इलेक्टोरल बॉन्ड देश के इतिहास का सबसे बड़ा घोटाला है। मोदी और उनकी पार्टी ने भ्रष्ट कंपनियों से टेबल के नीचे से नहीं, बल्कि सीधे टेबल से हजारों करोड़ रुपए लिए और बदले में उन कंपनियों को बड़े-बड़े ठेके दिए। जाहिर है कि इस आपराधिक स्वरूप के लेन-देन से ‘मनी लॉन्ड्रिंग’ हुई है। इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए भारतीय जनता पार्टी के खाते में सात हजार करोड़ रुपए आए। चुनाव आयोग ने अब ये पैसे देनेवाले दानवीरों की सूची जारी की है। इस बात को लेकर देश मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ का आभारी रहेगा। जब स्टेट बैंक ने इन दानदाताओं की सूची का खुलासा करने से इनकार कर दिया, तो सुप्रीम कोर्ट ने उसे फटकार लगाई। तब जाकर स्टेट बैंक ने यह जानकारी चुनाव आयोग को सौंप दी। लेकिन उसमें भी कुल २२ हजार २१७ इलेक्टोरल बॉन्ड में से सिर्फ १८ हजार ८७१ बॉन्ड की ही जानकारी क्यों दी गई? बाकी ३ हजार ३४६ बॉन्ड छिपाकर क्यों रखे? इन सवालों के जवाब भी जनता के सामने आने चाहिए। बेशक, इस पूरे मामले में भारतीय जनता पार्टी का देशभक्ति और भ्रष्टाचार मिटाने का दिखावा बेनकाब हो गया है। भारत की पार्टी पाकिस्तानी कंपनियों से सैकड़ों करोड़ का फंड लेती है और लोगों को देशभक्ति का पाठ पढ़ाती है। पुलवामा हमले के बाद हब पावर ने भारत के इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदे और उन्हें भारतीय जनता पार्टी को दान कर दिया। अगर यह सच है तो इस बात की जांच जरूरी है कि इस पाकिस्तानी कंपनी ने भाजपा को ही यह दान क्यों दिया और क्या इसका पुलवामा नरसंहार से कोई संबंध है। लगभग १,३०० कंपनियों और निजी व्यक्तियों ने चुनावी बॉन्ड खरीदे और भाजपा को ७,००० करोड़ रुपए का दान दिया। २०१९ से २०२४ की छोटी सी अवधि में यह गोरखधंधा हुआ। लिस्ट में ऐसी कई कंपनियां हैं, जिन्हें भाजपा को दान देते ही सरकार से ठेके मिले। फ्यूचर गेमिंग और होटल सर्विसेज की ४०९ करोड़ की संपत्ति ईडी ने जब्त की थी। यह संपत्ति २ अप्रैल, २०२२ को जब्त कर ली गई थी। कंपनी ने ७ अप्रैल, २०२२ को १०० करोड़ रुपए के चुनावी बॉन्ड खरीदे और भाजपा को फंड दिए जाने पर कंपनी के खिलाफ ‘ईडी’ की कार्रवाई रोक दी गई। खनन क्षेत्र के वेदांता समूह ने ४०० करोड़ रुपए के बॉन्ड खरीदकर भाजपा को दान दे दिया और सरकारी स्वामित्व वाली कंपनी बीपीसीएल वेदांता समूह को मिल गई। जैसे ही मेघा इंजीनियरिंग को मुंबई-ठाणे में ‘बुलेट ट्रेन’ ब्रिज बनाने का काम मिला, इस कंपनी ने भाजपा को भारी फंड दिया। दिसंबर २०२३ में साई इलेक्ट्रिकल्स कंपनी पर ईडी ने छापा मारा था, उसके तुरंत बाद जनवरी २०२४ में इसी कंपनी ने सौ करोड़ के चुनावी बॉन्ड खरीदे और भाजपा को दान कर दिए। ये हजारों करोड़ का बेनामी और काला धन है। इस गंगा में सबसे ज्यादा हाथ ‘नीतिमान’ भाजपा ने धोए हैं। मोदी की लड़ाई कालेधन के खिलाफ थी। २०१४ में भी उनका यही नारा था। वे विदेशी बैंकों में जमा सारा काला धन भारत लाने वाले थे। लेकिन उनके समय में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया भाजपा के काले धन की तिजोरी बन गई। ईडी, सीबीआई का इस्तेमाल कर भाजपा ने बड़ी-बड़ी कंपनियों से पैसा वसूली की। भाजपा के कम से कम ५० बड़े दानदाताओं पर ईडी, सीबीआई और इनकम टैक्स ने छापे मारे। भाजपा के खाते में पैसा जमा करें अन्यथा ईडी की कार्रवाई के लिए तैयार रहें। दाऊद इब्राहिम का गैंग मुंबई में इसी तरह से जबरदस्ती वसूली कर रहा था। जो लोग नहीं देते थे उन्हें ये गिरोह गोली मार देते थे। भाजपा ने वसूली नहीं देनेवालों को जेल में डाल दिया। बाकी मॉडस ऑपरेंडी वही है। छत्तीसगढ़ चुनाव के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पर महादेव गेमिंग ऐप के सिलसिले में छापे मारे गए, लेकिन फ्यूचर गेमिंग गैंबलिंग ऐप की तरफ से साफ दिखाई देता है कि १२०० करोड़ का दान भाजपा की झोली में आया। भाजपा ने कई फर्जी कंपनियां स्थापित कर उनके जरिए करोड़ों के बॉन्ड खरीदने का खेल खेला। जिन कंपनियों का टर्नओवर २०० करोड़ से कम है वे ३०० करोड़ के बॉन्ड खरीदती हैं और भाजपा को दान देती हैं। यह सीधे-सीधे काले को सफेद करने का धंधा है। यह सीधे तौर पर मनी लॉन्ड्रिंग है। भाजपा ने ये मनी लॉन्ड्रिंग की है तो ईडी को भाजपा के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं करनी चाहिए? इलेक्टोरल बॉन्ड सीधे तौर पर भ्रष्टाचार है। उद्योगपतियों को कारोबार देने के बदले में इस प्रकार की ‘चंदा’ वसूली मोदी सरकार का स्याह पक्ष है। वसूली कर ही सरकार ने उद्योगपतियों को बड़े-बड़े काम दिए। सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार के काले कारनामों पर रोशनी डाली। लेकिन इतने बड़े भ्रष्टाचार पर मोदी-शाह बोलने को तैयार नहीं हैं। भाजपा ने बाकी सभी पार्टियों के भ्रष्ट लोगों को अपनी वॉशिंग मशीन में डाल दिया। लेकिन इलेक्टोरल बॉन्ड के भयानक घोटाले का प्रायश्चित मोदी-शाह वैâसे करेंगे? ये मजेदार खेल कम से कम आठ साल से चल रहा था। उद्योगपतियों को ठेका देना और सरकारी कंपनियों को बेचने का मामला अलग है। चंदा लिया यह अलग बात है। भाजपा अब बेशर्मी से कहेगी कि इन दोनों के बीच कोई संबंध नहीं है, जिन ठेकेदारों, उद्योगपतियों ने भाजपा को सैकड़ों करोड़ का चंदा दिया, वे कर्ण के अवतार नहीं हैं। कौरव शब्द के जितने बुरे अर्थ हैं वह सभी अर्थ जिन पर लागू हो सकते हैं वे हैं प्रधानमंत्री और उनके दानवीर। प्रधानमंत्री मोदी ने भ्रष्टाचारियों और भ्रष्टाचार को समर्थन देनेवालों की एक फौज तैयार की है। इस फौज ने देश को लूटा है, सच बोलने वालों को धमकाया है, उनके मुखौटे अब सुप्रीम कोर्ट ने नोच कर उतार दिए हैं।