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संपादकीय : न खलबली, न हलचल!

भारतीय अर्थव्यवस्था के साथ जो खेल-खिलवाड़ चल रहा है, उसका इतिहास में कोई तोड़ नहीं है। भारतीय रिजर्व बैंक ने दो हजार रुपए के नोट को चलन से वापस लेने का अचानक फैसला लिया है। पहली नोटबंदी का बटन प्रधानमंत्री मोदी ने खुद न्यूज चैनलों पर आकर दबाया था‌। उन्होंने करेंसी से पांच सौ और एक हजार के नोट रद्द कर दिए और हाहाकार मच गया। मोदी रात आठ बजे टीवी पर प्रकट हुए और अगले दिन से उन्होंने पूरे देश को नोट बदलने के लिए बैंकों की कतार में खड़ा कर दिया। उस कतार में देशभर में चार हजार से अधिक लोगों की मौत हो गई और नोटबंदी से रत्तीभर भी फायदा नहीं हुआ। इसके विपरीत लघु उद्योग, छोटे व्यापारी बर्बाद हो गए। नौकरियां चली गईं। मोदी ने कहा कि काला धन बाहर आएगा। उल्टा काला धन और बढ़ गया। उन्होंने दावा किया था कि नोटबंदी से आतंकवादियों को पैसे की आपूर्ति बंद हो जाएगी। दरअसल, हुआ इसके उलट। मोदी ने एक हजार का नोट चलन से रद्द कर दिए और दो हजार का गुलाबी नोट लाए। इसलिए हजार-पांच सौ की होनेवाली रिश्वत दो हजार के नोट तक पहुंच गई, यही नोटबंदी का फायदा है। अब मोदी ने ‘लहर’ आई इसलिए दो हजार के नोट भी रद्द कर दिए। यह निर्णय भारतीय रिजर्व बैंक ने घोषित किया। हमारे देश के न्यायालय, संवैधानिक संस्थाएं, चुनाव आयोग जहां स्वतंत्र और निष्पक्ष नहीं रहे हैं, वहां ‘भारत का रिजर्व बैंक’ दो हजार के नोट के मामले में क्या स्वतंत्र निर्णय ले सकता है? दो हजार की नोटबंदी का निर्णय पूरी तरह से राजनीतिक है। पहली नोटबंदी के समय जिस आदर्श भावना से नोटबंदी लादी गई थी, वही तरीका इस बार भी है।‌ विपक्षियों के पास २०२४ के दृष्टिकोण से जो थोड़ी-बहुत दो हजार रुपए के नोट की मुद्रा बची है तो वह रद्द हो जाए और विपक्ष दिक्कतों में आ जाए, इसके अलावा दूसरा हेतु नहीं हो सकता। कर्नाटक के चुनाव में सत्ताधारियों की ओर से दो हजार की गुलाबी नोट का अंधाधुंध उपयोग किया गया, लेकिन दो हजार की मात्रा नहीं चली। इस चिढ़ से भी ‘दो हजार के नोट रद्द’ का निर्णय हो सकता है। दो हजार की नोटबंदी लोकसभा चुनाव की पहली घंटी है। देश के चलन में दो हजार की नोट कितने हैं और लोगों ने उसमें से कितना छुपा रखा है? यह एक रहस्य है। इन सभी नोटों को सितंबर तक बाहर निकालना है। बैंकों में एक बार में केवल २० हजार तक इन गुलाबी नोटों को जमा किया जा सकता है। मोदी के अंधभक्तों को यानी एक अजीबोगरीब रसायन कहना होगा। एक हजार के नोट रद्द करके दो हजार के नोट चालू करना एक मास्टर स्ट्रोक था और अब दो हजार के नोट अचानक बंद करना भी अंधभक्तों के लिए मोदी का मास्टर स्ट्रोक ही है। ऐसा पाखंड व दोहरापन केवल अंधभक्त ही कर सकते हैं। दो हजार के नोट चालू करके मोदी आतंकवाद की कमर तोड़नेवाले थे और अब वही दो हजार के नोट बंद करके मोदी देश की अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ रहे हैं। क्योंकि मणिपुर से जम्मू-कश्मीर तक आतंकवाद की कमर कतई नहीं टूटी है। हिंसा और आतंकवाद जारी है। लगता है, देश की अर्थव्यवस्था को पूरी तरह से गड्ढे में डालने का इरादा ही मोदी ने कर रखा है। २०१६ की विनाशकारी नोटबंदी के बाद दो हजार रुपए के नोट छापने पर करोड़ों खर्च किए गए। वे सारे खर्चे पानी में बह गए। नोट दो हजार की छपे या पांच हजार के नोट छपे, इससे क्या फर्क पड़ता है? डॉलर के मुकाबले रुपया सबसे निचले स्तर पर आ गया है। ८५ रुपए प्रति डॉलर की स्थिति है। १० साल पहले जब मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे, तब डॉलर की कीमत ४५ रुपए थी, आज ८५ रुपए है। यह हमारी आर्थिक महाशक्ति है! मोदी अर्थव्यवस्था के साथ निर्ममता से खेल रहे हैं, यह गौतम अडानी मामले में भी दिखाई दिया। देश के सारे सार्वजनिक उपक्रम मोदी ने अडानी की जेब में डाल दिए। हवाई अड्डों से लेकर बंदरगाहों तक, सारी राष्ट्रीय संपत्ति आज गौतम अडानी की हो गई है। सार्वजनिक बैंकों, एलआईसी जैसे उपक्रमों का पैसा भी उन्होंने अडानी जैसे मित्रों को दे दिया। वे भूल गए हैं कि वे मालिक नहीं बल्कि राष्ट्रीय संपदा के ट्रस्टी हैं। प्रधानमंत्री की आज आम जनता के बीच कोई प्रतिष्ठा नहीं बची है। सभी राष्ट्रीय कार्यों को बगल में रखकर, प्रधानमंत्री कर्नाटक के चुनाव, सभा व रोड शो करते हैं और आखिर में उनकी पराजय होती है। उस हार की चर्चा को कम करने के लिए एक रात में दो हजार रुपए की नोटबंदी की घोषणा कर दी जाती है, लेकिन उनके इस पैâसले से इस बार न कोई खलबली मची, न हलचल। हालांकि, ५० खोके वालों के दुख में शामिल होना होगा। उन्हें खोके में गुलाबी धन मिला होगा। उनकी भागमभाग को समझना होगा, बस इतना ही।

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