मुख्यपृष्ठनए समाचारसंपादकीय : गुब्बारा तो फूट ही गया है!

संपादकीय : गुब्बारा तो फूट ही गया है!

भारतीय जनता पार्टी के वित्तीय संरक्षक गौतम भाई अदानी के मामले में देश का माहौल गरमाया हुआ है। व्यवस्था की गई है कि इस मामले में मीडिया न कुछ लिखे और न कुछ बोले, ऐसा स्पष्ट दिखाई दे रहा है। संसद का सत्र चल रहा है और विपक्ष ने लोकसभा के साथ-साथ राज्यसभा का भी कामकाज अवरुद्ध कर दिया है, लेकिन जिसे ‘गोदी मीडिया’ कहा जाता है, वे सभी लोग अलग ही दुनिया में जी रहे हैं। मिंधे केवल महाराष्ट्र में ही नहीं, तो अन्य जगहों पर भी हैं। गौतम अदानी और उनका आर्थिक साम्राज्य का गुब्बारा फूट गया, लेकिन गोदी मीडिया चीन के उस जासूसी गुब्बारे को अहमियत दे रही है जिसे अमेरिका ने अपनी मिसाइल से फोड़ दिया। अदानी के गुब्बारे से ज्यादा चीन के गुब्बारे को अहमियत देनेवाला गोदी मीडिया देश के लिए एक संकट है। अदानी के आर्थिक साम्राज्य में भाजपा ने हवा भरी। इसमें राष्ट्रवाद, हिंदुत्व आदि का सवाल कहां उठता है? लेकिन संघ को लगता है कि अदानी के गुब्बारे फोड़ने के पीछे अंतरराष्ट्रीय के साथ देशद्रोही ताकतों का हाथ है। यह तर्क मजेदार है। जिस स्वतंत्र तेवर वाले पत्रकारों ने अदानी मामले में स्पष्ट राय रखी, उन सभी को विदेशी इशारे पर काम करनेवाला या देशद्रोही करार दिया जा रहा है। इस गुब्बारे को सबसे पहले राहुल गांधी ने ही पिन चुभाई थी। राहुल गांधी ने संसद के अंदर और बाहर अदानी-मोदी के रिश्तों पर कई बार हमला बोला। अर्थशास्त्री रघुरामन राजन ‘भारत जोड़ो’ यात्रा के दौरान श्री गांधी के साथ चले। उस समय हुई चर्चा में गांधी ने कहा, ‘अदानी एक गुब्बारा है और यह जल्द ही फूट जाएगा। गुब्बारा फूट गया है और उस फूटे गुब्बारे में हवा भरने का राष्ट्रीय कार्य नए सिरे से शुरू है। अदानी के कारण एलआईसी और स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को भारी नुकसान उठाना पड़ा। इस मामले की निष्पक्ष जांच हो इसलिए विपक्ष संयुक्त संसदीय समिति गठित करने की मांग कर रहा है। लेकिन प्रधानमंत्री चुप्पी साधे हुए हैं। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की खिल्ली ‘मौनी बाबा’ कहकर उड़ानेवालों का इस तरह से मौन बने रहना, जरा रहस्यमयी है। अदानी मामले में प्रधानमंत्री अपनी ‘मन की बात’ व्यक्त करें, कम-से-कम ‘मन‌ की भड़ास’ निकाल कर विपक्ष पर हमला बोलें, वह भी नहीं। फिर सरकार क्या कर रही है? सरकार इस मामले में विपक्ष में फूट डालने का प्रयास कर रही है। संसद के कामकाज में क्या ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस और तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव को अलग-थलग करने की कोशिश हो रही है। चंद्रशेखर राव रविवार को महाराष्ट्र के नांदेड़ में अपनी पार्टी के विस्तार के लिए आकर गए।‌ ‘अबकी बार किसान सरकार’ का नारा उन्होंने दिया। किसान, मेहनतकशों की समस्याओं पर वे बोले, लेकिन वर्तमान में किसानों के मामले में मोदी सरकार की नीति अमानवीय है। किसानों की जमीनें, बाजार, समितियां आदि का सीधे-सीधे निजीकरण किया जा रहा है। ‘सार्वजनिक कंपनियों का निजीकरण नहीं होने देंगे’, ऐसा चंद्रशेखर कहते हैं; लेकिन मोदी सरकार ने लगभग अधिकांश सार्वजनिक कंपनियों का निजीकरण करके उन्हें अदानी की जेब में डाल दिया। ‘सब भूमि गोपाल की’ की तरह ‘सब कुछ सिर्फ अदानी का’ इस नीति पर मोदी सरकार ने अमल किया और देश को संकट में धकेल दिया। देश की पूरी संपत्ति एक ही उद्योगपति के पास जाना पूंजीवाद का कहर है, इस पर ‘केसीआर’ सावधानीपूर्वक टिप्पणी कर रहे हैं। उन्होंने मोदी पर ध्यान केंद्रित करते हुए कहा, ‘अगर आप ईमानदार हैं तो अदानी की जांच करो।’ भले ही केसीआर ने अदानी के खिलाफ जांच की मांग की, लेकिन वे खुले मैदान में उतरने को तैयार नहीं हैं। राव का असली राजनीतिक बैरी कौन है, भाजपा या कांग्रेस? यह एक बार बता दीजिए।‌ राव की पार्टी के विधायकों को सौ-सौ करोड़ रुपए देकर खरीदने की कोशिश हुई और भाजपा के पास ये पैसे कहां से आए, उसका उत्तर फूटे गुब्बारे में है। किसान की सरकार लानी है तो ‘हिंडेनबर्ग’ द्वारा फोड़े गए गुब्बारे में हवा भरने से नहीं चलेगा। जो चंद्रशेखर राव का वही ममता बनर्जी और उनकी तृणमूल कांग्रेस का। केंद्रीय जांच एजेंसियों ने महाराष्ट्र की तरह सबसे ज्यादा ऊधम मचाया वह प. बंगाल में। ममता के भतीजे अभिषेक बनर्जी का भी छल जारी है, लेकिन ये सभी जांच एजेंसियां हिंडेनबर्ग द्वारा फोड़े गए गुब्बारे के मामले में चुप हैं। ममता और उनकी पार्टी की लोकसभा में अच्छी खासी ताकत है और वह शायद इस मुद्दे पर ठोस भूमिका नहीं ले रही है। यह रहस्य है। यह ममता बनर्जी की छवि और जुझारू छवि के अनुरूप नहीं है। कांग्रेस पार्टी के साथ ममता का झगड़ा हो सकता है, लेकिन हिंडेनबर्ग द्वारा फूटा गुब्बारा ये राष्ट्रीय दृष्टिकोण के लिहाज से महत्वपूर्ण विषय है। भाजपा और उसके देवी-देवताओं के मुखौटे अब उतर चुके हैं। ममता बनर्जी को बदनाम करनेवाली और उनकी सरकार को अस्थिर करने की कोशिश करनेवाली इन ताकतों को मजबूती मिले ऐसा आचरण अब न हो। विपक्ष की एकता की वङ्कामूठ ही मोदी सरकार के खिलाफ सबसे मजबूत हथियार है। केंद्र सरकार भले ही इस हथियार की धार कमजोर करने, वङ्कामूठ को ढीली करने का काम कर रही हो, लेकिन उसे सफलता नहीं मिलनी चाहिए। पहली बार मोदी सरकार संकट में फंसी है, बदनाम हुई है। जनता हिसाब मांग रही है और मोदी के ‘मन की बात’ खामोश है। ऐसे समय में विपक्षी दल वैâसे शांत रह सकते हैं? ‘अदानी’ का गुब्बारा फूट चुका है। फूटे गुब्बारे में हवा भरने का पाप कम-से-कम विपक्ष तो न करे।

अन्य समाचार