राहुल गांधी की सांसदी रद्द करने की नृशंसता मोदी सरकार ने दिखाई है। चोरों को चोर कहने की हिम्मत राहुल द्वारा दिखाए जाने से डरे सत्ताधारियों ने कानूनी कार्रवाई की ये ‘मर्दानगी’ दिखाई है। ‘सभी चोरों का उपनाम मोदी वैâसे?’ ऐसा सवाल राहुल गांधी ने कर्नाटक की एक प्रचार सभा में पूछा था। इस वजह से ‘मोदी नाम’ की मानहानि हुई, ऐसा तय करके गुजरात के एक अलग ही मोदी सूरत कोर्ट पहुंच गए। सूरत की कोर्ट ने इस प्रकरण में राहुल गांधी को दो साल के कारावास की सजा सुनाई। ‘माफी मांगकर मामले को खत्म करें’ ऐसा विकल्प कोर्ट ने श्री गांधी को दिया था। लेकिन गांधी ने माफी नहीं मांगी और जमानत पर रिहा होकर सूरत के पैâसले को चुनौती देने का विकल्प स्वीकार किया। पैâसले के बाद राहुल गांधी का ऐसा कहना है कि ‘सत्य ही मेरा ईश्वर है।’ लेकिन आज के युग में सत्य और ईश्वर दोनों पर ही संकट की तलवार लटक रही है। प्रधानमंत्री मोदी का वर्तमान समय ‘अमृतकाल’ होने की बात कही गई, परंतु इस अमृतकाल में चोरों को चोर कहा इस वजह से सजा दी गई और चोरों को सजा नहीं मिली। ‘गौतम अडानी और मोदी भाई-भाई, देश लूटकर खाई मलाई’ ऐसे नारे फिलहाल संसद में गूंज रहे हैं और दो सप्ताह से संसद बंद पड़ी है। देश लूटनेवाले अडानी के खिलाफ कार्रवाई का नाम नहीं लेकिन चोरों को चोर कहने के कारण सत्ताधारी पक्ष ने न्यायालय के कंधे से राहुल गांधी पर गोली चलाई है। इससे पहले अवमानना मामले में दो साल की सजा सुनाए जाने का उदाहरण हमारे देश में नहीं है, परंतु राहुल गांधी बदनामी प्रकरण का मुकदमा अपवाद सिद्ध हुआ है। राहुल गांधी ने माफी नहीं मांगी और बेखौफ होकर सजा का सामना किया। ‘माफी मांगने को वे कोई सावरकर नहीं हैं’, ऐसा कांग्रेस के लोग कहते हैं। अर्थात इस तरह से अपने दिमागी दिवालियेपन का दर्शन करानेवालों को यह बात समझ लेनी चाहिए कि सावरकर को अंग्रेज सरकार ने दोहरे आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। इस तरह की सजा सुनाए जानेवाले वे एकमात्र क्रांतिकारी थे। वीर सावरकर को अंडमान की कालकोठरी में बंद कर दिया और वहां से दोबारा अपनी जन्मभूमि में वापस आने की संभावना नहीं थी। राहुल गांधी को अपील करने व सजा पर स्थगिती लाने का मौका कानून से मिला, वैसी सहूलियत सावरकर जैसे क्रांतिकारियों को उस दौर में नहीं थी। सावरकर ने दस वर्ष तक काले पानी की सजा भोगने पर बाहर आने के लिए प्रयास शुरू किए और उन्हें ऐसा प्रयास करना चाहिए, ऐसा महात्मा गांधी, सरदार पटेल से लेकर सभी का ही कहना था। अंग्रेजों ने सावरकर को पचास वर्ष के कालेपानी की सजा सुनाई, जो कि उनके एक खतरनाक क्रांतिकारी देशभक्त होने की वजह से। सशक्त ब्रिटिश सरकार को सावरकर से डर लगता था इसलिए उन्होंने पचास वर्षों के लिए उन्हें अंडमान की कालकोठरी में ले जाकर बंद किया। इस वजह से गांधी (आज के) के भक्तों को मोदी के अंधभक्तों जैसा बर्ताव नहीं करना चाहिए। राहुल गांधी लड़ रहे हैं और निडरता से मोदी के जहरीले अमृतकाल का सामना कर रहे हैं। इसके लिए वे सराहना के पात्र हैं। राहुल गांधी ने नीरव मोदी व ललित मोदी को चोर कहा व पूरा देश आज अडानी को चोर कह रहा है। इनमें से एक भी चोर के खिलाफ अभी तक कार्रवाई नहीं हो सकी है। लेकिन सूरत के न्यायालय ने कानून और मर्यादा का उल्लंघन करते हुए मानहानि प्रकरण में गांधी को दो साल की सजा सुना दी है। किसी व्यक्ति की बदनामी हुई होगी तो धारा ५०० के तहत ऐसा मुकदमा दायर किया जाता है। जिस व्यक्ति के संदर्भ में टिप्पणी की गई, उसी व्यक्ति को मुकदमा दर्ज करना चाहिए। किसी समूह के लिए टिप्पणी की गई होगी तो वह व्यक्तिगत बदनामी नहीं होती है। परंतु सूरत प्रकरण में नीरव, ललित व नरेंद्र मोदी के खिलाफ टिप्पणी किए जाने के बावजूद चौथा ही मोदी सामने आ गया और उसने मोदी की बदनामी हुई, ऐसा कहकर मानहानि का मुकदमा दायर किया। गुजरात के न्यायालय ने यह स्वीकार किया और राहुल गांधी को दोषी ठहराया। मोदी चोर हैं, ऐसा राहुल गांधी ने कहा। लेकिन वे डरपोक भी हैं, यह फिर सिद्ध हुआ है। अर्थात जो बात देश को कहने के लिए करोड़ों रुपए खर्च करने पड़ते, वो बात गुजरात स्थित सूरत के न्यायालय ने देश भर में मुफ्त में पहुंचा दी। मीडिया पर पाबंदी है, परंतु सूरत के न्यायालय ने कुछ समय के लिए मानो बंधन हटाकर ‘मोदी असल में कौन हैं?’ ऐसा देश को दिखा दिया। देश में भ्रष्टाचार को दबाने के लिए लोकतंत्र और न्यायपालिका का यह गला घोंटने जैसा है। जनप्रतिनिधि कानून के अनुसार, दो वर्ष अथवा उससे ज्यादा कारावास की सजा सुनाए गए व्यक्ति दोषी ठहराए जाने की तारीख से अपात्र ठहराया जा सकता है। इस नियम की आड़ लेते हुए राहुल गांधी की सांसदी सरकार ने रद्द कर दी। मानहानि के इस प्रकरण से देश का सियासी माहौल गंभीर हो गया है। प्रधानमंत्री ने जिस ‘अमृतकाल’ का उल्लेख किया, उस अमृतकाल में प्रतिदिन विष के फौव्वारे उड़ रहे हैं। न्यायालय स्वतंत्रता और लोकतंत्र की मानहानि हो रही है। मोदीकाल अमृतकाल न होकर हुकुमशाही का आतंककाल लगे, ऐसी अवस्था है। इजराइल देश में भी यही चल रहा है। इजराइल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू हमारे मोदी के ‘यार-दोस्त’ हैं। न्याय तंत्र में मौलिक परिवर्तन लानेवाले कई कानूनों में से पहला कानून इजराइल की संसद ने जबरदस्ती मंजूर किया। इस कानून के कारण अब प्रधानमंत्री नेतन्याहू को उनके खिलाफ भ्रष्टाचार का मुकदमा चलता होगा, तब भी पद पर कायम रहा जा सकता है। सबसे महत्वपूर्ण मतलब सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिया गया कोई भी पैâसला बदलने का अधिकार संसद को बहाल करने की नेतन्याहू की मंशा है। हमारे मोदी की भी यही मंशा है और उनके कदम उसी दिशा में बढ़ रहे हैं। सूरत की अदालत का पैâसला ‘नेतन्याहू पैटर्न’ लागू करने की शुरुआत है। कानून के प्रावधानों का सहारा लेते हुए राहुल गांधी की सांसदी रद्द करने का मोदी सरकार का निर्णय इस पैटर्न के अनुरूप ही है।