नरेंद्र मोदी और उनकी भारतीय जनता पार्टी लोकसभा चुनाव हार रही है इसलिए हिंदू-मुस्लिम खेल खेलकर बची-खुची बहुमत को समेटने के लिए उनकी आखिरी जद्दोजहद चल रही है। भाजपा ने अब अचानक एक अलग विषय छेड़ दिया है। प्रधानमंत्री मोदी के आर्थिक सलाहकार परिषद की ओर से जारी रिपोर्ट के मुताबिक, देश में हिंदुओं की संख्या घटी है और मुसलमानों की संख्या बढ़ी है। मोदी सरकार ने ऐन लोकसभा चुनाव में ही ये रिपोर्ट क्यों जारी की? बिना किसी जनगणना के यह रिपोर्ट किस आधार पर तैयार की गई? और मोदी की हार की आशंका नजर आते ही यह आधारहीन रिपोर्ट क्यों जारी की गई? ऐसे कई सवालात अब खड़े हो गए हैं। मोदी और उनकी पार्टी के पास चुनाव प्रचार के लिए कोई मुद्दा नहीं बचा है, जबकि देश की मेहनतकश जनता महंगाई और बेरोजगारी से जूझ रही है, ऐसे में मोदी को हिंदू-मुसलमान नौटंकी सूझ रही है। मूलरूप से, प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकारों का कार्य देश में आर्थिक स्थिरता लाने के लिए काम करना है। भारत विश्व में आर्थिक रूप से पिछड़ा देश बन गया है। डॉलर की तुलना में रुपए में रोजाना गिरावट जारी है। प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकारों ने ‘रुपए’ को मजबूत करने के लिए क्या किया? बेरोजगारी व महंगाई कम करने और इनके संबंध में नीतियां निर्धारित करने की उम्मीद प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकारों से की जाती है, लेकिन प्रधानमंत्री का आर्थिक सलाहकार बोर्ड देश में हिंदू-मुसलमानों के सिर गिनने और उसके आंकड़े जुटाने में व्यस्त है। देश में पिछले दस वर्षों से मोदी का तथाकथित हिंदुत्ववादी शासन कायम है। इससे पहले भी अटल बिहारी वाजपेयी का शासनकाल पांच-छह साल का था। तो मोदी के ‘अमृत काल’ में क्यों घटी हिंदुओं की आबादी? भाजपा को इसका खुलासा करना चाहिए। जनसंख्या विस्फोट देश के आर्थिक पिछड़ेपन का कारण है इसलिए सरकार द्वारा परिवार नियोजन कार्यक्रम चलाया जाता है। मुसलमानों में बहुविवाह को स्वीकार किया जाता है। भाजपा हिंदू मंडल का मानना है कि इसके चलते बच्चों की संख्या और उनकी आबादी बढ़ती है। इसीलिए मोदी-शाह और अन्य लोग इस बात पर जोर देते हैं कि हमें एक समान नागरिक कानून की जरूरत है और हम इसे लाएंगे; लेकिन यह फंडा वोट पाने के लिए है। अगर मोदी के रहते ‘हिंदू खतरे’ में आ गया है तो इसके लिए खुद मोदी और उनका परिवार जिम्मेदार है। यह तो मानना ही पड़ेगा कि भारत में मुसलमानों की आबादी पाकिस्तान और अन्य इस्लामिक देशों से भी ज्यादा है। प्रधानमंत्री के सलाहकार परिषद को जो ज्ञान की प्राप्ति हुई है वह इसीलिए बकवास साबित होती है। यह भाजपा के प्रचार तंत्र का हिस्सा है। भारत में जनसंख्या संतुलन बना रहे और जनसंख्या असंतुलन के कारण भारत का भूगोल और हिंदू संस्कृति खराब न हो यह राष्ट्रहित में है, लेकिन इसके लिए मोदी और उनकी आग लगाने वाली पार्टियों को माहौल में घी डालने की जरूरत नहीं है! मोदी का विचार है कि मुसलमानों की आबादी बढ़ने के कारण हिंदुओं को उन्हें वोट देना चाहिए और इसी उद्देश्य से प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद को इस काम पर लगा दिया गया है। देश की ‘जीडीपी’ गिर रही है, रसोई गैस, पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ गए हैं। लोगों के लिए घर का चूल्हा जलाना कठिन होता जा रहा है वह केवल मोदी सरकार की गलत आर्थिक नीतियों के कारण, लेकिन प्रधानमंत्री का आर्थिक सलाहकार बोर्ड हिंदू-मुसलमानों की आबादी की गिनती कर रहा है। पिछले कुछ सालों में देश में मुसलमानों की आबादी बढ़ने का मुख्य कारण मोदी काल में हुई घुसपैठ है। चीन पहले ही सीमा तोड़कर लद्दाख में घुस चुका है। इसके फलस्वरूप कश्मीर और असम की सीमाओं के पार से बड़ी संख्या में घुसपैठिये घुस आए, जिससे जनसंख्या का संतुलन बिगड़ गया। मोदी और उनकी रक्षा नीति विफल हो गई है। मोदी की सोच है कि हिंदुओं की आबादी तेजी से बढ़े। लेकिन क्या मोदी और उनके लोगों में इस बढ़ती आबादी को नौकरी, घर, शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाएं देने की क्षमता है? मोदी के युग में हिंदू या मुस्लिम, ईसाई, बौद्ध नहीं, बल्कि देश ही खतरे में आ गया है। मोदी चुनाव हार रहे हैं इसलिए वे हिंदू-मुस्लिम आबादी का मुद्दा प्रचार में ले आए। मोदी हार गए हैं इसलिए उनके आर्थिक सलाहकार भी रुपए की गिरती कीमत पर बात करने की बजाय हिंदू-मुस्लिम आबादी पर बोल रहे हैं।