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संपादकीय : रस्सी जल गई; बल भी जाएगा!

प्रधानमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी ने दस साल तक संसद के अंदर और बाहर जो किया है, उसे ‘नौटंकी’ कहा जाता है। अब वही मोदी बहुमत खोने के बाद थोड़ा जमीन पर आए और संसद सत्र के पहले ही दिन बोलकर गए कि ‘देश की जनता संसद में नौटंकी, हंगामा और नारेबाजी नहीं चाहती। उन्हें एक अच्छा और जिम्मेदार विपक्ष चाहिए।’ मोदी का ऐसा कहना किसी तानाशाह के गीता पाठ करने जैसा ही है। पिछले दस वर्षों में, मोदी और उनकी गुजराती ईस्ट इंडिया कंपनी ने देश चलाने के नाम पर उत्सव, कार्यक्रम और नाटक ही किए हैं। अब मोदी कहते हैं कि देश को एक जिम्मेदार विपक्षी दल की जरूरत है, लेकिन दस साल में विपक्षी दल को तोड़ने और कमजोर करने का काम मोदी ने ही किया। देश में विपक्षी दल को टिकने ही नहीं देते थे। लोकसभा, राज्यसभा, विधानसभा और बाहर कोई भी जो जनता के मुद्दों पर आवाज उठाएगा, उसे भाजपा में ले आना या जेल में डाल दिया जाना चाहिए। क्या ये मोदी की विपक्ष को मजबूत करने की नीति थी? मोदी ने विपक्षी पार्टी को खत्म करने के लिए केंद्रीय जांच एजेंसियों का इस्तेमाल किया। प. बंगाल, दिल्ली, झारखंड, महाराष्ट्र जैसे राज्यों के मुख्यमंत्रियों, मंत्रियों, विधायकों, सांसदों को जेल में डाल दिया गया। क्योंकि वो भाजपा विरोधी थे। पिछले दस वर्षों में मोदी को यह अहसास ही नहीं हुआ कि विपक्ष की आवाज को बरकरार रखा जाना चाहिए, देश को एक मजबूत विपक्ष की जरूरत है। मोदी एक तानाशाह हैं और पिछले दस वर्षों में उन्हें जबरदस्त बहुमत का अहंकार हो गया था। मोदी और उनकी ईस्ट इंडिया कंपनी ने कल की लोकसभा में अपना बहुमत खो दिया। लोगों ने उन्हें बैसाखियों पर ला दिया। जब राहुल गांधी के नेतृत्व में एक मजबूत विपक्षी दल लोकसभा में पहुंचा तो मोदी को लोकतंत्र वगैरह की याद आई। ‘कौन राहुल गांधी?’ ऐसी चेष्टा करनेवाले मोदी को सोमवार को सांसद पद की शपथ लेते समय पहली बेंच पर बैठे राहुल गांधी और अखिलेश यादव को ‘राम-राम’ करके आगे बढ़ना पड़ा, यह देश में एक मजबूत विपक्षी दल के आने का संकेत है। अर्थात, रस्सी जल गई पर बल नहीं गया की तरह मोदी का व्यवहार है। दस साल में मोदी ने लोकसभा में विपक्ष का नेता नहीं बनने दिया। विपक्ष के नेता के बिना संसद चलाई। अब विपक्ष की ताकत इतनी प्रचंड है कि मोदी की ईस्ट इंडिया कंपनी कितने भी प्रयास कर ले तो भी वह लोकसभा में विपक्ष का नेता चुने जाने से नहीं रोक सकती और यही दर्द उनके और अमित शाह के चेहरे पर साफ झलक रहा है। विपक्षी दल के नाम पर ढोल बजाने वाले मोदी ने एक झटके में लोकसभा और राज्यसभा से करीब १५० सांसदों को निलंबित कर दिया और उस खाली सदन में मोदी अपने ही चमचों से बेंच बजवाते रहे। यह तस्वीर आपातकाल से भी ज्यादा काली थी। मोदी आज भी कांग्रेस को आपातकाल की याद दिलाते हैं, जो नौटंकी का ही एक हिस्सा है। मोदी ने पिछले दस वर्षों में देश का दमन किया। भय और भ्रष्टाचार का शासन चलाया। न्यायालय, राष्ट्रपति भवन, चुनाव आयोग, केंद्रीय एजेंसियां, भारतीय क्रिकेट बोर्ड, केंद्रीय परीक्षा प्रणाली को पूरी तरह से कब्जे में लेकर मनमाने ढंग से शासन किया। आपातकाल में इतनी बुरी स्थिति नहीं थी। ‘नीट’ परीक्षा घोटाले से मोदी और उनकी ईस्ट इंडिया कंपनी का पूरी तरह से वस्त्रहरण हो गया है। हमेशा की तरह मोदी उस घोटाले पर तो चुप हैं, लेकिन लोकतंत्र पर भाषण दे रहे हैं। मोदी ने चेतावनी दी है कि भले ही विपक्ष की ताकत बढ़ गई हो, लेकिन सरकार पर दबाव बनाने की कोशिशें सफल नहीं होंगी। यदि प्रधानमंत्री महोदय संसदीय लोकतंत्र के सिद्धांत जानते तो ऐसी चेतावनी नहीं देते। नीट परीक्षा मामले में पेपर लीक हुआ है और इसमें भाजपा के बड़े लोग शामिल हैं। यह लाखों छात्रों और उनके भविष्य के साथ किया गया खिलवाड़ है। अगर विपक्ष इस मामले में शिक्षा मंत्री प्रधान के इस्तीफे की मांग कर रहा है तो यह उनका राष्ट्रीय कर्तव्य है। मोदी इस दबाव को महसूस करते हैं और इसी वजह से वह अपने विरोधियों पर बरसते नजर आ रहे हैं। १५० सांसदों को निलंबित करने वाले ओम बिरला को दोबारा लोकसभा अध्यक्ष पद पर बिठाकर मोदी लोकतंत्र का अपमान करते हैं और फिर देश को आपातकाल की याद दिलाते हैं। साथ ही सभी को साथ लेकर चलने की बात कहते हैं। यदि ऐसा है तो मोदी को अपने शब्दों पर चलना चाहिए और लोकसभा उपाध्यक्ष का पद २४० की संख्या वाले एक मजबूत जिम्मेदार विरोधी पक्ष को देना चाहिए। तब मोदी सच्चे हैं। चलिए मान लेते हैं कि उनमें बदलाव आ गया है, नहीं तो रस्सी जल गई पर बल कायम है, ऐसा ही कहना पड़ेगा। अर्थात रस्सी तो जल ही चुकी है, बल ऊपर-ऊपर का है। ये बल भी चला जाएगा। यह देश महान है। अयोध्या में राम मंदिर का राजनीतिक उद्घाटन किया। वह राम मंदिर पहली ही बारिश में टपकने लगा और पूरी अयोध्या नगरी बारिश से जलमग्न हो गई है। मोदी और उनके लोगों द्वारा की गई नौटंकियों से भगवान श्रीराम भी नहीं बचे। ये वही लोग हैं, जिन्होंने २०१९ में पुलवामा नरसंहार के जवानों के नाम पर वोट मांगने की नौटंकी की थी और उन्हें इस पर कोई शर्म भी महसूस नहीं हुई। मोदी सरकार के दस साल में देश के लोकतंत्र, आजादी और संविधान का गला घोंट दिया गया। लोकतंत्र का निजीकरण कर दिया गया। मोदी ने अपने दो मित्रों को मालामाल करने के लिए सार्वजनिक उद्यमों को बेचने के लिए निकाल दिया। विपक्षी दल और उनके नेताओं को भी नीलाम किया, लेकिन आखिरकार जनता ने मोदी और उनके लोगों को जमीन पर ला दिया। इसलिए अब मोदी के लिए लोकसभा में मनमानी करना संभव नहीं है। एक मजबूत और जिम्मेदार विपक्षी दल लोकतंत्र के प्रहरी के रूप में संसद में बैठ गया है और ये प्रहरी चोर नहीं हैं। इसलिए मोदी और उनकी ईस्ट इंडिया कंपनी अब कमजोर हो गई है। मोदी की नौटंकियों पर लगाम लगाने की ताकत उनके सामने की मेज पर ही है। मोदी के रोने, नकल करने, अजीब हरकतें करके छाती पीटने, गरीबों का रखवाला होने का ढोंग करने, ये सारा नाटक बंद करनेवाले जिम्मेदार विपक्ष को जनता ने संसद में भेज दिया है। मोदी और उनकी ईस्ट इंडिया कंपनी की यही पीड़ा है। मोदी को हर दिन राहुल गांधी को पहली बेंच पर देखकर राम-राम करते हुए आगे बढ़ना पड़ेगा। यह देश में पिछले दस वर्षों से चली आ रही नौटंकी के पतन की शुरुआत है।

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