महाराष्ट्र में मराठा और ओबीसी समुदाय के आरक्षण का संघर्ष जल उठा है। वहीं, पटना हाई कोर्ट ने बिहार में ‘बढ़े हुए’ १५ फीसदी आरक्षण को रद्द कर दिया। तो बिहार के पैâसले का महाराष्ट्र पर क्या असर होगा? ऐसा सवाल अब पूछा जा रहा है। क्योंकि शिंदे सरकार ने मराठा समुदाय के नेताओं को आश्वासन दिया है कि हम स्थायी आरक्षण प्रदान करेंगे। महाराष्ट्र में भी बिहार पैटर्न पर आरक्षण देने की योजना थी। बिहार ने आरक्षण की सीमा ५० फीसदी से बढ़ाकर ६५ फीसदी कर दी। इससे नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण बढ़ा दिया गया और नीतीश कुमार इसके लिए खुद को धन्य मान रहे थे। वहीं बिहार सरकार ने ५० प्रतिशत की सीमा को पार करते हुए अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग जैसी विभिन्न श्रेणियों को सरकारी नौकरियों में ६५ प्रतिशत आरक्षण दिया। उस वक्त भी क्या ये आरक्षण कोर्ट में टिक पाएगा? ऐसा सवाल पूछा गया। यहां ध्यान देनेवाली बात यह है कि मूलत: यह प्रश्न फिर से संविधान के प्रावधानों से आता है। आरक्षण के खिलाफ अदालत जानेवालों का तर्क साफ था। जाति सर्वेक्षण के बाद बिहार सरकार ने जो पैâसला लिया है, वह गैरकानूनी है। याचिकाकर्ताओं द्वारा यह स्वीकार किया गया कि ओपन वैâटेगरी में आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए १० प्रतिशत आरक्षण को समाप्त करना संविधान के अनुच्छेद १४ और १५ (१६) (बी) का सीधा उल्लंघन है। संविधान का अनुच्छेद (१६) (१) राज्य के अधीन सभी कार्यालय में रोजगार या नियुक्ति से संबंधित सभी मामलों में सभी नागरिकों को समान अवसर प्रदान करता है। याचिकाकर्ता ने अदालत को यह भी बताया कि अनुच्छेद १५ (१) किसी भी प्रकार के भेदभाव पर रोक लगाता है। इस पृष्ठभूमि में महाराष्ट्र में आरक्षण के लिए चल रहे आंदोलन का क्या होगा? मनोज जरांगे-पाटील का आंदोलन जारी है और साथ ही लक्ष्मण हाके ने ओबीसी आरक्षण के लिए भूख हड़ताल शुरू कर दी है। दोनों जगहों पर सरकारी प्रतिनिधिमंडल और मध्यस्थों की दौड़-भाग जारी है। प्रकाश आंबेडकर का कहना है कि मराठा और ओबीसी दोनों के लिए आरक्षण अलग-अलग होना चाहिए। लेकिन आरक्षण की सीमा बढ़ाए बिना यह संभव नहीं होगा। अब पटना हाईकोर्ट ने बिहार में बढ़े हुए आरक्षण को खारिज कर दिया है। श्री जरांगे-पाटील कहते हैं महाराष्ट्र के मराठा आरक्षण अध्यादेश में ‘सगेसोयरे’ का उल्लेख करते हुए नया आदेश जारी किया जाए, लेकिन सरकार ऐसा करने को तैयार नहीं है। जरांगे ने स्पष्ट रूप से कह दिया है कि सरकार ने ही मराठा विरुद्ध ओबीसी विवाद की शुरुआत की है। मराठा आरक्षण के लिए सरकार को १३ जुलाई तक की डेडलाइन दी है। उसके बाद हमें रास्ता खोजना पड़ेगा, जरांगे-पाटील ने चेतावनी दी। राज्य में मराठा, ओबीसी आरक्षण को लेकर विवाद इतना चरम पर पहुंच गया है कि सामाजिक एकता बिगड़ रही है। यह महाराष्ट्र की परंपरा के अनुकूल नहीं है। आरक्षण अब भोजन-पानी-हवा की तरह जीवन का मामला बन गया है और प्रगतिशील महाराष्ट्र में मानो जातियों और उपजातियों के बीच गृह युद्ध ही शुरू हो गया है। आरक्षण का मुद्दा अब राज्य सरकारों के हाथ में नहीं रहा है, बल्कि केंद्र को लोकसभा में ही इसका समाधान खोजना होगा। महाराष्ट्र में मराठा, ओबीसी, धनगर, गुजरात में पटेल, हरियाणा में जाट, राजस्थान में मीणा हर कोई आरक्षण चाहता है। क्योंकि देश में बेरोजगारी का महाविस्फोट हो गया है और इसी विस्फोट से महाराष्ट्र समेत पूरे देश में आरक्षण की आग भड़क उठी है। परीक्षाओं का वजूद नहीं रहा। परीक्षा से पहले ही पेपर लीक ने युवाओं में बेहद निराशा और उससे क्रोध की ज्वाला भड़क उठी है। ‘पेपर लीक’ एक भयानक घोटाला है, जिसने लाखों युवाओं का भविष्य अंधकारमय कर दिया है। हाथ में डिग्रियों का अंबार होने पर भी नौकरियां नहीं हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने ‘अग्निवीर’ जैसे फालतू उद्योग की शुरुआत की। इससे बेरोजगारों का मजाक उड़ाया गया। ये सब हमारे देश में खुलेआम चल रहा है। शिक्षा को लेकर कोई नीति नहीं है। रोजगार देने में कोई भूमिका नहीं है। चुनाव आने पर बड़े-बड़े वादे करना वर्तमान राजनीति बन गई है। मोदी महाशय ने यूक्रेन में युद्ध तो रुकवा दिया, लेकिन ‘पेपर लीक’ नहीं रोक सके। बेरोजगारी नहीं रोक सके। महाराष्ट्र जैसे राज्य को आर्थिक एवं औद्योगिक दृष्टि से ‘पिछड़ा’ बनाने के लिए पिछले दस वर्षों में विशेष प्रयास किए गए। दरअसल, महाराष्ट्र ने लगातार देश को नौकरियां और रोजगार देने का काम किया है, लेकिन मोदी-शाह ने महाराष्ट्र की औद्योगिक दौड़ को रोकने की कोशिश की। उसी से रोजगार और आरक्षण के मुद्दे का निर्माण हुआ। महाराष्ट्र में इस वक्त आरक्षण आंदोलन की आग भड़की ही हुई है, लेकिन बिहार के नतीजे का महाराष्ट्र के आरक्षण आंदोलन पर क्या असर होगा, इतना ही तटस्थता से देखा जाना चाहिए।