धर्म और राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर सबसे ज्यादा लूट-खसोट भारत में चल रही है और इसमें सबसे आगे होते हैं सभी धर्मों के राजनीतिक ठेकेदार। भारत सरकार ने एक नया बिल पेश किया। संसद में वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक पेश करते हुए कानून मंत्री किरण रिजिजू ने कहा कि वक्फ बोर्ड माफियाओं की चंगुल में है। अब यह माफिया दरअसल कौन है? इसकी जानकारी पत्रकार मनीष सिंह ने सोशल मीडिया पर दी है। माफिया कौन है? इस सवाल का सीधा सा जवाब यह है कि वक्फ एक्ट १९४५ में आया था। इस पर १९९५ में संशोधन किया गया। जिसके मुताबिक, इस बोर्ड का अध्यक्ष एक केंद्रीय मंत्री होता है। इसके अन्य तीन सदस्य राष्ट्रीय स्तर के मुस्लिम संगठनों के प्रतिनिधि होते हैं और उनका चुनाव सरकार करती है। बोर्ड के अन्य चार सदस्य राष्ट्रीय स्तर के विद्वान, मैनेजमेंट, एकाउंट और कानून के विशेषज्ञ होते हैं और उनकी नियुक्ति सरकार करती है। इसके अन्य तीन सदस्यों में दो लोकसभा और एक राज्यसभा सदस्य होते हैं और सरकार द्वारा नियुक्त किए जाते हैं। इसके अलावा, अन्य दो सदस्य हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश होते हैं। अब सवाल यह है कि अगर देश के मौजूदा कानून मंत्री को लगता है कि ये सभी लोग माफिया हैं, चोर हैं तो जिम्मेदार कौन है और सरकार ऐसे मान्यवर माफियाओं को वक्फ बोर्ड में क्यों नियुक्त कर रही है? वक्फ बोर्ड के सूत्र पूरी तरह सरकार के हाथ में हैं। वक्फ बोर्ड के पास बड़ी मात्रा में जमीन, संपत्ति है और उसका नियम है कि इसका इस्तेमाल धार्मिक और सामाजिक उद्देश्यों के लिए किया जाना चाहिए। यदि इन नियमों को तोड़ा गया है और सरकार प्रायोजित माफियाओं द्वारा भ्रष्टाचार किया गया है, तो सरकार ने उनके खिलाफ क्या कार्रवाई की है? वक्फ बोर्ड की जमीनों में ‘फेरबदल’ किया गया और उन पर कब्जा कर लिया गया। उन पर आलीशान महल बनाने वाले कौन हैं? सरकारी स्तर पर किसने किस तरह मदद की? लोगों को इस माफियागीरी के बारे में जानकारी मिलनी चाहिए। ऐसी जमीन पर कई फाइव स्टार होटल खड़े हैं और उनमें से कई गैर-मुस्लिम हैं। सरकार वक्फ बोर्ड एक्ट में संशोधन करना चाहती है और इसके लिए नया बिल लाया जा रहा है। यदि यह सब धार्मिक भूमि की हेराफेरी है, तो इस हिंदू, जैन, पारसी धार्मिक संस्थानों में हेराफेरी और माफियागीरी पर सरकार ने क्या कठोर कदम उठाए? राम मंदिर ट्रस्ट ने अयोध्या क्षेत्र में अपने ही लोगों की जमीनें खरीदीं और इसके बदले ट्रस्ट ने भाजपा के लोगों को सैकड़ों करोड़ का फायदा पहुंचाया। अयोध्या के मेयर ने इस लेन-देन में अपने हाथ धो लिए। अभी एक मामला सामने आया है। अयोध्या में भारतीय सेना की १३ हजार एकड़ जमीन उद्योगपति गौतम अडानी और लाड़ले ‘बाबा’ रामदेव और रविशंकर को दिए जाने की खबर चिंताजनक है। क्या यह लेन-देन भारतीय सेना के सशक्तीकरण के लिए किया गया? इस भूमि पर जवानों के लिए प्रशिक्षण और फायरिंग रेंज हैं। सेना द्वारा आरक्षित भूमि को प्रâी कराकर सरकार के तीन चहेतों को दे देना कोई माफियागीरी नहीं है। धारावी पुनर्वास के नाम पर मुंबई के २० भूखंड लाड़ले अडानी को दिए जाना है। क्या देश के कानून मंत्री इस लूट को रोकने के लिए कोई नया कानून पारित करेंगे? केदारनाथ मंदिर से ५०० किलो सोना गायब होने का खुलासा शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने किया। इस केदारनाथ मंदिर के ‘वक्फ बोर्ड’ में भाजपा से जुड़े लोगों को नियुक्त किया गया है और उन्होंने मंदिर को लूटा है। ये सभी मुद्दे गंभीर हैं, लेकिन सरकार लोगों को गुमराह कर उनका ध्यान वक्फ बोर्ड की ओर भटका रही है। सरकार वास्तव में किसकी खुशामदी करना चाहती है? धर्म के ठेकेदारों और धर्म के नाम पर माफियागीरी करने वालों पर नकेल कसनी चाहिए, लेकिन अगर यह ठेकेदारी और माफियागीरी खुद सरकार करे तो धर्म बदनाम होता है। हिंदू-मुस्लिम झगड़े शुरू कर महाराष्ट्र और हरियाणा के चुनाव में जनता के सामने जाने की सरकार की यह नीच चाल है। मूलत: इस वक्फ बोर्ड कानून को लेकर सरकार में एक राय नहीं है। चंद्रबाबू नायडू ने इस कानून का विरोध किया तो नीतीश कुमार इस सवाल पर कमर की धोती सिर पर लपेट कर तटस्थता की ‘बांग’बाजी करने लगे हैं। इसलिए नया वक्फ बोर्ड कानून चर्चा के लिए संसद की संयुक्त समिति के पास गया। फिर भी सवाल मुंह बाए खड़ा है। वक्फ बोर्ड में माफिया कौन है और उनकी नियुक्ति कौन करता है? दूसरे धर्म के माफियाओं का सरकार क्या करेगी? क्या कोई इन सवालों का जवाब देगा?