महाराष्ट्र की फडणवीस-शिंदे सरकार गजब की विज्ञापनबाज सरकार है। खुलासा हुआ है कि अब तक इस सरकार ने खुद के विज्ञापन के लिए ७८६ करोड़ रुपए सरकारी तिजोरी से खर्च किया है। खर्च किया, इसकी बजाय कहना पड़ेगा कि विज्ञापनबाजी पर जनता का पैसा बर्बाद किया गया है। अब तक इस गैर-कानूनी सरकार ने कई विज्ञापन दिए, लेकिन कल मिंधे गुट की ओर से प्रकाशित एक फुल पेज के विज्ञापन से फडणवीस सहित उनके १०५ विधायकों का कलेजा पानी-पानी हो गया है। सभी समाचार पत्रों में करोड़ों रुपए खर्च करके पहले पन्ने पर ‘मोदी-शिंदे’ के फोटो के साथ विज्ञापन प्रकाशित हुआ। इस विज्ञापन में फडणवीस गायब हैं। यह विज्ञापन सरकारी नहीं चुराई गई नकली शिवसेना का है। विज्ञापन में प्रधानमंत्री मोदी की तस्वीर का प्रमुखता से इस्तेमाल किया गया है, जबकि फडणवीस कहीं नजर नहीं आ रहे हैं। विज्ञापन सरकारी नहीं होने के कारण फडणवीस को बगल किया गया, यदि ऐसा उस पर खुलासा दिया जाएगा तो यह सच नहीं है, लेकिन ‘हम ही असली शिवसेना और हम ही हिंदूहृदयसम्राट बालासाहेब ठाकरे के विचारों के उत्तराधिकारी हैं’ कहकर ढोल पीटने वालों के इस विज्ञापन में मोदी हैं, जबकि शिवसेनाप्रमुख बालासाहेब ठाकरे भी पूरी तरह नदारद है। इस बारे में भाजपा और शिंदे गुट के चिल्लर-मिल्लर प्रवक्ताओं का क्या कहना है? एक ही समय पर फडणवीस को झटका देनेवाले और शिवसेनाप्रमुख को नजरअंदाज करनेवाले विज्ञापन का क्या उद्देश्य है? सवाल एक विज्ञापन का नहीं, बल्कि इस बात का है कि खुद को शिवसेना कहनेवालों ने अपने गुट को मोदी के चरणों में नतमस्तक कर दिया है। बालासाहेब ठाकरे आदि कुछ नहीं ‘सब कुछ मोदी’ हैं, ऐसा इस शिंदेछाप विज्ञापन ने संदेश दिया है। विज्ञापन कहता है, ‘देश में मोदी और महाराष्ट्र में शिंदे!’ इसका मतलब मिंधे गुट फडणवीस के १०५ विधायकों को ‘टेकू’ मानने को तैयार नहीं है। दूसरी बात यह कि किसी भी न हुए सर्वेक्षण का हवाला देते हुए विज्ञापन में कहा गया है, ‘श्री एकनाथजी शिंदे को महाराष्ट्र की २६.१ प्रतिशत जनता फिर से मुख्यमंत्री पद पर देखना चाहती है और देवेंद्र फडणवीस को २३.२ फीसदी जनता मुख्यमंत्री पद पर देखना चाहती है।’ इसका मतलब यह हुआ कि पिछले सिर्फ ९-१० महीने में शिंदे ने लोकप्रियता के मामले में फडणवीस को पछाड़ दिया है। देश में मोदी और महाराष्ट्र में शिंदे को लोकप्रिय ठहरानेवाली विज्ञापनबाजी से भाजपावालों का चेहरा महाराष्ट्र में मुरझा गया है। एक साल पहले ‘देश में नरेंद्र और महाराष्ट्र में देवेंद्र’ का प्रचार चल रहा था। उस प्रचार को इस विज्ञापन ने खत्म कर दिया है। सच तो यह है कि भाजपा और मिंधे गुट में खींचतान की राजनीति शुरू हो गई है और अपनी लोकप्रियता के बारे में विज्ञापनबाजी करना मिंधे गुट की झूठी दिलासा है। मूलरूप से गद्दार मिंधे गुट को लोगों का समर्थन नहीं है। लोगों का समर्थन कितना और वैâसा है, अगर इसे आजमाना है तो इसका एकमात्र विकल्प मुंबई सहित १४ महानगरपालिकाओं के चुनाव हैं। लेकिन ‘मिंधे’ मंडल चुनाव से भाग रहा है। जिस ‘सर्वे’ का हवाला दिया जा रहा है, वास्तव में वह कहां किया गया? मुख्यमंत्री शिंदे के कब्जे में मलबार हिल के तीन सरकारी बंगले हैं। ऐसा लगता है कि यह सर्वेक्षण इन तीन बंगलों में किया गया है। मूलरूप से बीच के दौर में प्रतिष्ठित मीडिया समूहों द्वारा जो अधिकृत ‘सर्वे’ कराया गया, उसमें तीन प्रतिशत लोगों ने भी एकनाथ शिंदे के पक्ष में रुझान नहीं दिया। फिर यह २६.१ प्रतिशत जनमत क्या खोके देकर खरीदे गए हैं, ऐसा सवाल लोगों के मन में उठ सकता है। शिंदे ने पिछले नौ-दस महीनों में ऐसा कौन-सा दीप जला दिया कि राज्य के २६ प्रतिशत लोगों ने उनके पक्ष में रुझान दिया? आलंदी में पुलिस ने वारकरियों पर लाठीचार्ज किया। इसलिए प्रदेश के गांव-गांव में आम जनता मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री को श्राप दे रही है। भारतीय जनता पार्टी की बची-खुची प्रतिष्ठा मिंधे शिंदे गुट के कारण धूल में मिल गई, यह सच्चाई है। शिंदे गुट दिल्लीश्वरों का गुलाम बन गया है। यह गुलामी इस हद तक बढ़ गई है कि मोदी और शाह के डर से उन्होंने विज्ञापनों में बालासाहेब ठाकरे की तस्वीर लगाना भी बंद कर दिया। बालासाहेब का नाम भी लेना बंद कर दिया। ऐसे डरपोक लोग अपने को शिवसेना और बालासाहेब ठाकरे का उत्तराधिकारी वगैरह समझते हैं, इसकी जितनी भी निंदा की जाए वह कम है। मूलरूप से भविष्य की तस्वीर यही दिखती है कि २०२४ के बाद देश में मोदी राज नहीं होगा व महाराष्ट्र में सत्ता परिवर्तन होगा तथा आज के गैर-कानूनी शासक भ्रष्टाचार और धोखाधड़ी के मामलों में सलाखों के पीछे होंगे। अब्दुल सत्तार जैसे घोटालेबाज मंत्री किसानों का खून चूस रहे हैं। उनकी फर्जी छापेमारी का मामला दिल्ली तक पहुंच ही गया है। कई भ्रष्ट मंत्रियों को जाना ही पड़ेगा, ऐसी स्थिति है। इसलिए इन भ्रष्ट मंत्रियों के गिरोह प्रमुख मुख्यमंत्री लोकप्रिय वैâसे? यह पूरे महाराष्ट्र के लिए एक सवाल है और इसका जवाब भाजपा के चिल्लर- मिल्लर प्रवक्ताओं को ही देना है। शिवसेनाप्रमुख को केवल १० महीने में भूल जानेवाले इन लोगों से क्या उम्मीद कर सकते हैं? मिंधे गुट की हवाहवाई विज्ञापनबाजी यानी ऊपरी रंग-रोगन है। उनके चेहरे से उड़ा रंग विज्ञापनबाजी से नहीं चमकेगा। चलिए एक अच्छा हुआ कि कल के विज्ञापन ने साफ कर दिया कि शिवसेनाप्रमुख के प्रति उनका प्यार और सम्मान महज दिखावा था। जो बालासाहेब का नहीं हुआ, वह मोदी का क्या होगा? अब तक हम सभी ने बहुत से काल्पनिक विज्ञापन देखे होंगे, लेकिन ऐसा विज्ञापन हुआ नहीं!