धनंजय मुंडे ने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है। यह एक नौटंकी है। बीड में एक सरपंच संतोष देशमुख की मुंडे के पोषित गुंडों द्वारा औरंगजेबी तरीके से यानी बेरहमी से हत्या कर दी गई। मुंडे को पहले ही इस हत्या की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दे देना चाहिए था। दरअसल, मुंडे को मंत्रिमंडल से निष्कासित किया जाना चाहिए था। लेकिन मुंडे के प्रकाशित त्याग पत्र के अनुसार, इन सज्जन ने देशमुख हत्याकांड के कारण नहीं, बल्कि चिकित्सीय वजहों के चलते इस्तीफा दिया है। मुंडे के त्यागपत्र की भाषा ‘नैतिकता’ शब्द का क्रूर उपहास है। मुंडे ने मानो बहुत बड़ा त्याग कर दिया हो, वे इस तरह कहते हैं, ‘कल जो तस्वीरें सामने आर्इं, उन्हें देखकर मैं अत्यंत व्यथित हो गया। मामले की जांच पूरी हो चुकी है और कोर्ट में आरोप पत्र दाखिल किया जा चुका है। न्यायिक जांच भी प्रस्तावित है। अपने सदसद्विवेक बुद्धि का स्मरण करते हुए और पिछले कुछ दिनों से मेरी हालत ठीक न होने की वजह से डॉक्टरों ने अगले कुछ दिनों तक इलाज कराने की सलाह दी है इसलिए मेडिकल वजहों के चलते भी मैंने अपने मंत्री पद का इस्तीफा माननीय मुख्यमंत्री को दे दिया है।’ मुंडे का इस्तीफा आंखों में धूल झोंकना और एडजस्टमेंट है! मुंडे ने कहा कि वह बेल्स पाल्सी नामक गंभीर और अजीब बीमारी से पीड़ित हैं। इसलिए वे दो मिनट भी ठीक से नहीं बोल पाते। उनके इस्तीफे के बाद उनकी ओर से दी गई प्रतिक्रियाओं पर नजर डालें तो वह काफी अच्छी तरह बातें कर रहे हैं। तो विश्वास वैâसे करें? फडणवीस, मुंडे और अजीत पवार ने तय किया होगा, ‘हवा गर्म है। मामला ठंडा होने तक आराम करें। फिर देखेंगे कि वैâबिनेट में वापसी हो जाए।’ और इसके बाद इस्तीफा दे दिया गया। इस्तीफे का नैतिक श्रेय लेने का फडणवीस या अजीत पवार के पास कोई वजह नहीं है। अजीत पवार कहते हैं, मुंडे ने
नैतिकता के मुद्दे पर
इस्तीफा दिया, लेकिन मुंडे के इस्तीफे में नैतिकता का कोई जिक्र नहीं है। सिंचाई घोटाले से लेकर जरंडेश्वर तक में खुद अजीत पवार पर आरोप लगे। जब देवेंद्र फडणवीस, प्रधानमंत्री मोदी ने आरोप लगाए थे तब अजीत पवार को ऐसा नहीं लगा कि उन्हें नैतिकता के मुद्दे पर सत्ता का ‘त्याग’ कर देना चाहिए इसलिए मुंडे के हस्तक से नैतिकता की उम्मीद वैâसे कर सकते हैं? दिसंबर २०२४ में संतोष देशमुख का अपहरण कर बेरहमी से हत्या कर दी गई। उन्हें कितनी बेरहमी, अमानवीय से मारा गया, इसकी वीडियो और तस्वीरें आ गई हैं। इन्हें भी चार्जशीट में सबूत के तौर पर रखा गया है। मृतक संतोष देशमुख के चेहरे पर अति आनंद में पेशाब करती हुई तस्वीर राज्य की संस्कृति पर एक धब्बा है महाराष्ट्र की धरती पर ये क्रूर अमानवीयता कहां से आई? इस घिनौने कृत्य के राजनीतिक समर्थक कौन हैं? महाराष्ट्र की राजनीति में पैसे का इस्तेमाल हो रहा है। यह पैसा ठेकेदारों, पैâक्ट्रियों, कंपनियों से रंगदारी वसूल कर आता है और उस वसूली का वितरण दूर-दूर तक किया जाता है। बीड में अवादा कंपनी से रंगदारी वसूलने का विरोध सरपंच देशमुख ने किया। इसीलिए देशमुख को बहुत ही वीभत्स तरीके से हटा दिया गया। हत्या, बलात्कार, रंगदारी अब महाराष्ट्र की नई पहचान है। राज्य में महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं। सार्वजनिक बस स्टेशनों, गांव के मेलों में लड़कियों से छेड़छाड़ होती है और सरकार प्यारी बहनों की बड़ाई में लगी है। माणिक कोकाटे, धनंजय मुंडे, संजय राठौड़, जयप्रकाश रावल जैसे मंत्रियों को बचाकर मुख्यमंत्री नैतिकता के कौन से मानदंड स्थापित कर रहे हैं? जयप्रकाश रावल ने एक सहकारी बैंक को लूट लिया। अपने ही रिश्तेदारों और कंपनियों के नाम पर लोन लेकर
पैसों की लूट
की और बैंक को बर्बाद कर दिया। पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभाताई पाटील की जमीन जबरन अधिग्रहित की गई थी और अब कोर्ट ने रावल को फटकार लगाकर प्रतिभाताई पाटील के पक्ष में पैâसला सुनाया है। फडणवीस को ऐसे चोरों को वैâबिनेट में क्यों रखना चाहिए? इसी राजाश्रय से संतोष देशमुख की हत्या हुई। मुख्यमंत्री फडणवीस ने मुंडे का समर्थन किया, जबकि उन्हें पता था कि मस्साजोग मामले में किसके हाथ खून से रंगे हैं और संतोष देशमुख के खून के छींटे किस मंत्री के कपड़े पर पड़े हैं। ‘अदालत अपना पैâसला करेगी’ उनका रटा रटाया वाक्य है। तो माणिक कोकाटे मामले में अदालत द्वारा ‘भ्रष्ट’ करार दिए जाने और दो साल की सजा सुनाए जाने के बाद भी हम ऊपरी अदालत के पैâसले का इंतजार वैâसे कर सकते हैं? धनंजय मुंडे के इस्तीफे का श्रेय विपक्ष को न मिले इसके लिए सरकार ने फिर उस क्रूर औरंगजेब का इस्तेमाल किया और भाजपा के लाडले अबू आजमी को औरंगजेब पर बयान देने की सुपारी दे दी। भाजपा-शिंदे के निर्देशानुसार आजमी ने विधानमंडल परिसर में औरंगजेब कितना अच्छा प्रशासक था, का प्रशस्ति पत्र दे दिया। आजमी ने जैसे ही औरंगजेब पर बयान दिया, भाजपा ने हंगामा शुरू कर दिया। मुंडे के इस्तीफे पर विपक्ष ने आवाज उठाई तो सत्ता पक्ष से औरंगजेब पर आजमी के बयान पर बवाल शुरू हो गया। विधानसभा हंगामे की भेंट चढ़ गई। राष्ट्रीय स्तर पर ओवैसी और राज्य में आजमी जैसे लोग भाजपा के ‘ब्रांड एंबेसेडर’ हैं। भाजपा का नैतिकता का गुब्बारा मुंडे और आजमी मामले में फटा! मुंडे के इस्तीफे मामले में नैतिकता खुलकर साफ दिखाई दे इसलिए भाजपा के ‘एकलव्य’ अबू आजमी ने बहुत बड़ा काम किया। आजमी द्वारा गाया गया ‘औरंगजेब स्तवन’ सीधे तौर पर सरकार द्वारा प्रायोजित था। लोगों को मूर्ख समझ लिया है क्या?