मुख्यपृष्ठनए समाचारसंपादकीय :  बलात्कार, हत्या और भाजपा! ...कोलकाता में क्या हुआ?

संपादकीय :  बलात्कार, हत्या और भाजपा! …कोलकाता में क्या हुआ?

कोलकाता में एक बलात्कार और हत्या का गंभीर मामला हुआ। इस घटना का असर सारे देश में हो रहा है इस पर प्रतिक्रियाएं तैयार की जा रही हैं। कोलकाता के आर.जी. मेडिकल कॉलेज की एक प्रशिक्षु डॉक्टर के साथ बलात्कार कर उसकी हत्या कर दी गई। इस घटना की जितनी निंदा की जाए कम है, डॉक्टरों ने इस घटना के विरोध में मुंबई, दिल्ली और कोलकाता समेत पूरे देश में विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया। इसके चलते कई जगहों पर चिकित्सा सेवाएं बाधित हो गई हैं, मरीजों को परेशानी हो रही है। इस घटना के मुख्य आरोपी संजय रॉय को कोलकाता पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। अब इस मामले की विशेष जांच के लिए सीबीआई की टीम बंगाल में प्रवेश कर चुकी है और सुप्रीम कोर्ट ने डॉक्टर के रेप और हत्या मामले की सुनवाई मंगलवार को करने का भी एलान कर दिया है। इसके बाद केंद्र सरकार भी विशेष तौर पर जागती नजर आ रही है। कोलकाता में जो कुछ हुआ, उससे हर जगह कानून व्यवस्था की समस्या पैदा हो गई है और जिसके मद्देनजर केंद्र सरकार ने सभी राज्यों को आदेश दिया है कि वे हर दिन, हर दो घंटे के बाद अपने-अपने अधिकार क्षेत्र में कानून व्यवस्था की स्थिति के बारे में दिल्ली को रिपोर्ट दें। कोलकाता रेप और हत्या मामले पर केंद्र सरकार, सीबीआई, सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान लिया और चिंता जताई इसलिए उनका जितना आभार माना जाए कम है। ये मामला प. बंगाल का है, क्या इसी वजह से केंद्र की इसमें इतनी दिलचस्पी हो गई है? दरअसल, ममता बनर्जी की सरकार ने बलात्कार और हत्या के मामले को भी उतनी ही शिद्दत से लिया और अपराध की गंभीरता से जांच की, कोलकाता पुलिस ने फरार मुख्य आरोपी की गिरफ्तारी के लिए विशेष टीमें नियुक्त कीं और आखिरकार नराधम को गिरफ्तार कर लिया। अब उसका पैâसला फांसी से होगा। इसे कहते हैं कानून व्यवस्था बनाए रखना, लेकिन हमारे यहां बलात्कार जैसी घटनाओं पर भी राजनीति होती है। महिला डॉक्टर से रेप और हत्या ने कोलकाता ही नहीं, बल्कि पूरे देश को हिलाकर रख दिया है, लेकिन ‘भाजपा’ इस घटना को राजनीतिक मुद्दा बना रही है। कानून व्यवस्था राज्यों का मामला है। प. बंगाल में इस व्यवस्था के टूटने की कोई तस्वीर नजर नहीं आती, लेकिन ममता सरकार के खिलाफ बलात्कार और हत्या के मामले को भड़का कर उनके राज्य को बदनाम किया जा रहा है। पिछले महीने उत्तर प्रदेश और बिहार राज्य में कोलकाता जैसे मामले सामने आए हैं। पीड़ित महिला भले ही कोई डॉक्टर न हो, लेकिन वह अबला ही हैं भेड़िए उन पर उसी तरह टूट पड़े। ११ अगस्त को मुजफ्फरपुर के पारू गांव से एक लड़की को घर में घुसकर अगवा किया गया। दो दिन बाद उसका शव गांव के बाहर एक तालाब में मिला। उस अभागी लड़की के शरीर पर यातना के अनगिनत निशान थे, लेकिन उनके परिवार की नाराजगी, आक्रोश न तो सुप्रीम कोर्ट तक पहुंची और न ही दिल्ली के गृह मंत्रालय तक। इस अत्याचार पर किसी ने ध्यान नहीं दिया ऐसा क्यों? कानून व्यवस्था के सवाल का रोना जो लोग बंगाल में रो रहे हैं, वही लोग बिहार के मामले में चुप क्यों हैं? ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं उत्तर प्रदेश में प्रतिदिन घटित हो रही हैं। हाथरस जैसी घटनाओं ने देश को शर्मसार किया। पीड़िता का जबरन रात के अंधेरे में अंतिम संस्कार कर दिया गया तब भी सुप्रीम कोर्ट नहीं जागा था। क्योंकि इन राज्यों में भाजपा की सरकारें हैं। महाराष्ट्र के मंत्री संजय राठौड़ का मामला बेहद गंभीर है। पीड़िता पूजा चव्हाण ने आत्महत्या कर ली थी और उस वक्त बीजेपी महिला मंडल ने इसे लेकर विरोध प्रदर्शन किया था। आज ये महाशय वैâबिनेट में देवेंद्र फडणवीस के साथ हाथ पर हाथ रखे नजर आ रहे हैं और भाजपा महिला मंडल आरती उतार रही हैं। इस मामले में न तो सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान लिया और न ही आपकी सीबीआई ने, लेकिन कोलकाता की घटना पर ये सभी संस्थाएं छाती पीट रही हैं। इस दिखावे को क्या कहें? पिछले कुछ सालों से मणिपुर की महिलाओं पर जुल्म के पहाड़ टूट रहे हैं। कई महिलाओं को सड़कों पर नग्न किया गया, बलात्कार किया गया, गोली मार दी गई तब भी केंद्रीय गृह मंत्रालय, सीबीआई और सुप्रीम कोर्ट ने एक शब्द भी नहीं कहा। महिलाओं के खिलाफ हिंसा के मामलों में कार्रवाई का यह दोहरा मापदंड क्यों? एक तरफ प्यारी बहनों को १,५०० रुपए देना और बदले में वोट न देने पर धमकी देना, यह धमकी भरी भाषा भी महिलाओं पर अत्याचार ही है। देश में महिलाओं को मौजूदा वक्त में ऐसी कई कठिनाइयों से गुजरना पड़ रहा है। महिलाओं के साथ बलात्कार, हत्या, दुर्व्यवहार राजनीतिक साजिश का विषय बनता जा रहा है और यह नारी शक्ति की अवहेलना है। प. बंगाल में युवा डॉक्टर के साथ बलात्कार और हत्या ने देश को झकझोर दिया, दिल्ली को हिला दिया। लेकिन जब अन्य राज्यों में महिलाओं पर यही अत्याचार हो रहे हैं तो यह दुख, तकलीफ, चिंता व आक्रोश कहां चला जाता है? और सुप्रीम कोर्ट संज्ञान लेते हुए न्याय के लिए सामने क्यों नहीं आता?

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