डोनाल्ड ट्रंप प्राणघातक हमले में बाल-बाल बच गए हैं। ट्रंप की हत्या का प्रयास किया गया, लेकिन हत्यारे का निशाना चूक गया। गोली ट्रंप के कान को छूती हुई निकल गई। अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में इस तरह खून के छींटे उड़े हैं। अमेरिका में नवंबर में चुनाव होंगे इसलिए रणक्षेत्र गरमा गया है। उस गर्माए माहौल में रिपब्लिकन उम्मीदवार ट्रंप पर गोलीबारी ठीक नहीं है। इस तरह से अमेरिकी कानून और व्यवस्था की धज्जियां उड़कर दुनिया के चौराहे पर लटक गई हैं। दुनिया के कई देशों के कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी अमेरिका लेता रहा है। कानून व्यवस्था की कमी का बहाना बनाकर इराक, अफगानिस्तान और लीबिया की सरकारें उखाड़ फेंकी गईं और राष्ट्राध्यक्षों की हत्या कर दी गई, लेकिन अमेरिका के मामले में दीया तले अंधेरा है। इससे पहले, एक उम्दा राष्ट्रपति जॉन एफ. कैनेडी की हत्या कर दी गई। कैनेडी की हत्या आज भी एक रहस्य है। पूर्व राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन पर भी वॉशिंगटन में सरेआम गोलीबारी की गई थी। अब पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप को मारने की कोशिश की गई। ८१ साल के ट्रंप बाल-बाल बच गए। हत्यारे का निशाना सही था। ट्रंप की गर्दन घूम गई और गोली उनके कान को छूती हुई निकल गई। खून से सना गोरा चेहरा ट्रंप के वैंâपेन का पोस्टर बन गया है। अमेरिका में बेरोजगारी, ड्रग्स, आपराधिक गिरोहों ने लोगों का जीवन दूभर कर दिया है। पिछले कुछ दिनों में कई जगहों पर, खासकर स्कूलों और सार्वजनिक स्थलों पर अंधाधुंध गोलीबारी में कई लोगों की जान चली गई है, लेकिन ट्रंप पूर्व राष्ट्रपति हैं और वह कल होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में उम्मीदवार हैं। उनके पास सीक्रेट सर्विस की विशेष सुरक्षा व्यवस्था है। ऐसे समय में, यह धक्कादायक बात है कि एक हत्यारा एक रैली में ट्रंप पर गोली चलाता है। सीक्रेट सर्विस के जवानों ने ट्रंप पर गोली चलाने वाले युवक की गोली मारकर हत्या कर दी। जिसकी वजह से बहुत सी चीजें अंधेरे में रह गर्इं। ट्रंप एक नाटकीय व्यक्ति हैं। वे इस घटना को पूरी तरह से भुनाने में लग गए हैं। चूंकि ट्रंप मोदी के मित्र हैं, आप उनसे क्या अलग करने की उम्मीद कर सकते हैं? ट्रंप कहते हैं, ‘पेंसिल्वेनिया में एक प्रचार सभा में हत्या का प्रयास एक अवास्तविक अनुभव था। उस वक्त मेरी मृत्यु निश्चित थी। केवल भाग्य या भगवान ने ही मुझे बचाया।’ ट्रंप आगे कहते हैं, ‘सबसे अहम बात यह है कि मैं सही समय पर बस इतना ही मुड़ा। नहीं तो जो गोली कान से लगकर निकली वह गोली मेरी जान ले लेती।’ ट्रंप बच गए यह उनकी किस्मत ही थी यह कहना पड़ेगा। इसमें उनके कौन से पुण्य कार्य थे यह तो अमेरिका की जनता ही जानती होगी, लेकिन जब ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति थे उस वक्त उनके भीड़ तंत्र का शासन और उनकी जिंदगी के अन्य प्रपंचों को उनके पुण्य कर्मों में नहीं जोड़ा जा सकता। जब ट्रंप चुनाव हार गए और बाइडेन जीत गए, तो ये सज्जन जनमत का सम्मान करते हुए आसानी से सत्ता छोड़ने को तैयार नहीं थे। इसके उलट, उन्होंने अपने समर्थकों की हिंसक टोलियां व्हाइट हाउस में घुसाकर दंगा मचा दिया था। ट्रंप का स्वभाव ऐसा ही है। ट्रंप पर कई आरोप और अपराध हैं और इसी दौरान उन्हें गिरफ्तार भी किया गया था। वे फिर से राष्ट्रपति चुनाव में उतरे और माहौल है कि ट्रंप ही जीतेंगे। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने ट्रंप पर हुए हमले की निंदा की। बाइडेन ने कहा, आफत की इस घड़ी में एकता बनाए रखनी चाहिए। अब राजनीतिक विवादों को किनारे रखने का वक्त है। ट्रंप पर हमले से मोदी का चिंतित होना स्वाभाविक है। मोदी और ट्रंप एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। मोदी दुखी हैं और उन्होंने इसे जाहिर भी किया। मोदी का कहना है कि राजनीति और लोकतंत्र में बदले और हिंसा की कोई जगह नहीं है, लेकिन भारत में उनकी नीति बिल्कुल उलट है। हिंसा की कोई जगह नहीं होनी चाहिए। गाजा पट्टी और यूक्रेन में हर दिन सैकड़ों निर्दोष लोग मारे जा रहे हैं। उन जगहों पर हालात इतने भयावह हो गए हैं कि क्या यहां के लोग बच पाएंगे? ऐसा सवाल खड़ा हो रहा है। भारत के मणिपुर में हिंसा की आग बुझने का नाम नहीं ले रही है। कई बच्चे बेसहारा होकर शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं। उनकी चिंता न तो मोदी, न ट्रंप और न बाइडेन को है; लेकिन ट्रंप के कान से बही खून की चार बूंदों से सबकी सांसें घुट गर्इं। चिंता और दर्द में भी असमानता है वह इस तरह। ट्रंप को दीर्घायु प्राप्त हो, लेकिन मणिपुर, गाजा, यूक्रेन के लोगों को भी जीने का अधिकार मिले!