पुणे में कानून व्यवस्था और संस्कृति की धज्जियां उड़ा दी गई हैं। राज्य सरकार की ‘शिवशाही’ बस में लाडली बहन के साथ बलात्कार हुआ और नराधम फरार हो गया। बुधवार सुबह साढ़े पांच बजे जब यह घटना हुई तब महाराष्ट्र सरकार हमेशा की तरह सो रही थी। कुछ साल पहले जब दिल्ली में चलती बस में इसी तरह का निर्भया कांड हुआ था तो भारतीय जनता पार्टी ने संसद ठप कर दिया था। दिल्ली की सड़कों पर विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया था। आज महाराष्ट्र में भाजपा की सरकार है। पुणे के गार्जियन मिनिस्टर अजीत पवार हैं, लेकिन लाडली बहनों को कोई सुरक्षा, संरक्षण प्राप्त नहीं है। क्योंकि राज्य में गुंडों को राजनीतिक संरक्षण मिला हुआ है। पुणे में हत्या, अपहरण, जबरन वसूली और महिलाओं के खिलाफ हिंसक अपराध बढ़े हैं। खुलेआम हाथों में कोयता और तलवार लहराते हुए गुंडो की टोलियां दहशत पैâला रही हैं, यह वैâसी तस्वीर है? यह खौफनाक वारदात स्वारगेट बस स्टेशन पर खड़ी एक बस में हुई। शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) पार्टी के कार्यकर्ता वहां एकत्र हुए और स्वारगेट बस स्टेशन पर धावा बोल दिया। वहां कई बसें खड़ी थीं। वहां क्या मिलना चाहिए? शराब की बोतलें, महिला-पुरुषों के कपड़े, कंडोम और भी बहुत कुछ। इसका क्या मतलब निकाला जाए? चूंकि (एसटी) राज्य परिवहन और सरकारी परिवहन उपक्रम घाटे में चल रहे हैं तो क्या इन गाड़ियों को कोठा बनाकर चलाने को दे दिया गया है और क्या कोई इन धंधों से पैसा कमा रहा है? महाराष्ट्र के परिवहन मंत्री ने आनन-फानन में २३ सुरक्षा गार्डों को निलंबित कर दिया। ये
सुरक्षा गार्ड एक निजी कंपनी के
थे और ये निजी कंपनी भाजपा से जुड़े किसी नेता की होनी चाहिए। मौजूदा हुक्मरानों की नीति हर काम में पैसा खाने की है। स्वारगेट रेप केस उसी का परिणामस्वरूप है। बदलापुर, अंबरनाथ, ठाणे और अब स्वारगेट की लड़कियों पर ऐसे अत्याचार हुए। लाडली बहनों को १,५०० रुपए देने से नारी उत्पीड़न का यह पाप नहीं धुलेगा। महिला उत्पीड़न को लेकर फडणवीस सरकार गंभीर नहीं है। जब एक महिला पूजा चव्हाण की संदिग्ध मौत हो गई थी तो तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष देवेंद्र फडणवीस मौत के लिए जिम्मेदार मंत्री संजय राठौड़ के इस्तीफे की मांग करने वालों में सबसे आगे थे। आज वे ही संजय राठौड़, फडणवीस के मंत्रिमंडल में सम्मान के साथ बैठे हैं। अगर महिलाओं के प्रति फडणवीस का आदर और चिंता वास्तविक होती तो उन्होंने राठौड़ जैसे लोगों को मंत्रिमंडल में शामिल नहीं होने दिया होता। अतएव जो देवेंद्र फडणवीस पूजा चव्हाण को न्याय नहीं दे सके, वे अन्य पीड़ितों को क्या न्याय देंगे? कहा जा रहा है कि स्वारगेट रेप केस में ‘पुणे थर्रा गया’, लेकिन पुणेकरों (पुणेवासियों) पर इसका कोई असर पड़ा ऐसा दिखाई नहीं देता। उनकी जिंदगी आराम से चल रही है। पुणे की संवेदना, मानवता और जुझारू आन खत्म हो गए हैं। पिछले दिनों में पुणे पर बाहरी आबादी के सांस्कृतिक आक्रमण के चलते पुणे की सामाजिक लड़य्या आत्मा लगभग मर चुकी है। स्वारगेट कांड आरोपी दत्ता गाडे के तार किस पार्टी से जुड़े हैं उसका पता लगाकर उस पर
कीचड़ उछालना शुरू
हो गया है। ऐसा आरोपी चाहे किसी भी पार्टी, पंथ और धर्म का हो, क्या वह किसी की अनुमति से ऐसा विकृत कृत्य करता है? उन्हें हथकड़ी लगाना और कड़ी सजा देना कानून का काम है, लेकिन ऐसे मामलों में भी अगर राजनीतिक दलों को बदनाम करने में ही धन्यता मानी जाए तो महाराष्ट्र में भगवान भी उतर आएं तो भी महिलाओं पर अत्याचार नहीं रुकेगा। बीड के संतोष देशमुख हत्याकांड का आरोपी कृष्णा अंधाले फरार है और अब स्वारगेट रेप केस का आरोपी दत्ता गाडे भी फरार है। अब सवाल उठता है कि क्या जिस तरह दलबदलू विधायकों को पुलिस बंदोबस्त में सूरत पहुंचाया गया था उसी तरह की सुरक्षा इन गुनहगारों को भी मिली है? सरकार की संवेदना मर चुकी है और पुणेकर अपना आन और बान वाला पिछला इतिहास भूल कर हत्याओं और बलात्कारों को पचाकर अजगर की तरह निष्क्रिय हो चुके हैं। हत्या, बलात्कार, कोयता गैंग अब पुणे की संस्कृति बन गई है। इन सबके चलते किसी को इस बात का दुख नहीं है कि पुणे की जो पहचान विद्या का मायका और महाराष्ट्र की सांस्कृतिक राजधानी के तौर पर थी वह मिट गई है। यही वो वजह है कि भले ही स्वारगेट के निर्भया कांड ने पुणे को हिलाकर रख दिया, लेकिन पुणेकरों पर उसका कोई असर नहीं पड़ा, वे ठंडे पड़े हुए हैं। पुणेकर ठंडे पड़े हैं और ‘लाडली बहनों’ को १,५०० रुपए देकर उन्हें असुरक्षित बनाकर मौजूदा हुक्मरान उनसे भी ज्यादा ठंडे हैं। ऐसे में राज्य में हत्या, अपराध और महिला उत्पीड़न का ‘अराजक’ तांडव नहीं होगा तो और क्या होगा?