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संपादकीय : एसटी कर्मचारियों की हड़ताल …दो मुंही सरकार

महाराष्ट्र में जब से शिंदे सरकार सत्ता में आई है, राज्य में आम लोगों की परेशानियां बढ़ती जा रही हैं। शिंदे सरकार को जनता के कल्याण से कोई लेना-देना नहीं है क्योंकि उनके लिए जनकल्याण महज लफ्फाजी से अधिक कुछ नहीं है। एसटी कर्मचारियों की हड़ताल से शासकों की यह लापरवाही फिर सामने आ गई। जिन मांगों को लेकर एसटी कर्मचरियों ने हड़ताल की थी, उन प्रमुख मांगों में एसटी महामंडल का राज्य सरकार में विलय और एसटी कर्मचारियों को राज्य सरकार के कर्मचारियों के समान वेतन है। हालांकि, मुख्यमंत्री महोदय ने ढोल पीटा कि वे एसटी कर्मचारियों की मांगों को लेकर सकारात्मक हैं, लेकिन यह सकारात्मकता उन्होंने पहले क्यों नहीं दिखाई? जब एसटी कर्मचारी विरोध करने को मजबूर हुए तो आपने यह राग अलापा। यदि कर्मचारियों ने हड़ताल का हथियार न उठाया होता तो आपको उनकी जायज मांगें याद न आतीं। एसटी कर्मचारियों को २०१८ से २०२४ तक बढ़े हुए महंगाई भत्ते का बकाया देने से आपको किसने रोका था? सरकार को वार्षिक वेतन वृद्धि का ५८ माह का बकाया, मकान किराया भत्ता का बकाया देने में क्या तकलीफ थी? ‘लाडली बहन’, ‘लाडला भाई’ जैसी सीधे वोटों के लिए ‘प्रलोभनकारी’ योजनाओं के लिए कुछ हजार करोड़ रुपए रखे जाते हैं, लेकिन उनके पास गरीब एसटी वर्करों के हक के वेतन वृद्धि के ४,८४९ करोड़ रुपए के बकाया का भुगतान करने के लिए पैसे नहीं हैं। यहां तक ​​कि एसटी कर्मचारियों को मासिक वेतन भी कभी समय पर नहीं दिया जाता है। शिंदे सरकार ने उनके हक का बकाया भी रोक लिया। अगर कर्मचारी विरोध नहीं तो क्या करेंगे? पिछले साल इसी सरकार ने कोर्ट को हर महीने की ७ से १० तारीख के बीच वेतन देने की गारंटी दी थी। लेकिन सरकार इसे भी भूल गई। एसटी यानी ग्रामीण महाराष्ट्र की जीवन रेखा, आम लोगों की ‘लाल परी’ है, यह सिर्फ कहने भर के लिए है। लेकिन उस जीवन रेखा को जीवित रखने के लिए, ‘लाल परी’ को जिंदा रखने वाले उन एसटी कर्मचारियों के लिए निधि रूपी ‘ऑक्सीजन’ प्रदान नहीं करना है। ऐन गणेशोत्सव के मौके पर हड़ताल किए जाने पर उंगली उठाकर शासक एसटी कर्मचारियों को बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन यह मत भूलिए कि तीन उंगलियां आपकी ही तरफ हैं जिनके चलते ऐसा वक्त आया है। एसटी कर्मचारियों का वर्षों से लंबित बकाया भुगतान करने में सरकार को क्या परेशानी थी? यहां तक ​​कि एक उपमुख्यमंत्री भी एसटी हड़ताल को लेकर मुंह में दही जमाए बैठे हैं और उनके चेले भाजपा विधायक सदाभाऊ खोत तथा गोपीचंद पडलकर खुले तौर पर हड़ताल का समर्थन करते हैं। मुख्यमंत्री जहां हड़ताल खत्म करने की अपील करते रहे, वहीं भाजपा की यह जोड़ी दहाड़ती रही है कि जब तक मांगें पूरी नहीं हो जातीं, तब तक हड़ताल जारी रहेगी। फिर यही ‘गोपीचंद जासूस’ आधी रात को मुख्यमंत्री के साथ ‘गुप्त मसलत’ भी करते हैं। महाविकास आघाडी सरकार के दौरान एसटी के विलय को लेकर हड़ताल पर रहने वाली इन मंडलियों ने पिछले दो वर्षों में यह विलय क्यों नहीं किया? अब उन्हें क्यों एहसास हुआ कि विलय असंभव है? मांगें आपकी हैं, सत्ता भी आपकी है; तो फिर उन्हीं मांगों को लेकर एसटी कर्मचारियों पर हड़ताल करने की नौबत क्यों आई? ये है पाखंडी भाजपा का असली चेहरा। फिलहाल उनका मुखौटा आए दिन फट रहा है। खुद को एसटी कर्मचारियों की मांगों के बारे में सकारात्मक कहने वाले सत्ताधारी दूसरी ओर हड़ताली कर्मचारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का आदेश देते हैं। कॉन्ट्रैक्ट पर ड्राइवरों की भर्ती करने का निर्णय लेते हैं। इस सरकार को न तो एसटी कर्मचारियों की फिक्र है और न ही आम जनता की परवाह है। लाडले गणराया के आगमन और उनकी चातक की तरह प्रतीक्षा करने वाली जनता की श्रद्धा को ठेस पहुंचाने का काम इस दो मुंही सरकार ने किया। इस सरकार को कम से कम इस बात की तो शर्म आए!

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