मुख्यपृष्ठनए समाचारसंपादकीय : सांप! सांप!!

संपादकीय : सांप! सांप!!

प्रधानमंत्री मोदी विषैले सांप की तरह हैं। मल्लिकार्जुन खड़गे द्वारा दिए गए इस बयान के कारण कर्नाटक के चुनाव प्रचार में जहर का रंग फैल गया है। प्रचार में कांग्रेस ने बाजी मार ली है और भाजपा पिछड़ गई है। खुद मोदी जोर-शोर से प्रचार करते नजर नहीं आ रहे हैं। इस बार कर्नाटक से भाजपा का राज जा रहा है और कांग्रेस सत्ता में आएगी, कुल मिलाकर ऐसा माहौल है। भाजपा के पास प्रचार के लिए कोई मुद्दा नहीं है। ऐसे समय में श्री खड़गे ने भाजपा की झोली में जहरीला सांप भेज दिया है और अब कुछ दिनों तक समस्त भाजपावाले उस सांप के लिए बीन बजाएंगे, उस सांप को दूध पिलाएंगे। शायद सांप और नाग राष्ट्रीय देवता हैं और कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे ने सांपों का अपमान किया है, इसलिए हिंदू धर्म कैसे खतरे में आ गया है, ऐसी बीन बजाकर अंधभक्तों के फन झुमाए जाएंगे। भारतीय जनता पार्टी चुनाव जीतने के लिए किसी भी स्तर पर जा सकती है। भारतीय जनता पार्टी जहरीली प्रवृत्ति, प्रतिशोधी, सांप की तरह डसने वाली, जाति-धर्म का जहर फैलाकर और उसी जहर से समाज को बेहोश करनेवाली पार्टी है, इस बात में दो राय होने का कोई कारण नहीं है। प्रधानमंत्री पद पर आसीन व्यक्ति को सांप आदि की उपमा देना अच्छा नहीं है, लेकिन प्रधानमंत्री पद पर आसीन व्यक्ति का विधानसभा चुनाव के प्रचार में उतरना कितना उचित है? इसका विचार भाजपा प्रणित चुनाव आयोग को करना चाहिए। दरअसल, प्रचार में जहरीली फुफकार छोड़ने का काम प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री शाह कर रहे हैं। कर्नाटक में कांग्रेस जीती तो दंगे होंगे, इस तरह का बयान गृहमंत्री शाह द्वारा दिया जाना, यह जहरीली फुफकार ही है और ऐसी फुफकार मारना धार्मिक जहर फैलाने जैसा है। प. बंगाल में ममता जीतती हैं या दूसरे राज्यों में भाजपा हारती है तो पाकिस्तान में पटाखे बजाए जाएंगे। ऐसा बयान भी देश के गृहमंत्री प्रचार के दौरान देते रहते हैं। यह जहर नहीं तो और क्या है? दिल्ली के चुनाव में केंद्रीय मंत्री एक खास धर्म के लोगों को ‘गोली मारो सालों को’ की भाषा में चेतावनी देते हैं और प्रधानमंत्री को नहीं लगता है कि उन जहरीली जीभों पर लगाम लगाई जाए तो देश विषैले सांपों के बिल में फंस गया है, ऐसा क्यों न कहा जाए? मूलत: नागराज-सांपराज का हिंदू धर्म में श्रद्धा का स्थान है। उनकी पूजा की जाती है। उनमें विष होने के बावजूद भी इनकी पूजा की जाती है। फिर किसी को ‘सांप’ की उपाधि देने पर किसी को उछलने की वजह क्या है? सांप किसानों का मित्र है। महाराष्ट्र में तो सांपों को खेती का रखवाला कहा जाता है। वह खेत के चूहों-कीड़ों आदि को खाकर फसल की रक्षा करता है। यह प्रकृति का जादू है कि उनकी जीभ और दांतों में जहर होता है। लेकिन बेवजह सांप किसी के रास्ते में नहीं आता। यह एक सच्चाई है कि सांप तब तक अपना फन नहीं फैलाता जब तक उसकी पूंछ पर पैर न पड़े। लेकिन अब मनुष्य की जीभ का विष सांपों से भी अधिक भयानक और न उतरने वाला है। इस मानव विष ने जो प्रतिशोध का प्रवाह हमारे देश में निर्माण किया है, वह विनाशकारी है। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में आज की भाजपा ने उस विष का महायज्ञ शुरू किया है। भाजपा वाले जो मुंह में आए वह बोल दें, किसी पर भी देशद्रोही होने की फुफकार छोड़ देना, ये सांपों के स्वभाव से मिलता-जुलता है। अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भाजपा के अमृत कुंभ का अनुभव जिसने किया है, उन्हें आज के जहर का डर जरूर महसूस होगा और माहौल वैसा ही है। धार्मिक तनाव पैदा कर विभाजन करना, यह लक्षण विष जैसा ही है। देश को लूटने वाले उद्योगपतियों को संरक्षण देना और समर्थन करना यह जहर का आखिरी छोर है। विष शंकर ने ग्रहण किया इसलिए वे नीलकंठ हो गए। कुछ लोगों को प्रधानमंत्री मोदी विष्णु और शंकर के अवतार लगते हैं। फिर गले में सांप रखकर विष पचानेवाले शंकर से तुलना होते ही राजनीतिक तांडव करने की वजह क्या है? प्रचार सभा में मल्लिकार्जुन खड़गे ने क्या कहा? वे कहते हैं, ‘मोदी जहरीले सांप की तरह हैं। वे जहरीले हैं या नहीं, इसकी परीक्षा आप न लें। मोदी जैसा अच्छा इंसान जहर क्यों देगा, ऐसा आपको लगता होगा, लेकिन अगर आपने जहर चखने की कोशिश की तो आप तुरंत प्राण त्याग देंगे’, ऐसा श्री खड़गे ने कहा और भाजपा की जीभ का जहर उफन कर बाहर आ गया। सच्चाई यह है कि इस जहर से हमारे देश में लोकतंत्र, स्वतंत्रता प्राण विहीन जैसी हो गई है। न्यायालय, संसद, सभी संवैधानिक संस्थाओं को सांपों ने घेर रखा है। लोकतंत्र के नाम पर, गरीबों के नाम पर हमारे प्रधानमंत्री रोज बीन बजाते हैं और अंधभक्त उस पर झूमते हैं। जो नहीं झूमते उन्हें देशद्रोही ठहराकर प्रताड़ित किया जाता है। ऐसा जहरीला प्रवाह देश में कभी निर्माण नहीं हुआ था। अमृत कुंभ का जहर बन गया। उस जहर पर किसी ने टिप्पणी की है तो भाजपा को आत्मचिंतन करने की जरूरत है। महाराष्ट्र की बात की जाए तो उद्धव ठाकरे ने सार्वजनिक रूप से कहा, ‘हमने सांप के बच्चों को ३० साल तक दूध पिलाया, वे बच्चे तब रेंग रहे थे। अब यह हम पर फुफकार रहे हैं।’ सांपों से तुलना करना आम बात है। सांप हमारे जीवन और संस्कृति का हिस्सा हैं। इसलिए भाजपा को इस तरह फुफकार छोड़ने का कोई कारण नहीं है। चाणक्य ने कहा है,
‘दुर्जनस्य च सर्पस्य वरं सर्पो न दुर्जन:
सर्पो दंशति काले तू दुर्जनस्तु पदे पदे।।’
अर्थात दुष्ट मनुष्य और सर्प में अंतर होता है। सांप आपको तभी काटता है, जब उसकी जान को खतरा हो, लेकिन दुष्ट व्यक्ति आपको कदम-कदम पर नुकसान पहुंचाने की कोशिश करेगा। इसलिए ऐसे लोगों से हमेशा दूर रहें। आप इन लोगों पर भरोसा नहीं कर सकते। खड़गे का भी यही कहना होगा। भाजपा को सांप से इतनी नफरत क्यों? सांप को झिड़क कर वे हिंदुत्व का ही अपमान कर रहे हैं। गौमूत्रधारी हिंदुत्ववादियों को खड़गे के जवाब में गले में सांप लटका कर प्रचार में ‘धूम’ मचानी चाहिए। लेकिन ‘सांप सांप’ कहकर श्री खड़गे को घेरने का तरीका अपनाया जा रहा है!

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