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संपादकीय : बारामती के नए विष्णुदास!

महाराष्ट्र में रंगमंच की एक महान परंपरा है। नाटक और राजनीति का शौक पहले से मराठी मन से जुड़ा रहा है। नाट्यकर्मियों और राजनीतिकों ने मराठी माणुस के इस शौक को सहेजते हुए उनके मन को रिझाए रखा है। इस थिएटर मंडली में अब अजीत पवार की नाटक कंपनी भी जुड़ गई है। नाटककार अजीत पवार ने हाल के दिनों में ‘काका के पीठ में खंजर’, ‘मैं किसी का भी नहीं’, ‘जिसका खाओ नमक उसका…’, ‘घर के बाहर’ जैसे नाटकों का निर्माण किया है। हालांकि, ‘राजभवन की सुबह’, ‘पानी हुआ बारामती का स्वाभिमान’ जैसे उनके नाटकों को गुजरात और नागपुर के डायहार्ड पैंâस भी मिले। अर्थात अपने विंग की करामतों की जानकारी अब खुद नटवर्य अजीत पवार ने दी है। अजीत पवार फिलहाल महायुति के दो नाटक ‘हॉर्स ट्रेडिंग’ और ‘मेरा ही वस्त्रहरण’ में साइड रोल निभा रहे हैं। ये भूमिकाएं उन्हें कैसे मिलीं और उसके लिए उन्हें दिल्ली के ‘राष्ट्रीय अभिनय केंद्र’ में जाकर किस तरह ‘स्क्रीन टेस्ट’ आदि देना पड़ा, इसका खुलासा नटवर्य अजीत पवार ने किया। दिल्ली के ‘तटकरे’ मोबाइल स्टेज पर एक गपशप कार्यक्रम में उन्होंने अपने नाट्य जीवन के कई किस्से पत्रकारों को सुनाए। नाटक ‘काका के पीठ में खंजर’ के शुरू होने से पहले अजीत पवार को नियमित रूप से रिहर्सल के लिए दिल्ली जाना पड़ता था। अजीत पवार को रिहर्सल मास्टर अमित गुजराती के नेतृत्व में कठोर प्रशिक्षण से गुजरना पड़ा। इसके लिए वह वेश बदलकर और नाम बदलकर दिल्ली जाते थे। ये रिहर्सल गुप्त थे। अक्सर काले रंग का मास्क, विभिन्न प्रकार की टोपियां, नकली दाढ़ी-मूंछ आदि लगाकर उन्होंने साधारण विमान से मुंबई-दिल्ली, दिल्ली-मुंबई की यात्रा की। इस ड्रेस में उन्हें कोई नहीं पहचानता था। एक जमाने में आचार्य अत्रे के मशहूर नाटक ‘तो मी नव्हेच’ (वो मैं नहीं) में ऐसे ही कई तरह के ठगों का किरदार निभाकर प्रभाकर पणशिकर ने धमाल मचा दिया था। इससे पणशिकर का किरदार ‘लखोबा लोखंडे’ (ठग लोखंडे) सभी की जुबान पर चढ़ गया था। क्या अजीत पवार ने भी ‘लखोबा लोखंडे’ (ठग लोखंडे) को अपना आदर्श मान लिया? हवाई यात्रा में अजीत पवार ने अपना नाम बदला। नाम बदलने का मतलब है पहचान पत्र के लिए जरूरी आधार कार्ड, पैन कार्ड भी ‘नकल’ की और यहीं पर असली रहस्यभेद है! पवार, ए. ए. पवार नाम से यात्रा कर रहे थे और उन्होंने इसके लिए जाली पहचान पत्र बनाए होंगे तो यह हवाईअड्डों की सुरक्षा तंत्र में छेद है। एक इंसान अपनी पहचान छुपा कर यात्रा कर सकता है और उसने अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से यह यात्रा की। इसमें मुंबई, दिल्ली जैसे संवेदनशील अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे शामिल हैं। अगर राज्य के उपमुख्यमंत्री इस तरह से ए.ए. पवार के नाम से पहचान छिपाकर यात्रा करते होंगे और देश के गृहमंत्री से इस तरह लगातार मिल रहे होंगे, तो इसका मतलब है कि गृहमंत्री शाह भी राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। देश के गृहमंत्री ने अपने राजनीतिक स्वार्थ और राजनीति के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा का बाजार लगा दिया है। अजीत पवार को जेड लेवल की सुरक्षा मिली हुई है। इसलिए गृहमंत्री फडणवीस की कार्यप्रणाली पर भी संदेह खड़ा होता है। फडणवीस, पवार और अमित शाह ने मिलकर राष्ट्रीय सुरक्षा को ताक पर रख दिया। नीरव मोदी, मेहुल चोकसी ने इसी तरह ‘नकली’ तरीके से मुंबई-दिल्ली यात्रा तो नहीं की होगी? अगर अमित शाह, फडणवीस के कार्यकाल में दाऊद इब्राहिम, टाइगर मेमन, छोटा शकील, जाकिर नाईक भी आ-जा रहे होंगे, तो क्या कहा जा सकता है? अजीत पवार यानी ए.ए. पवार को इस तरह यात्रा करने की सुविधा देने वाले देश के भगोड़ों को एयरपोर्ट पर वैâसे रोकेंगे? पवार के नाटक से पर्दा उठते ही राष्ट्रीय सुरक्षा की धज्जियां उड़ने से खतरे की घंटी बज गई। इससे पहले महाविकास आघाड़ी की सरकार को गिराने के लिए आधी रात के बाद वेश बदलकर देवेंद्र फडणवीस और श्रीमान शिंदे मिलते थे। ये बात दोनों ने ही कही। फडणवीस का वेश बदलाव तो इतना पक्का था कि श्रीमती फडणवीस तक ​भी उन्हें पहचान नहीं पार्इं। नाटक में यह दक्षता काबिल-ए -तारीफ है। हालांकि, महाराष्ट्र फडणवीस-लाचार शिंदे को जानता था फिर भी श्रीमती फडणवीस अपने पतिराजा को नहीं पहचान पार्इं और इसलिए ‘संशय कल्लोळ’ (संदेह का बवंडर) नाटक नहीं चला। शिंदे ने भी दिल्ली जाकर छिप छिपाकर नाटक किए और उनके रिहर्सल मास्टर भी अमित गुजराती थे। उसी दौरान शिंदे मौलवी के वेश में दिल्ली जाते थे, ऐसा उनके लोग कहते हैं। महाराष्ट्र का रंगमंच प्रेम जगजाहिर है, लेकिन विष्णुदास भावे द्वारा ईसवी सन् १८४३ में स्थापित रंगमंच और अब इन दिल्लीदासों द्वारा स्थापित रंगमंच में अंतर है। दिल्ली में वेश और नाम बदलकर यात्रा करने वाले राज्य के उपमुख्यमंत्री नटवर्य अजीत पवार को उनकी नाटकीय कार्यकाल के लिए विष्णुदास भावे स्वर्ण पदक दिया जाए, ऐसी सिफारिश महाराष्ट्र की सरकार कल कर सकती है, लेकिन ए.ए. पवार नामक नटवर्य ने अमित शाह की मदद से राष्ट्रीय सुरक्षा की जो धज्जियां उड़ाई हैं, उसकी जांच होनी ही चाहिए। ये इस बात का उदाहरण है कि क्यों लद्दाख में चीन और कश्मीर में पाकिस्तानी आतंकवादी घुस रहे हैं। देश के गृह मंत्रालय के बाड़ ही खेत खा रहे हैं!

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