अब तक मोदी सरकार द्वारा घोषित हर योजना ‘नाम बड़े और दर्शन खोटे’ वाली ही निकली है। प्रधानमंत्री मोदी योजना की घोषणा करते समय वादे खूब करते हैं। वे दिखावा करते हैं कि देश में क्रांति हो जाएगी। जनता के सामने तस्वीर भी इसी तरह तैयार की जाती है; लेकिन हकीकत में वह योजना आम लोगों के लिए ‘आंख से अंधा नाम नयनसुख’ साबित होती है। मोदी सरकार की हर योजना का यही हाल है। ऐसी ‘असफल’ योजनाओं में अब एक और योजना जुड़ गई है। इस योजना का नाम ‘जल जीवन मिशन’ है और इस मिशन के ढोल की पोल महाराष्ट्र के एक मंत्री महोदय ने ही खोल दी है। राज्य के खाद्य एवं औषधि प्रशासन मंत्री नरहरि झिरवाल ने मोदी सरकार के ‘ड्रीम प्रोजेक्ट’ की कलई खोलते हुए कहा है कि ‘जल जीवन योजना इस समय पूरी तरह से विफल हो गई है और इसके कारण मौजूदा जल संकट के दौरान ग्रामीण लोगों और आदिवासियों को पानी के लिए भटकना पड़ रहा है।’ १५ अगस्त २०१९ को प्रधानमंत्री मोदी ने ‘जल जीवन मिशन’ योजना की घोषणा की थी। इस योजना का उद्देश्य देश के ग्रामीण इलाकों में हर घर को पीने का पानी उपलब्ध कराना था। जब इस योजना की घोषणा की गई थी तब देश के ग्रामीण इलाकों में केवल ३.२३ करोड़ घरों में ही
नल द्वारा जल आपूर्ति
की जा रही थी। जल जीवन मिशन के माध्यम से यह घोषणा की गई थी कि २०२४ तक लगभग १६ करोड़ और घरों में नल से जल उपलब्ध कराया जाएगा। इसके लिए ‘हर घर नल, हर घर जल’ जैसे आकर्षक नारे भी बनाए गए, लेकिन आज इस योजना की क्या स्थिति है? सैकड़ों-हजारों करोड़ रुपए खर्च होने के बावजूद ग्रामीण लोगों और गरीब आदिवासियों को पानी की एक बूंद के लिए मीलों पैदल चलना पड़ता है। महाराष्ट्र में भी आज लाखों घरों को ‘हर घर नल, हर घर जल’ का इंतजार करना पड़ रहा है। उस पर पानी की कमी गहराती जा रही है। पिछले साल औसत की १०७ फीसदी बारिश होने के बावजूद राज्य के बांधों में सिर्फ ४१ फीसदी पानी का भंडारण बचा है। ग्रामीण इलाके पानी की कमी से जूझ रहे हैं और शहरी नागरिकों के नलों में दस-बारह दिन बाद ‘जल’ आ रहा है। ऐसे गांवों की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है, जहां पर टैंकरों से पानी पहुंचाया जा रहा है। कहां गया मोदी सरकार का ‘जल जीवन मिशन’ और ‘हर घर नल, हर घर जल’? विदर्भ से लेकर मराठवाड़ा और खानदेश-कोकण से लेकर पश्चिम महाराष्ट्र तक हर जगह इस योजना के ढोल फूटे हुए हैं। नंदूरबार जिले में इस योजना के तहत २ हजार ६०० कार्यों को स्वीकृति दी गई थी, लेकिन
फंड ही न होने की वजह से
२,१०० कार्य आज भी अधूरे हैं। नासिक, जलगांव से लेकर मराठवाड़ा-पश्चिम महाराष्ट्र तक यही स्थिति है। यह बात अलग है कि ‘जल जीवन मिशन’ के काम में भ्रष्टाचार के आरोप सत्ताधारी दलों की ओर से ही लगे हैं। वर्धा जिले में भाजपा विधायकों ने ऐसे आरोप लगाए थे, जबकि भिवंडी-शाहपुर इलाके में कामों को लेकर खुद भाजपा नेता ने आरोप लगाए थे। अब राज्य के एक मंत्री झिरवाल के यह स्वीकारने से कि यह योजना ‘पूरी तरह विफल’ है, ने मोदी सरकार की ‘असफल’ योजनाओं की सूची को और बढ़ा दिया है। एक तरफ राज्य के मुख्यमंत्री फडणवीस जल संरक्षण की समीक्षा करते हुए प्रशासन को ‘सिर से पैर तक’ के सिद्धांत पर काम करने का निर्देश दे रहे हैं और वहीं उनके एक मंत्री स्वीकार कर रहे हैं कि जल जीवन मिशन कैसे पूरी तरह विफल रहा है। कई परियोजनाएं तकनीकी कारणों और धन की कमी के कारण रुकी हुई हैं। अनेक स्थानों पर जलस्रोत सूख गए। मोदी ने ‘हर घर नल, हर घर जल’ की जो शेखी बघारी थी, वह हवा में उड़ गई है। ‘न नल न जल’ राज्य के ग्रामीण-आदिवासी हिस्से की स्थिति ऐसी बन गई है। गर्मियों में पानी की एक बूंद के लिए वहां के लोगों का जान जोखिम में डालनेवाला संघर्ष भी जारी है। ‘जलयुक्त शिवार’ से ‘जल जीवन मिशन’ राज्य में पानी की कमी की यात्रा है। अगर ‘फेल’ जलयुक्त शिवार के कर्ता-धर्ता ही जल जीवन मिशन चला रहे हैं तो और क्या होगा?