आज तक हिंदुस्थान को दुनिया की सबसे बड़ी युवा आबादी वाले देश के तौर पर नवाजा जाता था। लेकिन अब इस प्रतिष्ठा के साथ-साथ हमारे देश पर ‘सर्वाधिक युवाओं की आत्महत्या वाले देश’ का कलंकित तमगा लगाने की भी नौबत आ गई है। हिंदुस्थान में युवा छात्रों की आत्महत्याएं उग्र रूप ले चुकी हैं। नेशनल क्राइम रिपोर्ट ब्यूरो के आंकड़ों पर आधारित एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, हिंदुस्थान में छात्र आत्महत्याओं की दर में चार फीसदी तक की वृद्धि हुई है। चौंकाने वाली बात यह है कि छात्रों की आत्महत्या के मामले में महाराष्ट्र देश में सबसे आगे है। यह केंद्र की महाशक्ति और महाराष्ट्र की खोकेशक्ति दोनों ही शासन के लिए शर्म की बात है। बेशक, इसके लिए शासकों के पास लोक-लाज रखने वाला संवेदनशील मन होना चाहिए। अन्यथा ऐसी कितनी ही रिपोर्ट आएं-जाएं और कितने ही युवा छात्र, किसान, खेतिहर मजदूर, कामगार या आम लोग आत्महत्या का रास्ता अपना लें, इससे मुर्दार शासकों को क्या फर्क पड़ता है? बुधवार को ‘आईसी-३’ कॉन्प्रâेंस और ‘एक्सपो २०२४’ में जारी रिपोर्ट और उससे सामने आए छात्र आत्महत्या के आंकड़े परेशान करने वाले हैं। २०२२ में देश में १३ हजार ४४ छात्रों ने आत्महत्या की। दस साल पहले देश में छात्र आत्महत्याओं की संख्या ६ हजार ६५४ थी, जो अब दोगुनी से भी ज्यादा १३,४४४ हो गई है। इसीलिए इस पर रोशनी डालने के लिए रिपोर्ट का शीर्षक ‘छात्र आत्महत्या: हिंदुस्थान की बढ़ती महामारी’ दिया गया होगा। दरअसल, हिंदुस्थान में आत्महत्या की दर बढ़ती जा रही है। २०२१ में देश में १ लाख ६४ हजार ३३ लोगों ने आत्महत्या की, जबकि २०२२ में १ लाख ७० हजार ९२४ लोगों ने खुद मौत को गले लगाया है। आत्महत्या के इन आंकड़ों में किसान, बेरोजगार युवा, स्व-रोजगार निर्माण करने वाले व्यावसायिक, वेतनभोगी, कर्मचारी, कामगार जैसे विभिन्न क्षेत्रों के लोग शामिल हैं। लेकिन, कुल आत्महत्याओं में से ७.६ प्रतिशत केवल छात्रों की हैं। छात्र आत्महत्या दर जनसंख्या वृद्धि दर और कुल आत्महत्या दर की तुलना में तेजी से बढ़ रही है। हालांकि, छात्रों की आत्महत्या के ये आंकड़े केवल पुलिस विभाग में दर्ज मामलों के हैं, तब छात्र आत्महत्याओं की संख्या और भी अधिक हो सकती है। इस रिपोर्ट के मुताबिक, २०२२ में महाराष्ट्र में १ हजार ७६४ छात्रों ने आत्महत्या की। इसके बाद तमिलनाडु में १ हजार ४१६ छात्र और मध्य प्रदेश में १ हजार ३४० छात्रों ने मौत को गले लगाया। हालांकि, कोटा शहर जैसा कोचिंग हब वाला राजस्थान इस आंकड़े में दसवें स्थान पर है। शैक्षणिक प्रतिस्पर्धा और उससे छात्रों में बढ़ा मानसिक तनाव, रिजल्ट और एडमिशन के लिए निर्धारित मार्क्स के अत्यंत कठिन लक्ष्य, उन्हें प्राप्त करने में विफलता या संभावित विफलता, आर्थिक तनाव, रैगिंग, गुंडागर्दी, भेदभाव जैसे अनेक कारण छात्रों की बढ़ती आत्महत्याओं के लिए जिम्मेदार हैं। इसके अलावा, माता-पिता की अवास्तविक अपेक्षाओं का बोझ और शैक्षिक असमानता तथा शैक्षणिक संस्थानों में मानसिक तनाव को दूर करने के लिए आवश्यक परामर्श की कमी भी आत्महत्याओं की वजह हैं। शिक्षा में घोर प्रतिस्पर्धा, अंकों की जानलेवा प्रतिस्पर्धा के कारण देश के युवा छात्र आत्महत्या का रास्ता चुन रहे हैं। अगर छात्रों की मानसिकता यह बना दी जाए कि किसी भी परीक्षा या अंकों से ज्यादा आसान है मौत, तो इसका दोष सिर्फ छात्रों पर नहीं मढ़ा जा सकता। छात्र आत्महत्याओं की इस बढ़ती दर के लिए माता-पिता, समाज, शिक्षा प्रणाली और देश की केंद्र व राज्य सरकारें समान रूप से जिम्मेदार हैं। देश में छात्रों की आत्महत्या के आंकड़ों ने किसानों की आत्महत्या के आंकड़ों को पीछे छोड़ दिया है। हालिया रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि भारत में जनसंख्या वृद्धि की तुलना में छात्रों की आत्महत्या दर अधिक है, जो नींद उड़ा देने वाली है। इस बात की चिंता कौन करेगा कि छात्र मृत्यु को गले लगाकर काल के गाल में क्यों समा रहे हैं? और फिर, अगर महाराष्ट्र जैसा देश का सबसे प्रगतिशील राज्य आत्महत्या के मामले में अग्रणी है, तो इसके लिए कौन जिम्मेदार है? शासक लगातार शेखी बघारते रहते हैं कि हिंदुस्थान शीघ्र ही विश्व महाशक्ति, आर्थिक महाशक्ति बन जाएगा। यह महाशक्ति जब बनेगा तब बनेगा। लेकिन उससे पहले ‘युवा आत्महत्याओं के मामले में महाशक्ति’ बनने का कलंक मिट जाना चाहिए!