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संपादकीय : सरकार ही लुटेरी है!

पिछले तीन साल में शेयर बाजार में ‘फ्यूचर और ऑप्शन’ ट्रेडिंग से छोटे निवेशकों के १.८ लाख करोड़ रुपए डूब गए, ये करोड़ों रुपए खाने वाले कौन हैं? ऐसा सवाल राहुल गांधी ने ‘सेबी’ से पूछा है। राहुल द्वारा उठाया गया सवाल और मांग सही है। बेशक, इसकी गुंजाइश नहीं है कि गैंडे की खाल वाली सेबी और केंद्र सरकार पर इसका कोई असर पड़ेगा और १.८ लाख करोड़ रुपए लूटने वाली ‘बड़ी मछलियों’ के नामों की घोषणा की जाएगी। दरअसल, राहुल ने जो जानकारी दी है उसे खुद ‘सेबी’ ने अपनी एक रिपोर्ट में जारी किया है। लेकिन केवल स्वीकार कर या रिपोर्ट में सफेद को स्याह कर देने से क्या फायदा? छोटे निवेशकों का यह पैसा उनके पसीने और मेहनत का पैसा है। अगर शेयर बाजार में कुछ लेन-देन के कारण आम लोगों की लाखों करोड़ की मेहनत एक पल में बर्बाद हो जाती है, तो सेबी को इस संबंध में सख्त कार्रवाई करनी चाहिए और देखना चाहिए कि यह खोया हुआ पैसा आम लोगों की जेब में वैâसे वापस आएगा। लेकिन पिछले दस वर्षों में केंद्रीय जांच एजेंसी या सेवी, शेयर बाजार, रिजर्व बैंक और अन्य शीर्ष वित्तीय संस्थान, केंद्र सरकार के ‘पिंजरे के तोते’ बन गए हैं। हुक्मरान जितना कहते हैं, उतना बोलते हैं और जितना चाहते हैं, उतना डोलते हैं! केंद्रीय जांच एजेंसियां ​​राजनेताओं के इशारे पर राजनीतिक विरोधियों के पीछे लग जाती हैं। वे विपक्षी दलों की सरकारों को गिराने और भाजपा या भाजपा प्रायोजित सरकारें लाने की कोशिश करती हैं। रिजर्व बैंक जैसी सर्वोच्च संस्था शासकों की मांग के अनुरूप अपने रिजर्व फंड से लाखों करोड़ रुपए आसानी से बांट देती है। सत्ताधारियों के कृपापात्र उद्योगपतियों पर लगे गंभीर वित्तीय आरोपों के बावजूद सेबी जैसी संस्था अपना कर्तव्य नहीं निभा रही है। अडानी समूह के खिलाफ ‘हिंडनबर्ग’ आरोप, इसमें सेबी की भूमिका, सेबी अध्यक्ष माधवी बुच के खिलाफ गंभीर आरोप और इस पूरे मामले में मोदी सरकार द्वारा बुच को अभय देना, ये सब मोदी सरकार की संदिग्ध आर्थिक नीतियों के अनुरूप हैं। इसलिए, ‘फ्यूचर एंड ऑप्शन’ ट्रेडिंग के कारण आम लोगों के १.८ लाख करोड़ रुपए के नुकसान पर संदेह उठना स्वाभाविक है। जिन लेन-देनों में यह पैसा डूबा है, वे पिछले पांच वर्षों में तेजी से बढ़े हैं और अनियंत्रित हो गए हैं। जिसके चलते आम लोगों के लाखों करोड़ों डूब गये। पिछले दस सालों में भारतीय शेयर बाजार की ‘उछाल’ और ‘गिरावट’ अक्सर संदेह के घेरे में आती रही है। शेयर बाजार, जो पिछले हफ्ते ही ‘ऑल टाइम हाई’ पर पहुंच गया था, अचानक गिर गया और निवेशकों के लगभग २ लाख करोड़ रुपए पानी में बह गए। पिछले महीने भी निवेशकों के १० लाख करोड़ रुपए डूब गये थे। यह मान भी लिया जाए कि शेयर बाजार में निवेश करना जोखिम भरा है, तो सवाल संदिग्ध लेन-देन, आम आदमी की मेहनत के लाखों करोड़ के नुकसान और ‘सेबी’ जैसी संस्थाओं की विश्वसनीयता का है, जिनका काम इस पर नजर रखना और आम निवेशकों को वित्तीय सुरक्षा प्रदान करना है। फ्यूचर और ऑप्शन ट्रेडिंग में आम आदमी की मेहनत के १.८ लाख करोड़ रुपए डूब जाते हैं और सेबी सिर्फ अपनी एक रिपोर्ट में इसका जिक्र करती है। अपनी जिम्मेदारी से हाथ झटक लेती है। राहुल गांधी ने ‘सेबी’ की उसी संदिग्ध भूमिका पर उंगली उठाई है और सेबी से उन ‘बड़ी मछलियों’ के नामों का खुलासा करने की मांग की है, जिन्होंने आम लोगों के १.८ लाख करोड़ रुपये डकार लिए हैं। बेशक सेबी की ओर से ऐसे किसी खुलासे की संभावना नहीं है। जब केंद्र सरकार ही ‘लुटेरी’ हो तो और क्या होगा?

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