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संपादकीय : ऐसा न हो प्रधानमंत्री का भाषण!

प्रधानमंत्री मोदी और उनके लोग आजादी को लेकर कभी गंभीर नहीं रहे। इसलिए स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले से दिया गया प्रधानमंत्री का भाषण ‘बोरिंग’ था। उन्होंने एक ऐसा भाषण दिया जो चुनाव प्रचार सभा में दिया जाना चाहिए। क्या कहते हैं प्रधानमंत्री? कभी आतंकवादी हमारे देश में घुसकर हमें मारते थे। अब सेना सर्जिकल स्ट्राइक करती है, एयर स्ट्राइक करती है। इसलिए देश के युवाओं का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है, ऐसी लफ्फाजी लाल किले से की गई। प्रधानमंत्री का पूरा भाषण कामचलाऊ ही रहा। प्रधानमंत्री ने सेना का महिमामंडन किया, जो उचित ही है। सीमा पर सेना का पहरा है। इसलिए मोदी अपने सरकारी आवास और लाल किले में सुरक्षित हैं। अब प्रधानमंत्री कहते हैं कि पहले दुश्मन हमारे देश में घुसकर हमें मार रहे थे। यह हमारी सेना और सुरक्षा बलों का अपमान है। जब अटलबिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे तब देश में ‘कारगिल’ युद्ध हुआ था और तब पाकिस्तानी सेनाएं घुस आई थीं और कई भारतीय सैनिक अपनी ही धरती पर शहीद हो गए थे। मोदी को कारगिल युद्ध और उसके बाद हुए युद्ध का जिक्र करना चाहिए था। पाकिस्तान के साथ दो युद्ध हुए और उन दोनों युद्धों में भारतीय सेना ने पाकिस्तान को धूल चटाई। १९७१ में ‘आयरन लेडी’ इंदिरा गांधी ने युद्ध की घोषणा कर दी और पाकिस्तान को दो हिस्सों में बांट दिया। इसका एक टुकड़ा आज का बांग्लादेश है। बांग्लादेश की प्रधानमंत्री अब हमारे देश में आ चुकी हैं और मोदी ने शेख हसीना को राजाश्रय दिया है। १९४७ के विभाजन का बदला लेते हुए इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान का विभाजन किया और इस प्रकार विभाजन के शिकार अनगिनत अभागे लोगों की आत्माओं को मोक्ष की प्राप्त हुई। यदि श्रीमान मोदी या शाह ने इंदिरा गांधी की तरह इतना बड़ा काम किया है तो उसे सामने लाना चाहिए। इंदिरा गांधी ने खालिस्तानी उग्रवादियों की परवाह किए बिना अमृतसर में टैंकों से मार्च किया और अंतत: देश के लिए खुद को बलिदान कर दिया। मणिपुर में हिंसा का प्रकोप तीन साल से जारी है और मोदी ने मणिपुर के ‘एम’ का उच्चारण तक नहीं किया है। इसलिए जैसे देश ने पंडित नेहरू, इंदिरा गांधी, लाल बहादुर शास्त्री का जबर्दस्त वक्त देखा, वैसे ही अब देश ने मोदी का समय भी देखा। चीन ने भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ की है और मोदी इसका ठीकरा पंडित नेहरू पर फोड़ते रहते हैं। मोदी के समय में चीन ने लद्दाख तक घुसपैठ की। कई गांवों और हिमालय में सड़कें, पुल, हेलीपैड बना लिए। हमारे ही क्षेत्र में घुसकर हमारे सैनिकों पर हमला किया। पिछले दस सालों में लोगों ने ये बेहद बुरा वक्त अनुभव किया है। मोदी ने लाल किले से यह भी दावा किया कि, ‘इस देश ने ऐसा समय भी देखा है जब ‘हो जाएगा’, ‘किया जाएगा’, ‘यह काम करेगा’, ‘हम कड़ी मेहनत क्यों करें?’ ‘अगली पीढ़ी देख लेगी।’ ‘तुम्हें मौका मिला है, इसका आनंद लो। ‘जो अगला आएगा वह देखेगा।’ प्रधानमंत्री ने शेखी बघारते हुए कहा, ‘लेकिन हमने इस मानसिकता को तोड़ दिया।’ देश की आजादी के बाद यह देश मेहनत से और मजदूरों के पसीने से खड़ा हुआ। अंग्रेजों ने देश को लूटा और जो लोग अंग्रेजों का सामान बांधने, बोझा उठाकर और नाव में रखने का काम कर रहे थे, उन्हीं की अगली पीढ़ी आज दिल्ली और राज्यों में सत्ता में है। मोदी का सत्ता में आना संयोग या दुर्घटना है। मोदी के आने से पहले देश ने उद्योग, विज्ञान, व्यापार, कृषि के क्षेत्र में काफी प्रगति की। नेहरू ने मंदिर-मस्जिद विवाद में पड़े बिना परमाणु रिएक्टर, ऊर्जा, शिक्षा, आईआईटी जैसे संस्थान बनाए। मनमोहन सिंह ने अर्थव्यवस्था का आसमान खुला किया और दुनिया ने हिंदुस्थान में कदम रखे। मोदी और उनके भक्तों के हाथ में एक उन्नत और विकसित देश का सूत्र आया, लेकिन उन्होंने पिछले दस वर्षों में अयोध्या में लीक होते राम मंदिर और ‘जोरदार’ लीक करनेवाली संसद के अलावा नया क्या कर दिखाया है? इस दौरान भारतीय संविधान को तोड़ने, अदालतों और केंद्रीय एजेंसियों पर दबाव डालकर लोकतंत्र और विपक्षी दलों का गला घोंटने का काम हुआ। देश को ऐसा समय भी देखना पड़ा और कब तक देखना पड़ेगा? यह लाल किले के लिए प्रश्नचिह्न है। एक प्रधानमंत्री का भाषण वैâसा नहीं होना चाहिए, इसका अच्छा उदाहरण श्री मोदी ने एक बार फिर पेश किया। वो भी ७८वें स्वतंत्रता दिवस पर। जिनका स्वतंत्रता संग्राम से कोई संबंध नहीं रहा है, उनसे इसके अलावा और क्या अपेक्षा की जा सकती है?

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