित सवालों के भी वास्तविक जवाब देने चाहिए। आज भी देश में लगभग ३० प्रतिशत लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं। उनमें से १० साल बाद भी १९ करोड़ लोग जनधन योजना के खाताधारक क्यों नहीं बन पाए हैं? जनधन खातों में ‘धन’ तो बढ़ गया है, लेकिन इस बात का क्या जवाब है कि पिछले १० साल में मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों ने आम लोगों की जेब खाली कर दी है? नोटबंदी ने पहले ही जो था उसे छीन लिया। नौकरियां छीन ली। जीएसटी और महंगाई ने आम आदमी की जेब से बचा-खुचा भी निकाल लिया है। मोदी सरकार ने १० साल में आम आदमी को ‘कंगाल’ बना दिया है, खाते में ‘धन’ है, लेकिन जेब खाली है, जनता की ऐसी हालत बना दी है। वही मोदी सरकार जनधन योजना के दो लाख करोड़ से अपनी पीठ खुद ही थपथपा रही है। जनधन खातों का पैसा जनता का ही है। खैर उसे छोडिए, आप जो विदेश से काले पैसों की बाल्टियां भर कर गरीबों के खाते में १५ लाख रुपए जमा करने वाले थे, उस पर भी अब मुंह खोलिए!