‘गरीबी और दरिद्रता पूरी मानव जाति पर लगा कलंक है और निराशा का लगा यह अभिशाप हिंदुस्थान की छठी में ही पूजा गया है। फिर वैसे एक बार परिवार पर ज्यादा दरिद्रता आ जाए तो गरीबी किसी इंसान को क्या कुछ करने पर विवश कर देती है, इसका कोई अंदाज नही है। देखिए, वैश्विक क्षितिज पर हिंदुस्थान का सिर अब वैâसे तना हुआ है’, ऐसे हमारे देश के शासक कितनी भी बड़ी बातें करके अपनी पीठ खुद ही थपथपा रहे हैं, लेकिन गरीबी के कारण हृदय विदारक करुण कहानियां जब सामने आती हैं, तब पूरे देशवासियों का सिर शर्म से झुक जाता है। पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी में ऐसी ही एक चौंकानेवाली घटना घटी है। पश्चिम बंगाल के कालियागंज क्षेत्र में रहनेवाले आशिम देबशर्मा नामक गरीब व्यक्ति का लड़का बीमार हुआ और इस पिता ने जैसे-तैसे सिलीगुड़ी के सरकारी अस्पताल का रुख किया। देबशर्मा के पांच महीने के बच्चे का उत्तर बंगाल मेडिकल कॉलेज के अस्पताल में इलाज चल रहा था। इलाज के लिए जुटाए गए सोलह हजार रुपए सप्ताह भर में दवा-पानी पर खर्च हो गए। साथ लाए पैसे भी खत्म हो गए और शनिवार रात को इस बच्चे की मृत्यु हो गई। अब दो सौ किलोमीटर दूरी पर स्थित कालियागंज वापस वैâसे जाएं और बच्चे का शव गांव वैâसे ले जाएं, यह समस्या इस गरीब पिता के सामने खड़ी हो गई। सरकारी निर्णयानुसार १०२ नंबर डायल करने पर मुफ्त एंबुलेंस की सुविधा मिलती है, लेकिन यह सुविधा केवल इलाज के लिए जानेवाले मरीजों तक ही सीमित है। मृत मरीजों का शव ले जाने के लिए मुफ्त सुविधा उपलब्ध नहीं है। बेटे की मृत्यु से शोक में डूबे पिता को एंबुलेंस चालक ने यह उत्तर दिया और बच्चे का शव गांव ले जाने के लिए आठ हजार रुपए खर्च आने की बात कही। बच्चे के उपचार में सारी पूंजी खर्च होने के कारण लाचार पिता ने एंबुलेंस की उम्मीद छोड़ दी और बच्चे का शव सार्वजनिक बस से गांव ले जाने का पैâसला किया। आशिम देबशर्मा ने पांच महीने के बच्चे का शव एक थैली में डाला और थैली में रखे बच्चे का निष्प्राण शरीर बस के अन्य यात्रियों को न दिखे, इसका खयाल रखते हुए उसने सिलीगुड़ी से कालियागंज तक की यात्रा पूरी की, बस के यात्रियों को अपने साथ शव है, इसका पता चल गया तो वे बस से उतार देंगे, ऐसा डर इस गरीब पिता को लग रहा था। इसीलिए इस पूरी यात्रा में उसने किसी को भी भनक नहीं लगने दी। दूसरे दिन एक हिंदी वेबसाइट द्वारा यह खबर प्रकाशित करने के बाद पश्चिम बंगाल में हंगामा मच गया। इसे लेकर राजनीतिक कीचड़ फेंका जाने लगा, एक गरीब पिता ने अपना बेटा गवां दिया। पैसा न होने के कारण बेटे का शव छुपाकर बस से गांव लाना पड़ा। गरीबी के श्राप के कारण उस पिता को दिल पर पत्थर रखकर शव थैली में भरकर लाने का कदम उठाना पड़ा, इसे देखकर हर संवेदनशील दिल में केवल आक्रोश के झटके उठने चाहिए। यह छोड़कर इस पर जो राजनीतिक टीका-टिप्पणी शुरू हुई, उसे दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा। एक तरफ हम वैश्विक महासत्ता बनने की बड़ी बातें करते हैं, आर्थिक महासत्ता बनने की डींगें हांकते हैं, दूसरी तरफ एंबुलेंस के लिए पैसे न होने के कारण हमारे ही देश की गरीब जनता परिवार का शव कंधे पर रखकर ले जाती हुई दिखाई देती है। गरीबी के साथ स्वास्थ्य मशीनरी का कुप्रबंधन और असुविधा के कारण होनेवाली मृत्यु की घटना, यह केवल पश्चिम बंगाल या बिहार, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में ही होती है ऐसा नहीं है, तो महाराष्ट्र जैसे प्रगतिशील राज्य में भी यह अपवाद नहीं है। हाल में मुरबाड़, ओजीवली गांव की सरपंच बारकाबाई हिलम और उनके दामाद को सांप ने काट लिया लेकिन शहर पहुंचने का रास्ता न होने के कारण, उनके इलाज में देरी हुई और उनकी तड़प कर मृत्यु हो गई। पालघर जिले के मोखाड़ा में भी इसी तरह की भयानक घटना घटी। मर्कटवाड़ी की एक महिला को जुड़वां बच्चे हुए, लेकिन अस्पताल ले जाने के लिए रास्ता न होने के कारण दोनों शिशु इलाज के अभाव में मर गए। पालघर जिले में ही धर्मीचा पाड़ा की गर्भवती महिला दर्शना फरले को रास्ते के अभाव में ग्रामीण झोली में भरकर स्वास्थ्य केंद्र ले जा रहे थे कि रास्ते में झोले में ही उसकी प्रसूति हो गई और आंख के सामने ही उसके बच्चे की मृत्यु हो गई। डहाणू तहसील के ओसरविरा की एक महिला की भी समय पर इलाज न मिलने के कारण उसकी और उसके गर्भस्थ शिशु की मृत्यु हो गई। नासिक जिले की पेठ तहसील में पतेले में बैठकर नदी पार करनेवाले विद्यार्थियों, तो वहीं बीड के पाटोदा में थर्माकोल पर बैठकर जानलेवा नदी पार करके स्कूल जानेवाले बच्चों का वीडियो पिछले दिनों सामने आया था। मेलघाट इत्यादि आदिवासी क्षेत्रों में कुपोषण के कारण होनेवाली बाल मृत्यु को हम आज भी नहीं रोक पाए हैं। गरीबी के साथ स्वास्थ्य मशीनरी, यातायात व्यवस्था और सरकारी अनास्था के कारण ये बेवजह बलि जा रही है। दुर्गम क्षेत्रों के बच्चे नदी-नाले पार करके स्कूल जाते दिखाई देते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं को घड़े भर पानी के लिए मीलों-मील मशक्कत करनी पड़ती है। पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी में एक गरीब पिता के पास शववाहिनी के लिए पैसे नहीं थे, इसलिए बच्चे का शव थैली में छुपाकर बस से यात्रा करनी पड़ी, हजारों अरबपतियों के अमीर देश के गरीबों की ये तस्वीर मन खिन्न करनेवाली है, हमारे ही एक देशबंधु पर गरीबी के कारण आया यह समय यानी राजनीतिक मुद्दा नहीं, बल्कि राष्ट्रीय शर्म की बात है। गरीबी का श्राप और कलंक के कारण यह हुआ। अमीरों के सामने मुजरा करनेवाले शासक, नीतिकर्ता गरीबी का कलंक हमेशा के लिए मिटाने के लिए क्या कुछ करेंगे?