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संपादकीय : ‘कुर्सी बचाओ’ संकल्प!

जिस तरह सपने देखने में पैसे नहीं लगते, उसी तरह सपने दिखाने में भी पैसे नहीं लगते। इसलिए मोदी शासन का एक ही मूल मंत्र है कि देशवासियों को सिर्फ सपनों में गाफिल कर सत्ता का रथ हांकना। २०१४ से २०२४ तक मोदी सरकार ने हर बजट में जनता को ऐसे ही सपनों में डुबोए रखा। केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने मंगलवार को लोकसभा में लगातार सातवीं बार केंद्रीय बजट पेश करते हुए भी यही किया। केंद्रीय वित्तमंत्री ने कृषि, उद्योग, शिक्षा, बुनियादी ढांचे आदि विभिन्न क्षेत्रों के लिए हजारों करोड़ों रुपए के प्रावधानों की घोषणा की। इनकम टैक्स स्लैब में मामूली बदलाव कर वित्तमंत्री ने हाथ से फिसल रहे मध्यम वर्ग को लुभाने की कोशिश की। भुलाए जा चुके देश के युवा छात्रों और बेरोजगारों की सरकार को अब याद आई। इसलिए इस बजट में छात्रों को उच्च शिक्षा के लिए ऋण, देश की ५०० कंपनियों में इंटर्नशिप के जरिए १ करोड़ युवाओं को ५,००० रुपए की छात्रवृत्ति, रोजगार, कौशल विकास और शिक्षा के लिए करोड़ों रुपए का प्रावधान और गरीब कल्याण खाद्य योजना को ५ वर्ष तक का विस्तार जैसी कई घोषणाएं हैं। हालांकि, यह बजट यह आभास देने की कोशिश करता दिख रहा है कि हम बेरोजगार युवाओं, मजदूरों, किसानों और महिलाओं के लिए कितनी शिद्दत से काम कर रहे हैं, लेकिन हकीकत में यह बजट केवल प्रधानमंत्री मोदी की कुर्सी बचाने के लिए पेश किया गया है। जिस तरह से केंद्र सरकार के खजाने से आंध्र और बिहार दोनों राज्यों पर बरसात की गई है, उसे देखते हुए इस बजट से साफ नजर आता है कि प्रधानमंत्री मोदी की गद्दी स्थिर बनाए रखने के लिए सरकार को कितनी मशक्कत करनी पड़ रही है। डेढ़ महीने पहले आए लोकसभा चुनाव के नतीजों में जनता ने ‘मोदी सरकार’ का गरूर छीन लिया और चंद्रबाबू नायडू व नीतीश कुमार की बैसाखियों पर दिल्ली में एनडीए सरकार आ गई। भले ही नरेंद्र मोदी जैसे-तैसे तीसरी बार सत्ता में आ गए हों, लेकिन उनकी कुर्सी डगमगाती हुई नजर आ रही है। इसीलिए कुर्सी के दो पाए बने दो राज्यों बिहार और आंध्र प्रदेश को बजट में से बड़ी खैरात बांटी गई। बाकी राज्यों की जनता पूछ रही है कि क्या यह पूरे देश का बजट है या सरकार को समर्थन देने वाली दो पार्टियों को खुश करने का संकल्प है। दरअसल, केंद्रीय बजट देश के लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करने वाला और देश को विकास के पथ पर ले जाते हुए प्रत्येक राज्य को न्यायसंगत तरीके से धन आवंटित करने वाला दस्तावेज होना चाहिए। लेकिन निर्मला सीतारमण द्वारा प्रस्तुत नवीनतम बजट में सभी राज्यों के लिए समान न्याय का सिद्धांत कहीं नजर नहीं आता है। इस बजट में जद (यू) की एक बैसाखी को संभालने के लिए बिहार को ४१,००० करोड़ रुपयों की मदद दी गई है और तेलुगु देशम की दूसरी बैसाखी की देखभाल के लिए आंध्र प्रदेश पर हजारों करोड़ लुटाए गए हैं। आंध्र की नई राजधानी अमरावती के निर्माण के लिए एक वित्तीय वर्ष में १५ हजार करोड़ रुपए तक की पेशकश की गई है और भविष्य में हर साल इसी तर्ज पर आंध्र प्रदेश को हजारों करोड़ की अतिरिक्त निधि देने का वित्तमंत्री ने एलान किया है। राजनीति और सत्ता बनाए रखने के लिए केंद्रीय बजट का ऐसा दुरुपयोग किस आर्थिक अनुशासन में फिट बैठता है? क्या अन्य राज्यों ने केंद्र सरकार की भैंसें चुराई हैं? उत्तर प्रदेश ने देश को प्रधानमंत्री दिया। उस उत्तर प्रदेश के लिए बजट में कुछ भी नहीं है। केंद्र सरकार के खजाने में टैक्स के रूप में सबसे अधिक योगदान देने वाले महाराष्ट्र को इस बजट से एक छदाम भी नहीं मिला। निधि की तो बात ही छोड़िए; लेकिन वित्तमंत्री ने अपने भाषण में महाराष्ट्र और मुंबई का जिक्र तक नहीं किया। केंद्रीय बजट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि ‘खोखे’ शाही के जरिए महाराष्ट्र में गैर-संवैधानिक सरकार लाने के बावजूद केंद्र सरकार के मन में महाराष्ट्र के प्रति कितना द्वेष और नफरत भर गई है। सरकार की बैसाखी बने दो राज्यों आंध्र और बिहार को सरकारी खजाने से दौलतजदा करने वाले इस बजट में महाराष्ट्र समेत कई राज्यों के साथ घोर अन्याय किया गया है। देश की अर्थव्यवस्था में सबसे ज्यादा योगदान देने वाला और सबसे अधिक टैक्स देने वाला राज्य का होना क्या यही महाराष्ट्र का दोष है? क्या सिर्फ राजनीति और सत्ता की कुर्सी बचाए रखने के लिए दो राज्यों में देश का खजाना खाली करना ‘सब का साथ, सबका विकास’ कहलाता है? क्या सच में निर्मला सीतारमण द्वारा पेश किया गया यह ‘कुर्सी बचाओ’ संकल्प पूरे देश का बजट है? सरकार को समर्थन देने वाले अन्य राज्यों के सांसदों और जनता को भी एनडीए सरकार की गर्दन पकड़कर यह सवाल पूछना चाहिए!

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