मानव स्वभाव की कोई दवा नहीं है। इसलिए प्रधानमंत्री मोदी ऐसा ही व्यवहार क्यों करते हैं? इस सवाल का जवाब ढूंढ़ने का कष्ट किसी को नहीं करना चाहिए। नए संसद भवन की इमारत का उद्घाटन भव्य तरीके से संपन्न हुआ। यह समारोह मतलब ‘सब कुछ मोदी और सिर्फ मोदी’, ऐसा ही था। फोटो और अन्य फिल्मांकन में किसी और की छाया भी मोदी ने आने नहीं दी। मोदी का यही स्वभाव है। राष्ट्रपति ने नए संसद भवन का उद्घाटन किया होता, उनके साथ लोकसभा के अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति, दोनों के बीच में प्रधानमंत्री मोदी और उनके दाहिनी ओर विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ऐसी तस्वीर उस लोकतंत्र के मंदिर में दिखी होती, तो मोदी की महानता कम नहीं हुई होती। मोदी ने ये सब किया होता तो मोदी बदल गए ऐसा दुनिया को लगा होता, लेकिन अपना स्वभाव बदल दे तो वो मोदी वैâसे? मोदी, मोदी की ही तरह व्यवहार करते हैं। उन्होंने वैसा ही व्यवहार किया। राष्ट्रपति नहीं, उपराष्ट्रपति नहीं, विरोधी पक्षनेता नहीं। लोकसभा अध्यक्ष बिर्ला को मजबूरी में साथ रखा। ‘नए संसद भवन का उद्घाटन हो रहा है…’ ऐसे निमंत्रण की आवाज लगाने के लिए कोई तो चाहिए। तो इसीलिए ओम बिरला साहब थे, ऐसा ये पूरा कारभार है। मोदी २०१४ में देश के प्रधानमंत्री बने तब उन्होंने खुद एलान किया कि ‘देश का संविधान ही एकमात्र पवित्र ग्रंथ है। उस पवित्र ग्रंथ का सम्मान हमारी सरकार करेगी।’ मोदी ने प्रधानमंत्री के पद पर बैठने से पहले पहली बार संसद में प्रवेश किया तब बेहद भावुक होते हुए संसद की सीढ़ियों पर माथा टेककर आंसू बहाए। इस संसद की पवित्रता की रक्षा करूंगा, सबको समान न्याय दूंगा और उसके लिए संसद को बल दूंगा, ऐसा उनका मन उनसे कह रहा होगा, लेकिन महज आठ वर्षों में उसी संसद में उन्होंने ताला जड़ दिया और अपनी इच्छानुसार संसद की नई इमारत खड़ी की। किसी महाराज द्वारा अपने राजमहल के वास्तु में किए जाने की तर्ज पर उद्घाटन समारोह आयोजित किया। लोकतंत्र के इस मंदिर से राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा में विपक्ष के नेता अदृश्य थे, तो फिर उस उद्घाटन समारोह में कौन उपस्थित था? नए संसद भवन के समारोह में ज्ञान, विज्ञान और प्रौद्योगिकी की धज्जियां उड़ाते हुए अंधश्रद्धा और कर्मकांड को महत्व देने वालों की भरमार थी। राजदंड भी अब आ गया। मतलब एक तरह से अब राजशाही शुरू हो गई। दिल्ली में लोकतंत्र के नाम पर नई बादशाही का राजदंड पहुंच गया है। विज्ञान और संशोधन न माननेवाले लोगों के घेरे में मोदी आ गए, उन्होंने कर्मकांड किए। इसे हिंदुत्व कहें या राज्याभिषेक समारोह? हिंदुत्व में श्रद्धा है अंधश्रद्धा नहीं। भारतीय संसद का ये कौन-सा रूप हम दुनिया को दिखा रहे हैं? राष्ट्रपति को निमंत्रण नहीं, लेकिन असंख्य साधु व मठाधीशों को नए संसद भवन के वास्तु शांति में बुलाया गया। एक हजार करोड़ का ‘महल’ लहरी राजा के इच्छा की खातिर बनाया गया और इससे लोकतंत्र ही निर्वासित हो गया, ऐसा इतिहास में दर्ज होगा। दिल्ली में मोदी राज आने के बाद से संसद का कामकाज लगभग बंद ही रहता है। पंडित नेहरू के दौर में लोकसभा का कामकाज साल में कम से कम १४० दिन चलता था। अब यह ५० दिन भी नहीं चलता। फिर न चलाई जाने वाली संसद के लिए एक हजार करोड़ का भव्य संसद भवन किसलिए? प्रधानमंत्री नेहरू ने अपना अधिकांश समय संसद के दोनों सदनों में उपस्थित रहकर, विपक्ष के नेताओं के भाषण सुनने में बिताया। नेहरू प्रश्नोत्तर काल में भी नियमित रूप से उपस्थित होते थे और सदस्यों के अनेक प्रश्नों के उत्तर स्वयं देते थे। प्रधानमंत्री मोदी प्रश्नोत्तर काल में कभी भी उपस्थित नहीं रहे और सवालों के जवाब देने का तो प्रश्न ही नहीं खड़ा हुआ। चर्चा से वे लगातार दूर भागते रहे। संसद में तब सभी विषयों पर चर्चा होती थी व प्रधान मंत्री ने चर्चा को उत्साहित करते थे। आज विपक्ष ने अड़चनों के मुद्दे पर चर्चा की मांग की तो सत्ताधारियों द्वारा ही संसद बंद करा दी जाती है। विरोधी बेंचों पर सदस्यों के साथ सौतेला बर्ताव किया जाता है। ये लोकतंत्र की तस्वीर नहीं। कल मोदी ने कहा कि नया संसद भवन अर्थात लोकतंत्र का मंदिर है। ये मंदिर भारत के विकास की दिशा प्रशस्त करके करोड़ों जनता को सामर्थ्य प्रदान करे!’ लेकिन संसद का ‘मारकर’ कर, विज्ञान का मार्ग छोड़कर विकास वैâसे होगा? नए संसद भवन का उद्घाटन वैदिक विधिनुसार हुआ। मोदी ने लोकसभा में संगोल की यानी राजदंड की स्थापना की, लेकिन देश के राज-काज के कार्य में राजधर्म का ही पालन नहीं होता होगा तो वह शोभा का राजदंड किस काम का? मोदी सरकार के काल में देश में सार्वजनिक उपक्रम, हवाई अड्डे, बंदरगाह सब कुछ मोदी के मित्रों के हवाले किया गया। मोदी मित्र अडानी ने देश को वैâसे लूटा, इसकी कहानियां प्रसारित हुर्इं, लेकिन विपक्षी पार्टियों द्वारा उस लूटमार पर चर्चा की मांग करते ही संसद बंद कर दी गई। कल इस नई संसद को चलाने के लिए मोदी के उद्योगपति मित्रों के हवाले की जाएगी। देश में आज भय का माहौल है। सरकार को जिनसे डर लगता है उनके घर पुलिस व ईडी पहुंचती है और उनकी गिरफ्तारी होती है। इस जुलुम शाही के विरोध में आवाज उठाने की सुविधा संसद में नहीं। फिर संसद का नया महल किस काम का? ऐतिहासिक संसद पर ताला लगाकर, प्रधान मंत्री मोदी ने अपने नीजि वास्तु होने की तर्ज पर शान एक नया भव्य संसद भवन बनवाया। उस महल में बोलने की स्वतंत्रता नहीं होगी तो उसे लोकतंत्र का मंदिर मत कहिए। उस महल में सरकार को तीखे सवाल पूछने की इजाजत नहीं होगी तो ‘सत्यमेव जयते’ का बोर्ड नीचे उतार दो। उस महल में राष्ट्रीय मुद्दों पर दहाड़ लगाने से रोकने वाले होंगे तो संसद के गुबंद पर से तीन सिंहों के ‘भारतीय प्रतीक’ को ढंक कर रखें! नया संसद भवन मतलब बादशाह का महल नहीं। देश की आशाओं-आकांक्षाओं का वो प्रतीक है। यह सिर्फ पत्थर, र्इंट, बालू से बनी नक्काशीदार इमारत नहीं। उस इमारत में देश के लोकतंत्र के पांच प्राण समाहित हैं। हम उस मंदिर को साष्टांग नमन कर रहे हैं! मोदी ने अपने स्वभाव के अनुसार बर्ताव किया। देश को अपना कर्तव्य निभाना होगा।