किसी प्रतियोगिता में किसी को पछाड़कर पहला स्थान हासिल करना अभिमान और खुशी का क्षण हो सकता है। हालांकि, अलग ही काम में या किसी अनचाहे क्षेत्र में अव्वल स्थान आ रहा है तो वह अभिमान नहीं, बल्कि चिंता का विषय अधिक होता है। हिंदुस्थान के लिहाज से ऐसी ही चिंता बढ़ाने वाली खबर यूएन यानी संयुक्त राष्ट्र से आई है। विश्व जनसंख्या का रिकॉर्ड रखनेवाली संस्था यूएनएफपीए ने घोषणा की है कि जनसंख्या के मामले में चीन को पीछे छोड़कर हिंदुस्थान विश्व का सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश बन गया है। ‘युनाइटेड नेशंस पॉपुलेशन फंड’ नाम की यह संस्था दुनिया के तमाम देशों की आबादी के आंकड़े जुटाती है और उसे घोषित करती रहती है। इस अधिकृत संस्था द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, हिंदुस्थान की जनसंख्या १४२ करोड़ ८६ लाख हो गई है, जबकि चीन की आबादी १४२ करोड़ ५७ लाख है। इसका मतलब हिंदुस्थान में अब चीन की तुलना में लगभग ३० लाख अधिक लोग हैं। पिछले साल चीन की आबादी १४२.६० करोड़ और हिंदुस्थान की जनसंख्या १४०.६६ करोड़ थी। दोनों देशों की जनसंख्या में लगभग दो करोड़ का अंतर था और हिंदुस्थान इस अंतर को पार कर जनसंख्या के मामले में चीन को पीछे छोड़ देगा, ऐसा अनुमान संयुक्त राष्ट्र के इस संगठन ने व्यक्त किया था। लेकिन पिछले सालभर में हिंदुस्थान की जनसंख्या बहुत तेजी से बढ़ी है। पिछले वर्ष यानी वर्ष २०२१-२२ में जनसंख्या वृद्धि दर ०.९ प्रतिशत थी, लेकिन वर्ष २०२२-२३ में हिंदुस्थान की जनसंख्या में लगभग डेढ़ प्रतिशत की वृद्धि हुई। इसीलिए दो साल बाद होनेवाली जनसंख्या वृद्धि का ‘रिकॉर्ड ब्रेक’ का पालना एक वर्ष पहले ही हिल गया। दूसरी तरफ चीन में पिछले वर्ष जनसंख्या वृद्धि की दर में बड़ी गिरावट आई। पिछले साठ वर्षों में शिशु जन्म दर में सबसे बड़ी गिरावट चीन में दर्ज की गई। नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, जनसंख्या के मामले में हिंदुस्थान और चीन क्रमश: पहले और दूसरे स्थान पर हैं, जबकि अमेरिका ३४ करोड़ की आबादी के साथ तीसरे स्थान पर है। इंडोनेशिया चौथे स्थान (२७.७ करोड़) पर है, जबकि पाकिस्तान २४ करोड़ की आबादी के साथ इस सूची में पांचवें स्थान पर है। हर साल ११ जुलाई को पूरी दुनिया में ‘विश्व जनसंख्या दिवस’ मनाया जाता है। इस उपलक्ष्य में स्कूल, कॉलेज और एनजीओ जनसंख्या के बढ़ते भस्मासुर के विषय पर निबंध प्रतियोगिता, संगोष्ठी आदि का आयोजन करते रहते हैं। हालांकि, जनसंख्या की बेतहाशा वृद्धि के खिलाफ होनेवाली यह प्रतियोगिता बुरी तरह पराजित हुई और दुर्भाग्य से जनसंख्या वृद्धि ने ही प्रतियोगिता जीत ली। पूरी दुनिया की आबादी को एक सौ करोड़ तक पहुंचने में करीब दो लाख वर्ष लगे और उसके बाद सिर्फ २१९ वर्ष में सात सौ करोड़ से ज्यादा जनसंख्या का इजाफा दुनियाभर के देशों में हुआ। छह महीने पहले यानी नवंबर २०२२ में दुनिया ने आठ सौ करोड़ जनसंख्या का आंकड़ा पार किया था। बढ़ते ही बढ़ते जा रही जनसंख्या के इस प्रकोप में हिंदुस्थान का सबसे बड़ा हिस्सा हो, इसे क्या कहा जाए? एक बड़ी उपलब्धि के रूप में यह बात तारीफ योग्य नहीं है। ‘दुनिया में सबसे अधिक आबादी वाला देश कौन सा है?’ इस सामान्य-ज्ञान प्रतियोगिता का प्रश्न का उत्तर आज से बदल गया है। जनसंख्या के मामले में चीन को पछाड़कर हिंदुस्थान अब सबसे अधिक आबादी वाला देश बन गया है। यानी आर्थिक महाशक्ति बनने की प्रतियोगिता में अगर हिंदुस्थान को टिके रहना है तो भारी जनसंख्या वृद्धि पर अंकुश लगाना ही होगा। चीन से तुलना अब केवल जनसंख्या के आधार पर करने से नहीं चलेगा। चीन की अर्थव्यवस्था, चीन की औद्योगिक प्रगति, उसके उद्योगों की विकास दर, चीन की प्रति व्यक्ति आय, दुनियाभर में औद्योगिक सामान भेजने की चीन का निर्यात दर इन सभी मामलों में अब हमें चीन से मुकाबला करना होगा। दुनियाभर के सबसे अमीर लोगों की सूची में हिंदुस्थान के मुट्ठीभर नाम होंगे, लेकिन गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करनेवाले लोग, कुपोषण, गरीबी, बेरोजगारी, किसानों की बढ़ती आत्महत्या, ढहते उद्योग, गिरती अर्थव्यवस्था, डॉलर के मुकाबले गिरता रुपया जैसी कई समस्याओं से देश जूझ रहा है, जबकि जनसंख्या वृद्धि के मामले में हम पूरी दुनिया को पीछे छोड़कर आगे जा रहे हैं। यह राजनीति का नहीं, बल्कि सामाजिक विषय है। ‘जनसंख्या में नंबर वन’ या ‘जनसंख्या में सुपर पावर’ यह बड़ाई का नहीं, बल्कि चिंता का विषय है। सरकारी प्रयासों के बजाय सामाजिक भान रखकर स्वस्थ सामाजिक व्यवस्था के लिए अब समाज को ही जनसंख्या वृद्धि के इस ‘सामाजिक ऋण’ को कम करने की पहल करनी चाहिए!