मुख्यपृष्ठनए समाचार संपादकीय : यंत्र का भाषण, यंत्रों ने सुना!

 संपादकीय : यंत्र का भाषण, यंत्रों ने सुना!

प्रधानमंत्री मोदी एक अजीब रसायन हैं। यह महान व्यक्ति किस मिट्टी का बना है, वह शोध का विषय होना चाहिए। प्रधानमंत्री मोदी गुरुवार को पूरे दिन मुंबई में फिल्मी सितारों, मशहूर हस्तियों आदि लोगों के बीच थे। उन्होंने मनोरंजन की दुनिया में काफी समय बिताया। शाहरुख खान, आमिर खान, सलमान खान जैसे हिंदी फिल्म उद्योग के लोग अग्रिम पंक्ति में बैठकर मोदी का मनोरंजन की दुनिया पर भाषण सुन रहे थे। कश्मीर में २६ निर्दोष लोग मारे गए हैं। देश अभी भी उस दुख से उबर नहीं पाया है। जिनके घर का सदस्य मारा गया, उस घर में लोग अभी भी सिसक रहे हैं और आंसू बहा रहे हैं। कुल मिलाकर देश पर शोक की छाया है। परदेश में अगर कोई प्रमुख व्यक्ति चला जाता है, तब भी देश में शोक मनाया जाता है। अगर भारत में कोई पूर्व-वर्तमान नेता परलोक सिधार जाता है, तब भी राष्ट्रध्वज को आधे पर लाकर राष्ट्रीय शोक मनाया जाता है और सभी सरकारी, मनोरंजन के कार्यक्रम रद्द कर दिए जाते हैं। इधर, २६ भारतीय नागरिकों की बेरहमी से हत्या कर दी गई, लेकिन सरकार के चेहरे पर न तो शोक है और न ही चिंता। जैसे कुछ हुआ ही न हो, ऐसे सरकार के प्रमुख नेताजी पेश आ रहे हैं। हमारे प्रधानमंत्री को मनोरंजन की दुनिया में रहना पसंद है, लेकिन जब देश पर हमला हो रहा हो, तब शासकों को कुछ नियमों का पालन करना चाहिए। मुंबई में मनोरंजन जगत में मोदी का भाषण टाला जा सकता था या उन्हें ऑडियो-विजुअल माध्यमों के जरिए संदेश दिया जा सकता था, लेकिन मोदी खुद जगमगाते सितारों के बीच अवतरित हुए। उस मौके पर २६ बेगुनाह लोगों की हत्या का गम छोड़कर भाजपा और उसकी महाराष्ट्र सरकार ने मुंबई को सजाया और
प्रधानमंत्री के पोस्टर
लगाए। नतीजतन, मुंबईकरों ने आतंकी हमले की बलि चढ़े लोगों को श्रद्धांजलि अर्पण करनेवाले जो पोस्टर लगाए थे, वे इन चमचमाते पोस्टरों के आगे छिप गए। फिल्मी सितारों के सामने अपने भाषण में मोदी ने कहा, ‘‘इंसानों को रोबोट बनाना नहीं चाहते, बल्कि संवेदनशील बनाना चाहते हैं।’’ प्रधानमंत्री का विचार अच्छा है, लेकिन वे कितने संवेदनशील हैं? यह सवाल अब उठ खड़ा हुआ है। २०१९ में ४० जवानों की हत्या पुलवामा में हो जाने पर भी वह संवेदनशीलता नहीं दिखी और अब जब पहलगाम में आतंकी हमले में २६ नागरिक मारे गए, तब भी उनके लिए संवेदनशीलता नहीं दिखी। कई कारणों से प्रधानमंत्री मोदी मंच पर वैâमरे के सामने रो पड़ते हैं। यहां तक ​​कि वे जोर-जोर से सिसकियां भी भरते हैं। इससे देश भावुक हो जाता है। पुलवामा और पहलगाम हत्याकांड के बाद भी प्रधानमंत्री की आंखों के कोने नम नहीं हुए। इस हमले के बाद वे सबसे पहले चुनाव प्रचार के लिए बिहार गए और कल मुंबई में एक मनोरंजन कार्यक्रम में पहुंच गए। मुंबई में विश्व दृश्य-श्रव्य मनोरंजन शिखर सम्मेलन चल रहा है और उस कार्यक्रम की सफलता के लिए सरकार काफी समय से मेहनत कर रही है। दुनियाभर से इस क्षेत्र के उद्यमी मुंबई आए थे। इसलिए कार्यक्रम रद्द करना भले ही संभव न हो, लेकिन हमारे घर में २६ निर्दोष लोगों की लाशें गिर चुकी हैं और उनकी चिताओं की राख अभी भी धधक रही है। भारत जितना दु:खी है, उतना ही क्रोधित भी है ये दुनियाभर से आए हुए
प्रतिनिधियों को दिखाना
चाहिए था। विश्व ऑडियो-विजुअल एंड एंटरटेंमेंट समिट अर्थात ‘वेव्स’ परिषद से महाराष्ट्र को लाभ होगा। प्रधानमंत्री का भाषण इस संबंध में संकेत देता है। ‘‘भारत की हर गली में एक कहानी छिपी हुई है। हमारे पहाड़ों में संगीत है। यहां की नदियां हमेशा गुनगुनाती रहती हैं। भारत के पास सांस्कृतिक खजाना है। शिक्षा, विज्ञान, संस्कृति, एकता और अखंडता का संगम भारतीय परंपरा में है,’’ ऐसा प्रतिपादन मोदी करते हैं, लेकिन भारतीय पहाड़ों के संगीत को नष्ट करके वहां नफरत का कर्कश गीत किसने शुरू किया है? यहां की नदियां हमेशा गुनगुनाती रहती हैं, लेकिन नदियों के इस मधुर प्रवाह में धार्मिक नफरत का जहर कौन घोल रहा है और इस जहरीले ‘कंटेंट’ को कौन पर्दे पर ला रहा है? भारतीय सिनेमा, संगीत, कहानियां राष्ट्रीय एकता और भारतीय संस्कृति के महान प्रतीक हैं। मनोज कुमार जैसे कलाकारों ने हमेशा अखंड भारत की कहानी को पर्दे पर उतारा। भारतीय मनोरंजन क्षेत्र ने भारत की हर गली के प्रेम की कहानी को पर्दे पर लाने का प्रयास किया है। हालांकि, अब इन प्रेम कहानियों पर प्रतिबंध लग गए हैं। ऑडियो-विजुअल माध्यमों का गला घोंटने का काम चल रहा है। ऐसे में क्या ‘क्रिएट इन इंडिया, क्रिएट फॉर वर्ल्ड’ का सपना सच में साकार हो जाएगा? प्रधानमंत्री मोदी ने ‘वेव्स’ सम्मेलन में कहा कि हम इंसानों को यंत्र (मशीन) नहीं बनने देना चाहते। ये सब तो ठीक है, लेकिन लोगों को अपना अंधभक्त बनाकर गलत बातों का समर्थन करवाना ये इंसानों को मशीन बनाने जैसा ही है। इंसानों को यंत्र बनाने के कारण ही पहलगाम हमले का सूतक इन यंत्रों को नहीं लगा। मनोरंजन के यंत्र के सामने एक यंत्र ने भाषण दिया। ऐसे में दु:ख आदि का कोई सवाल ही नहीं है।

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