प्रबोधनकार केशव सीताराम ठाकरे का आज ५०वां स्मृति दिन। उनके निधन को पचास वर्ष हो गए, लेकिन महाराष्ट्र के इस बागी समाज सुधारक का नाम आज भी शाहू, पुâले, आंबेडकर की बराबरी में लिया जाता है। महाराष्ट्र आज जाति-पांति में बंटा हुआ है। श्रद्धा की अपेक्षा अंधश्रद्धा और व्यक्तिपूजा को महत्व देनेवाला समाज, जादू-टोना, ढोंगी बाबा का मतलब ही हिंदुत्व ऐसा माननेवाले सत्ताधारी लोगों के आस-पास पाखंड और ढोंग का आडंबर लगा हो तब ऐसे प्रबोधनकार के ज्वलंत विचारों व नेतृत्व की जरूरत महसूस होती है। प्रबोधनकार का जीवन कई लड़ाइयों से भरा था। वे बहुत तार्विâक और सुधारवादी थे। वे लेखक थे, पत्रकार थे, प्रखर वक्ता थे, संपादक थे, कलाकार थे, प्रखर इतिहासकार थे और सबसे महत्वपूर्ण वे संयुक्त महाराष्ट्र के ‘महाभारत’ के अग्रणी योद्धा थे। उनकी वाणी और लेखनी में तलवार की धार थी। ‘कोदंडाचा टणत्कार’, ‘भिक्षुकशाहीचे बंड’, ‘देवळाचा धर्म और धर्माची देवळे’ ऐसी पुस्तकों के माध्यम से उन्होंने धर्म व्यवस्था कर्मकांडों पर प्रहार किया। जाति व्यवस्था, छुआछूत, दहेज-बाल विवाह का सक्रिय विरोध किया। यह परंपरा हिंदू धर्म के लिए घातक है और इसे रोका जाना चाहिए। वे सुधारवादी हिंदू थे। उनकी इसे लेकर राय मौजूदा समय के ढोंगी हिंदुत्ववादी व सनातनी लोगों को नहीं जमेगी। उनसे एक बार पूछा गया, ‘अन्य धर्म के लोगों के यहां अन्न ग्रहण करने से हिंदू भ्रष्ट होता है कि नहीं?’ उस पर प्रबोधनकार ने कहा, ‘हिंदू किसी भी प्रकार से भ्रष्ट नहीं होता।’ प्रबोधनकार से अगला प्रश्न पूछा गया, ‘आप तो हिंदू हैं लेकिन कभी मुसलमान के यहां भोजन किया है?’ प्रबोधनकार ने कहा, ‘हमारी इच्छा होगी उसके हाथ का खाएंगे और हिंदू रहेंगे।’ यह प्रश्न पूछनेवाला खिस्ती रेवरंड था और वह प्रबोधनकार को झांसे में ले रहा था। उसने आखिर में पूछा, ‘मि. ठाकरे, आप गोमांस खाएंगे क्या?’ इस पर प्रबोधनकार ने कड़े शब्दों में कहा, ‘अरे बाबा, गोमांस ही क्या, हम तुम्हें भी खाएंगे, तुम्हारे क्रिस्त को खाएंगे, पूरी दुनिया को खाएंगे और उसके बाद भी शुद्ध हिंदू ही रहेंगे। आजकल की यह नई जनस्मृति है!’ प्रबोधनकार के विचार ऐसे क्रांतिकारी थे। प्रबोधनकार मतलब लड़नेवाले शेलार मामा। जहां कहीं भी अन्याय होता दिखे, वहां वे आक्रोशित हो जाते, अन्याय को मिटाने में जुट जाते। उस काम में अन्याय को मिटाने में जुट जाते। सातारा के छत्रपति प्रताप सिंह को अंग्रेजों ने पद से हटा दिया। मराठाओं के राजा पर हुए अन्याय को रोकने के लिए रंगो बापूजी गुप्ते सीधे लंदन तक लड़ने चले गए। राजा के लिए वे लंदन की भूमि पर अंतिम सांस तक लड़ते रहे। इस जुझारू रंगो बापूजी का इतिहास पुस्तक के रूप में लिखकर प्रबोधनकार ने इतिहास के सुनहरे पन्नों में दर्ज किया। कर्मवीर भाऊराव पाटील प्रबोधनकार को अपना गुरु मानते थे। गोर गरीब बच्चों के लिए भाऊराव ने रयत शिक्षण संस्था की स्थापना की। आज इस संस्था ने विशाल रूप ले लिया है, लेकिन यह संस्था शुरू करते समय प्रबोधनकार भाऊराव के पीछे मजबूती से खड़े रहे। इस संस्था की जानकारी उन्होंने अपने ‘प्रबोधन’ और ‘लोकहितवादी’ नामक साप्ताहिक पत्रिका के माध्यम से पूरे महाराष्ट्र को दी। ‘रयत’ को खड़ा करने के लिए लगनेवाली आर्थिक मदद को जुटाने के लिए प्रबोधनकार ने कड़ी मेहनत की। कोल्हापुर में अपने नाटक ‘खरा ब्राह्मण’ के एक शो की पूरी आय रयत शिक्षण संस्था को दे दी। इतना ही नहीं, जब महात्मा गांधी पुणे में आए, तब उनसे प्रबोधनकार ने दो टूक बात कर भाऊराव के शाहू बोर्डिंग को हरिजन पंâड से अच्छा अनुदान दिलवाया। प्रबोधनकार ठाकरे की लेखनी, वाणी, मतलब तोपों की मार समान थी। शत्रु कितना भी शक्तिशाली हो, वो हमारा कितना नुकसान करेगा, इसकी उन्होंने कभी परवाह नहीं की। महाराष्ट्र के शत्रुओं पर वे बिना सोचे-समझे टूट पड़े। भारतरत्न डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के बारे में उनके मन में नितांत श्रद्धा थी। दलित जनता को आह्वान करते हुए एक बार उन्होंने कहा, ‘तुम मुझ पर विश्वास मत करो। नासमझों, तुम्हारे भाग्य से तुम्हें डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर जैसा नौजवान, हाड़-मांसवाला नेता मिला है। ऐसे में तुम्हें दूसरों के पीछे क्यों जाना? अरे भेडों का नेता दाढ़ीवाला बकरा होना चाहिए? भेड़िया वैâसे चलेगा? उस आंबेडकर को जाकर मिलो, वही तुम्हारा कल्याण करेगा!’ ऐसे थे प्रबोधनकार। संयुक्त महाराष्ट्र की लड़ाई उनके जीवन की सबसे महत्वपूर्ण लड़ाई थी। जीवनभर संघर्ष करते रहने से उनका शरीर थक गया था। तब भी वे संयुक्त महाराष्ट्र की लड़ाई में उतरे। जिसे जीवन में कुछ कर दिखाना है, उसे प्रबोधनकार की ‘माझी जीवनगाथा’ को अवश्य पढ़ना चाहिए। अपनी जीवनगाथा में प्रबोधनकार ने एक मंत्र दिया, ‘जिसके अंग में हुनर है, हिम्मत है, जिद और स्वाभिमान है, ऐसा मनुष्य कभी भी बेरोजगार नहीं मिलेगा। यह मेरे जीवन का साक्षात्कार है, सिद्धांत है।’ प्रबोधनकार की प्रेरणा से शिवसेना जैसी शुद्ध महाराष्ट्रीय, हिंदुत्ववादी संगठन की स्थापना हुई और शिवतीर्थ पर पहली सभा में प्रबोधनकार ने महाराष्ट्र के समक्ष खुले मन से कहा, ‘आज अपना यह बालक मैं महाराष्ट्र को अर्पित करता हूं।’ उसी बाल केशव ठाकरे अर्थात शिवसेनाप्रमुख बालासाहेब ठाकरे ने आगे इतिहास रच दिया। प्रबोधनकार ठाकरे को लाख-लाख अभिवादन। प्रबोधनकार की सामाजिक क्रांति की मशाल को हृदय से प्रणाम!