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संपादकीय : ‘टैरिफ’ का सोंटा …मैत्री का बुलबुला फूट गया!

प्रधानमंत्री मोदी ने मंगलवार को अपील की कि पूरी दुनिया भारत को एक भरोसेमंद साझेदार के रूप में देख रही है। इसलिए देश के औद्योगिक क्षेत्र को इस अवसर का लाभ उठाना चाहिए। लेकिन उनके परममित्र प्रेसिडेंट ट्रंप ने मोदी के इस विश्वास पर कुठाराघात किया है। ट्रंप महाशय ने अंतत: आयात शुल्क लादने की अपनी धमकी पर अमल कर लिया है। अत: ‘रेसिप्रोकल टैरिफ’ यानी ‘जैसे को तैसा’ कर लागू हो गया है। इस २५ फीसदी आयात शुल्क का असर चीन, कनाडा, मैक्सिको और भारत जैसे देशों पर भी पड़ा है। चीन, कनाडा और मैक्सिको ने प्रतिक्रिया में अमेरिकी माल पर परस्पर शुल्क लगाने की घोषणा की है। ट्रंप के पैâसले पर उनके ‘मित्र’ मोदी क्या कहेंगे? ट्रंप के दोबारा अमेरिकी राष्ट्रपति बनने के तुरंत बाद मोदी ने अमेरिका का दौरा किया था। ट्रंप को गले लगाया था। दोनों ने ‘तेरा गला, मेरा गला’ कहकर अपनी मित्रता की गवाही दी थी। भारत में भी मोदी भक्तों ने इस बात के गुब्बारे हवा में छोड़ दिए थे कि मोदी के चलते, ट्रंप के एकतरफा प्रशासन का असर भारत पर किस तरह नहीं पड़ेगा और मोदी की चाणक्यनीति वैâसे सफल हुई। लेकिन जब से मोदी जी का विमान अमेरिका से उड़ा है, तब से ट्रंप महाशय मोदीभक्तों द्वारा उड़ाए गए
गुब्बारों को फोड़ रहे
हैं। आयात शुल्क यानी ‘रेसिप्रोकल टैरिफ’ लगाने का ट्रंप का ताजा पैâसला भारत के लिए बड़ा झटका है। क्योंकि अमेरिका भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। इसलिए अमेरिका के इस पैâसले का भारतीय उद्योग जगत पर व्यापक असर पड़ेगा। ट्रंप के ‘टैरिफराज’ से मुख्य रूप से आईटी, दवा, ऑटोमोबाइल के साथ-साथ स्टील और एल्युमीनियम समेत टेक्सटाइल सेक्टर पर भारी असर पड़ेगा। ट्रंप पहले ही वीजा नियमों को सख्त कर चुके हैं। जिसके चलते भारतीय आईटी उद्योग के सामने कई समस्याएं खड़ी हैं। अब उस पर आयात शुल्क बढ़ोतरी का भी बढ़ेगा भार बढ़ेगा। भारतीय दवा कंपनियां अमेरिका को सबसे अधिक जेनेरिक दवाएं आपूर्ति करती हैं। इस पैâसले से उनके निर्यात पर असर पड़ेगा। भारतीय ऑटो इंडस्ट्री पहले से ही मंदी जैसे हालात का सामना कर रही है। ‘ट्रंप टैरिफ’ से हालात और खराब हो सकते हैं। भारतीय कपड़ा और वस्त्र उद्योग अमेरिका को बड़ी मात्रा में निर्यात भी करता है। आयात शुल्क के कारण उस भी ब्रेक लगेगा। ट्रंप महोदय के
प्रथम शासनकाल में
उनकी इसी तरह की नीतियों से भारतीय इस्पात उद्योग को झटका लगा था। अब उनके दूसरे कार्यकाल में भी इस उद्योग को इसी तरह खामियाजा भुगतना पड़ेगा। ट्रंप अपने आर्थिक निर्णयों को राष्ट्रीय हित का मुलम्मा चढ़ाते हैं। वे बताते हैं कि उनके इस वैâलकुलेशन से अमेरिकी औद्योगिक क्षेत्र को बढ़ावा मिलेगा। यह तो भविष्य में ही पता चलेगा कि उनका वैâलकुलेशन सही है या नहीं, लेकिन इससे भारत जैसे देश के आर्थिक समीकरण बिगड़ रहे हैं, इसका क्या? टं्रप का दूसरा शासन भारतीय उद्योग और अर्थव्यवस्था में ‘अच्छे दिन’ लाएगा, ट्रंप भारत के लिए बिडेन की तुलना में ‘अधिक सही’ हैं, अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों के दौरान मोदी भक्त इस तरह के रंगीन सपने दिखाते हुए कह रहे थे। लेकिन ये वो ही ट्रंप हैं जो चुने जाने के बाद एक के बाद एक पैâसले लेकर इन सपनों का रंग उतार रहे हैं। उन्होंने भारत पर ‘टैरिफ’ का सोंटा लगाने में कोई ‘आगा-पीछा’ नहीं सोचा। खुद को ट्रंप का परम मित्र बताने वाले हमारे प्रधानमंत्री मोदी अब क्या करेंगे? वे जो करेंगे सो करेंगे, लेकिन ट्रंप के पैâसलों से निश्चित तौर पर मोदी की चाणक्यनीति और ट्रंप मैत्री का बुलबुला फूट गया है, इसमें दो राय नहीं।

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