श्रद्धा और सबुरी शिर्डी के साई बाबा द्वारा सभी मानव जाति को दिया गया एक अनमोल मंत्र है। हमने कल शिर्डी में साई बाबा का दर्शन किया और श्रद्धा सबुरी के महत्व को फिर से सीखा। महाराष्ट्र समेत देश में इस समय जो घटनाक्रम हो रहे हैं, उससे एक सवाल उठता है कि क्या श्रद्धा और सबुरी का उच्चाटन हो गया है। सर्वोच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र सरकार को पूरी तरह से अवैध, असंवैधानिक करार दिया। यह संवैधानिक पीठ का फैसला है। फिर भी राज्य के मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री विजयी मुस्कान के साथ पत्रकारों के सामने आए और कहा, ‘हम ही जीते हैं।’ इस तरह से हंसते-हंसते कहना इसे बेशर्मी कहते हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने इस मंडली को इतना नंगा कर दिया है कि उनकी कमर पर अंतर्वस्त्र भी नहीं रखा। इस नंगी स्थिति में सिंहासन पर बैठकर ये बेशर्म मंडली ‘वी फॉर विक्ट्री’ का निशान दिखाकर आनंद उत्सव मना रही है। नैतिकता तो उन्होंने ठाणे के मासुंदा तालाब में डुबा ही दी, लेकिन बची-खुची शर्म भी नागपुर के अंबाझरी तालाब के किनारे नंगी होकर नाचती दिखाई दे रही है। महाराष्ट्र में शिंदे-फडणवीस सरकार की स्थापना करते समय सब कुछ गलत किया गया, संविधान के बाहर हुआ, ऐसी फटकार सर्वोच्च न्यायालय द्वारा लगाने के बावजूद भी इस मंडली को ऐसा कौन-सा विकृत आनंद हुआ? सब कुछ गैरकानूनी होते हुए भी सरकार बची या न्यायालय ने उनकी बेशर्मी पर मुहर लगा दी इस पर? यदि सर्वोच्च न्यायालय कह रहा है कि राज्यपाल का बहुमत सिद्ध करने के लिए शिंदे-फडणवीस खोका कंपनी को बुलाना गैरकानूनी था तो उस गैरकानूनी बहुमत परीक्षण के सामने जाकर उद्धव ठाकरे असंवैधानिक कृत्य क्यों करें? भारतीय जनता पार्टी ने किस लायक व्यक्ति को राज्यपाल पद के लिए नियुक्त किया था, यह सब इस मामले में नजर आ गया। महाराष्ट्र में सत्ता परिवर्तन होते ही ऐसे आपराधिक प्रवृति के राज्यपाल पर देशद्रोह का मुकदमा चलाया जाना चाहिए। संविधान की रक्षा करने का काम जिस व्यक्ति को सौंपा गया था, वही चोर निकला। ऐसे ‘चोर और लफंगे’ भाजपा की सत्ता की कुंजी हैं। वही उनकी ताकत हैं। विचार, देशभक्ति, नैतिकता आदि सब उनकी नजर में झूठ है, लेकिन सरकार को अवैध ठहराने के बाद भी मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री हंस रहे हैं। विधायकों को अयोग्य ठहराने का अधिकार न्यायपालिका को नहीं है, लेकिन विधायकों ने अवैध कृत्य किया ही है। नकली व्हिप बनाना। शिंदे गुट का व्हिप ही अदालत ने झूठा ठहरा दिया। उस झूठे ‘व्हिप’ के आदेश का पालन करके विधायकों ने पक्षद्रोह किया, यह न्यायालय ने साबित कर दिया। कोर्ट ने विधायकों को दोषी माना, लेकिन सूली पर चढ़ाने का काम विधानसभा अध्यक्ष का है। न्यायाधीश निर्मम अपराधियों को फांसी की सजा सुनाते हैं लेकिन उसे प्रत्यक्ष रूप से फांसी देने का काम स्वतंत्र मशीनरी करती है। सर्वोच्च न्यायालय ने यही किया है, लेकिन महाराष्ट्र के विधानसभा अध्यक्ष कहां हैं? वे पर्दे के पीछे क्या हलचलें कर रहे हैं? न्यायालय द्वारा अपराधी ठहराए गए विधायकों पर वे कानूनी कार्रवाई करेंगे या संवैधानिक पद पर बैठे ये व्यक्ति फिर राजनीतिक स्वार्थ के लिए दोषी विधायकों का बचाव करेंगे? महाराष्ट्र की मिट्टी को कलंक लगाएंगे या मिट्टी का तेज दिखाएंगे? इसी मिट्टी में संविधान रचयिता डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर का जन्म हुआ। इस मिट्टी का ईमान रखेंगे कि दिल्ली के ‘शाहों’ के आगे झुककर संविधान, कानून की लाश गिराएंगे? विधानसभा अध्यक्ष के राजनीतिक पर्यटन का इतिहास देखते हुए वे दिल्ली के शाहों की गुलामी स्वीकारते नजर आ रहे हैं। मीडिया के सामने आकर दोषी विधायकों पर रंग सफेदी करनेवाले साक्षात्कार देते दिखाई दे रहे हैं। विधानसभा अध्यक्ष की राजनीतिक यात्रा लंबी है। कांग्रेस, शिवसेना, राष्ट्रवादी, भाजपा की यात्रा करते हुए वे बारह गांव का पानी पिए हुए हैं। वे कहते हैं और कहते थे, ‘अयोग्य विधायकों का मामला आखिर में मेरे पास ही आएगा!’ क्या इसे धमकी समझा जाए? ऐसा कुछ होगा तो सर्वोच्च न्यायालय को यह मामला अधिक गंभीरता से लेना चाहिए। विधानसभा अध्यक्ष इंटरव्यू देते हैं। उनके सामने जो मामला निष्पक्ष न्याय के लिए आया है, उस पर बोलते हैं, यह नियमबाह्य है। नेता प्रतिपक्ष अजीत पवार को विधानसभा अध्यक्ष के इस बर्ताव पर आवाज उठानी चाहिए। विधानसभा अध्यक्ष इन सभी मामलों में टाइम पास करेंगे और मामला आखिर में ठंडे बस्ते में चला जाएगा, यह डर लोगों के मन में है। हालांकि, विधानसभा अध्यक्ष संविधान पर श्रद्धा रखकर सबुरी से इस मामले को संभालेंगे, ऐसी उम्मीद रखने में क्या हर्ज है? विधानसभा के वर्तमान अध्यक्ष लंबे समय तक शिवसेना में ही थे। शिवसेना से उनकी ख्याति बढ़ी। उन्हें असली और नकली शिवसेना पता है। वे सर्वोच्च न्यायालय में कई बार शिवसेना के वकील थे। इसलिए असली-नकली की जानकारी उन्हें होनी चाहिए। सभी विपक्षी पार्टियां एक होकर राज्य की असंवैधानिक सरकार को घेरें और उन्हें लात मारकर सत्ता से भगा दें, ऐसा यह मामला है। सर्वोच्च न्यायालय का पैâसला दिशादर्शक है। हम उन लोगों से सहमत नहीं हैं, जो कहते हैं कि अदालत ने भ्रम पैदा किया और भ्रम बढ़ा दिया। कोर्ट द्वारा अवैध करार दी गई सरकार अभी भी सत्ता में है, इसका सारा दोष राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और गृहमंत्री शाह पर जाता है। सरकार के पास जो बहुमत है, वह असंवैधानिक है। इस एक मुद्दे पर महान लोकतंत्र के रक्षक प्रधानमंत्री मोदी को शिंदे-फडणवीस को घर भेज देना चाहिए। कांग्रेस ने मुझे ९१ बार गालियां दीं, इस मुद्दे को लेकर मोदी ने कर्नाटक में हंगामा खड़ा कर दिया। लेकिन यह हंगामा आगे बढ़ा ही नहीं, लेकिन महाराष्ट्र में उनके द्वारा नियुक्त सरकार ने पिछले नौ महीनों में संविधान की ‘१९१’ बार हत्या की। सुप्रीम कोर्ट द्वारा उन हत्यारों को दोषी करार दिए जाने के बाद भी प्रधानमंत्री मोदी खामोश हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि यदि विधानमंडल में कोई पार्टी विभाजित हो गई है तो वह बागी गुट मूल पार्टी पर दावा नहीं कर सकता है। फिर भी संविधान के संरक्षक मोदी छाप चुनाव आयोग ने शिवसेना और चिह्न बागी गुट के हवाले कर दिया। सर्वोच्च न्यायालय को यह स्वीकार नहीं है। इस एक मुद्दे पर राष्ट्रपति को चुनाव आयोग को घर भेज देना चाहिए, लेकिन यहां संविधान की किसे परवाह? हमाम में सब नंगे! तभी हर कोई नंगा होकर आनंदोत्सव मना रहा है। नंगे होकर नाच रहे हैं। महाराष्ट्र यह सब देख रहा है। दुनिया उन पर हंस रही है। श्रद्धा और सबुरी बनाए रखें। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा बेनकाब किए गए हमेशा के लिए घर चले जाएंगे। शीघ्र!