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संपादकीय : पुरानी पेंशन योजना …टालमटोल किसलिए?

राज्य में क्या सरकार नाम की कोई व्यवस्था अस्तित्व में है? इस तरह के सवाल खड़े करनेवाली घटनाएं फिलहाल पूरे राज्य में हर तरफ घट रही हैं। समाज के सभी वर्गों पर सरकार के खिलाफ सड़क पर उतरने का समय आ गया है। क्योंकि सत्ताधारी केवल अपनी कुर्सी, अपने विधायकों की मर्जी पूरा करने में मग्न हैं। छल-कपट से बनाई गई सरकार को कैसे कायम रखा जाए, इसी में मशगूल हैं। जनता की मांगों पर ध्यान देने के लिए उनके पास समय कहां है? इसीलिए उनके खिलाफ गुस्सा और रोष अब महाराष्ट्र की सड़कों पर दिखाई देने लगा है। किसानों से लेकर मजदूरों तक, मजदूरों से लेकर सरकारी कर्मचारियों तक, आंगनवाड़ी शिक्षकों से लेकर मेडिकल कर्मियों तक, नौकरीपेशा से लेकर बेरोजगारों तक, सबका असंतोष आंदोलन के जरिए सामने आ रहा है। राज्य में लगभग १७ लाख सरकारी कर्मचारी पुरानी पेंशन योजना को लागू करने की मांग को लेकर १४ मार्च से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले गए हैं। इस हड़ताल में सरकारी, अर्द्ध सरकारी, शिक्षक व शिक्षकेत्तर कर्मचारी शामिल हैं‌। इससे सरकारी कार्यालयों, जिला परिषदों, म्हाडा, तहसीलदार कार्यालयों, सरकारी अस्पतालों का काम ठप हो गया है। इसका असर आमजनों पर ही पड़ रहा है। विशेषकर सरकारी अस्पताल जिनके आधार हैं, उन गरीब मरीजों को इस हड़ताल से काफी परेशानी हो रही है‌। कई जगहों पर सर्जरी आगे के लिए टाल दी गई हैं। केस पेपर के लिए भी दो-तीन घंटे कतार में खड़ा रहना पड़ रहा है। राज्य सरकार ने सरकारी कर्मचारियों की मांग पर समय रहते कदम उठाया होता तो आज आम जनता का ऐसा हाल नहीं होता। यह जानते हुए भी कि १४ मार्च को हड़ताल शुरू होगी, मगर सरकार की एक दिन पहले नींद टूटी। सरकार ने १३ मार्च को हड़ताली कर्मचारियों के संगठनों के साथ बातचीत की। उस समय पुरानी पेंशन योजना के क्रियान्वयन को लेकर आंदोलनकारियों को कमेटी गठित करने का गाजर दिखाया गया। जाहिर था कि आंदोलनकारी इसे नकार देंगे। इसलिए आज सरकारी कामकाज ठप होने की नौबत आई है। पुरानी पेंशन की मांग को लेकर कर्मचारियों की कुछ भूमिका है और सरकार की कुछ नीति है। उसमें अंतर हो फिर भी उस पर चर्चा के माध्यम से, सरकार की पहल से सम्मानित समाधान पहले ही निकाला जा सकता था। समय अभी भी बीता नहीं है। आखिरकार, सरकारी कर्मचारियों की पुरानी पेंशन की ‘व्यथा’ को सरकार को समझना चाहिए। अगर पुरानी पेंशन योजना लागू हो जाती है तो सरकार पर तत्काल कोई बड़ा आर्थिक बोझ नहीं पड़ेगा। ऐसा वर्तमान सत्ताधारी ही कह रहे हैं। फिर जिस ‘महाशक्ति’ का आप उठते-बैठते नाम लेते रहते हो, यदि वह आपके साथ है, तो आर्थिक बोझ की ढाल को क्यों आगे कर रहे हो? सरकारी कर्मचारियों का ही नहीं, बल्कि राज्य के प्रत्येक नागरिक का जीवन कम-से-कम खुशहाल और सुरक्षित रहे, यह देखना सरकार का ही कर्तव्य है। यह सत्ताधारियों की जिम्मेदारी है। लेकिन राज्य के मौजूदा सत्ताधारी न अपने कर्तव्य का निर्वाह कर रहे हैं और न ही अपनी जिम्मेदारियों का उन्हें एहसास है। इस वजह से सभी सामाजिक वर्गों में इस सरकार के खिलाफ काफी रोष है। इस असंतोष का ज्वालामुखी सड़कों पर फूटता नजर आ रहा है। प्याज उत्पादकों का गुस्सा विधानमंडल में भी व्यक्त किया गया। प्रदेश के किसान इस समय सुल्तानी के साथ आसमानी संकट से जूझ रहे हैं। पिछले सप्ताह ही बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि से खेत में लगी फसलों को नुकसान पहुंचा था। अब फिर मौसम विभाग ने बेमौसम बारिश की चेतावनी दी है। यानी फिर से नुकसान की तलवार बलीराजा के सिर पर लटक रही है। राज्य के बजट में सरकार ने किसानों को ढेर सारी घोषणाओं का ‘पंचामृत’ पिलाया है, यह सच है लेकिन किसानों को असल में ‘विष’ ही पचाना पड़ रहा है। न किसानों को उनके हक का देना है और न ही सरकारी कर्मचारियों को। राज्य की वर्तमान सरकार का कामकाज इस तरह से ‘गतिशील’ और ‘वेग’ से चल रहा है। फिर जो उनके अधिकार का नहीं था उसे छल-कपट करके अपने पाले में कर लिया, सत्ता में बैठ गए और अब जो सरकारी कर्मचारी अपने हक का मांग रहे हैं, वह देने की उनकी तैयारी नहीं है। आर्थिक बोझ, आर्थिक अनुशासन का भय दिखाकर टालमटोल क्यों कर रहे हो? पुरानी पेंशन योजना सरकारी कर्मचारियों का अधिकार है। वह उन्हें मिलनी ही चाहिए। इस मामले में टाइम पास करने का खेल तुरंत बंद करें!

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