जब से मोदी सरकार आई है, पुराने लक्ष्यों-नीतियों से लेकर शहरों के नाम तक सब कुछ ध्वस्त करने का काम जोर-शोर से शुरू है। साथ ही सरकारी कंपनियों, सार्वजनिक उपक्रमों, बैंकों को बेचने और निजीकरण करने की गति तेज है। अब चर्चित खबर के अनुसार, मोदी सरकार फिर से कुछ सरकारी बैंकों को बेचनेवाली है। इसके लिए एक समिति बनाई जाएगी और यह समिति पहले बैंक के निजीकरण की समीक्षा करेगी और फिर बेचे जानेवाले बैंकों की सूची तैयार करेगी। हालांकि, यह पूरा मामला फिलहाल एक प्रक्रिया के रूप में है, फिर भी कुछ सरकारी बैंक निजीकरण के खूंटे में बांधे जाएंगे, यह तय है। पिछले सात-आठ वर्षों में देश की कई सरकारी कंपनियों, बैंकों और सार्वजनिक उपक्रमों को मोदी सरकार की इस नीति का खामियाजा भुगतना पड़ा है। कुछ सरकारी कंपनियां, सार्वजनिक उपक्रम वर्षों से घाटे में चल रहे थे, सरकार के लिए ‘सफेद हाथी’ बन गए थे। ऐसा दावा किया जा रहा था। हालांकि, इन दावों में कुछ हद तक सच्चाई होगी, लेकिन मोदी सरकार की निजीकरण और विनिवेश की प्रक्रिया में पारदर्शिता और खुलेपन का अभाव हमेशा दिखाई दिया है। इसीलिए सरकार की यह नीति, उसके अनुसार लिए गए निर्णय विवादों के घेरे में पड़ गए। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को ‘नवसंजीवनी’ देने का उद्देश्य इस नीति के पीछे होने का दावा और वादा केंद्र सरकार हमेशा करती रहती है। लेकिन ‘ईस्ट इंडिया कंपनी’ के व्यापारिक रवैये से ‘सरकारी स्वामित्व अधिकारों’ की नीलामी मोदी सरकार द्वारा की जा रही है। पिछले वर्ष देश के १० सार्वजनिक बैंकों का निजीकरण करके चार बड़े बैंकों की स्थापना की गई। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने दो साल पहले सार्वजनिक क्षेत्र के दो और बैंकों का निजीकरण करने का संकेत दिया था। लेकिन कोविड लहर के चलते ये बैंक सरकार के झटके से बच गए थे। हालांकि, इसके अलावा कुछ मझोले और छोटे सरकारी बैंकों का अस्तित्व अब खत्म हो सकता है। क्योंकि सरकार के रडार पर बड़े बैंकों के बाद अब मध्यम और छोटे बैंक हैं। मूलरूप से जब से मोदी सरकार सत्ता में आई है, ‘सरकारी संपत्ति बेचो और सरकार चलाओ’ की नीति लागू की जा रही है। इसके लिए सरकारी संपत्तियों के ‘मोनेटाइजेसन’ यानी ‘मुद्रीकरण’ करने की घोषणा की गई। मोदी सरकार के इस मुद्रीकरण की सुनामी में देश का गौरव बने एयर इंडिया, शिपिंग कॉर्पोरेशन जैसी कंपनियों से लेकर सरकारी बैंकों, कंपनियों और सार्वजनिक उपक्रमों, रेलवे और स्टेशनों, हवाई अड्डों, सड़कों, स्टेडियमों, गैस, बिजली, बीमा कंपनियों तक सब अब तक बह गए हैं। सरकारी कंपनियों की जमीनें भी बेची जा रही हैं। नए कृषि कानूनों के माध्यम से कृषि और आम किसानों पर भी निजीकरण का हल चलाने का मोदी सरकार का मंसूबा था, लेकिन देशभर के किसानों की एकजुटता ने इसे विफल कर दिया। सरकारी कंपनियां, बैंक, सार्वजनिक उपक्रम और सैकड़ों अन्य सरकारी संपत्तियां दुर्भाग्य से इतनी भाग्यशाली नहीं रही हैं। मोदी सरकार के निजीकरण के सिलबट्टे के नीचे उनका अस्तित्व और आनेवाली पीढ़ी का भविष्य कुचल दिया गया। देश ने पिछले सात दशकों में जो कुछ भी बनाया और कमाया, वह सब कुछ नष्ट करना और बेच देना। उस पर निजीकरण का सिलबट्टा घुमाना, यही नीति पिछले सात वर्षों में लागू की जा रही है। ‘नवसंजीवनी’ के मुखौटे के पीछे छिपा मोदी सरकार का ‘चेहरा’ इतना भयानक है। लोकतंत्र, अभिव्यक्ति की आजादी, सामाजिक समरसता, जाति-धर्म सद्भाव से लेकर कानून के राज तक हर चीज की ‘नीलामी’ करने का काम यह सरकार कर रही है। इसमें अब कुछ और सरकारी बैंकों का ‘बुलावा’ होगा, बस इतना ही!