युवाओं के लिए करियर की राह खोलनेवाली बारहवीं की परीक्षा का परिणाम गुरुवार को घोषित हुआ। इस परीक्षा का विशेष महत्व है, क्योंकि उच्च शिक्षा के नए अवसरों के सभी द्वार बारहवीं के बाद ही खुलते हैं। इसलिए विद्यार्थियों की तरह अभिभावकों का सारा ध्यान बारहवीं के रिजल्ट पर लगा रहता है। विज्ञान, कला और वाणिज्य तीनों शाखाओं से राज्यभर में कुल १४ लाख १६ हजार ३७१ विद्यार्थियों ने बारहवीं की परीक्षा दी थी। इनमें से १२ लाख ९२ हजार ४६८ विद्यार्थी उत्तीर्ण हुए हैं। उत्तीर्ण प्रतिशत ९१.२५ है। पिछले साल की तुलना में राज्य में बारहवीं के परीक्षा परिणाम में २.९७ यानी करीब ३ प्रतिशत की कमी आई है। बीते कुछ वर्षों से नकल मुक्ति अभियान पूरे प्रदेश में प्रभावी ढंग से चलाया जा रहा है। परिणामों में कमी इसी अभियान का ही असर कहना होगा। इसलिए यदि सफल होना है और परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करने हैं तो पढ़ाई के अलावा कोई उपाय नहीं है, युवाओं को अब इसका अहसास हो गया है। यही कारण है कि दसवीं और बारहवीं कक्षा के विद्यार्थी पिछले कुछ वर्षों से अपनी पढ़ाई पर ध्यान देकर ईमानदारी से मेहनत कर रहे हैं और बड़ी सफलता हासिल कर रहे हैं। दसवीं-बारहवीं की परीक्षा हो या प्रतियोगी परीक्षा, फिलहाल नतीजों में लड़कियों का ही बोलबाला अधिक होता है। इस साल बारहवीं के रिजल्ट में भी इसकी पुनरावृत्ति हुई है। बारहवीं की परीक्षा में लड़कियों का उत्तीर्ण प्रतिशत ९३.७३ है, जबकि लड़कों का उत्तीर्ण प्रतिशत ८९.१४ है। यानी लड़कों के मुकाबले ५ प्रतिशत ज्यादा लड़कियां पास हुई हैं। पारिवारिक जिम्मेदारियां, व्यस्तता और व्यवधानों को संभालते हुए भी करियर और पढ़ाई को लेकर लड़कियां ज्यादा गंभीर होती हैं, पिछले कई नतीजों ने यह साबित किया है और इस साल के नतीजे भी यही दर्शा रहे हैं। राज्य शिक्षा बोर्ड के ९ डिविजनों पर गौर करें तो बारहवीं के रिजल्ट में हर साल की तरह कोकण डिविजन ने ही पहली रैंक हासिल की है। कोकण डिविजन का बारहवीं का रिजल्ट सबसे ज्यादा ९६.०१ प्रतिशत रहा है, जबकि मुंबई डिविजन का रिजल्ट सबसे कम ८८.१३ फीसदी रहा। पुणे डिविजन ने ९३.३४, कोल्हापुर ९३.२८, अमरावती ९२.७५, नासिक ९१.६६, संभाजीनगर ९१.८५, लातूर ९०.३७ जबकि नागपुर डिविजन का परीक्षा परिणाम ९०.३५ प्रतिशत रहा है। पहले और नौवें क्रमांक पर रहे डिविजन के परिणामों में तकरीबन ८ फीसदी का अंतर होने के पीछे आखिर क्या कारण हो सकते हैं? हर नतीजों में यह भिन्नता लगातार क्यों दिखाई देती है? इसका आकलन शिक्षा विभाग को करना चाहिए। बारहवीं की परीक्षा में शामिल होनेवाले जो विद्यार्थी विशेष कुशलता के साथ उत्तीर्ण हुए, जिन्हें ९० प्रतिशत से अधिक अंक मिले, उन सभी विद्यार्थियों का अभिनंदन और सराहना की जानी ही चाहिए। लेकिन जो बच्चे जैसे-तैसे अंक हासिल करके उत्तीर्ण हुए या जो ९ प्रतिशत विद्यार्थी इस परीक्षा में अनुत्तीर्ण हो गए, वे भी इसी समाज का हिस्सा हैं। प्रतिशत की घातक प्रतियोगिता में सफल हुए बच्चों का नि:संदेह शानदार करियर होगा। लेकिन इससे कम अंक पाने वाले विद्यार्थियों को भी उनकी पसंद का पाठ्यक्रम चुनने का अवसर मिलना चाहिए। अनुत्तीर्ण विद्यार्थियों को भी पराजय की भावना मन में न रखते हुए जीवन यात्रा में आनेवाली अन्य परीक्षाओं में नया संघर्ष करके जीत हासिल करने की जिद और गतिशीलता लानी चाहिए। `स्किल इंडिया’ जैसे प्रयोग सरकार द्वारा लागू किए जा रहे हैं, लेकिन वे अभी भी कागजों पर ही हैं। क्योंकि आज भी शिक्षा प्रणाली में कौशल या ज्ञान से ज्यादा परीक्षा में प्रतिशत को ही महत्व दिया जाता है। बारहवीं की परीक्षा के नतीजे आने के बाद मेधावी विद्यार्थियों के लिए उच्च शिक्षा के दरवाजे खुल गए। उनको शाबाशी दी जानी चाहिए। लेकिन इस परीक्षा में अनुत्तीर्ण या कम अंक लाने वाले विद्यार्थियों में कौशल और गुण तलाशने की जिम्मेदारी भी सरकार को लेनी चाहिए!