महाराष्ट्र सहित पूरे देश में फिलहाल भारतीय सेना द्वारा पाकिस्तान के खिलाफ किए गए अद्वितीय हवाई हमले की ही चर्चा हो रही है। समाचार माध्यम और सोशल मीडिया पर भी इसी कार्रवाई और उस पर आ रही प्रतिक्रियाओं का बोलबाला है। यह सब स्वाभाविक भी है, लेकिन प्रमुख रूप से महाराष्ट्र के सत्ताधारियों को इस स्थिति में बेमौसम बारिश के संकट का भी भान रखना जरूरी है। पिछले चार-पांच दिनों से राज्य के विभिन्न हिस्सों में जोरदार बेमौसम बारिश, तेज हवाएं और ओलावृष्टि जारी है। इससे खेतों में खड़ी फसलों को भारी नुकसान हुआ है। मौसम विभाग के पूर्वानुमान के अनुसार अगले तीन-चार दिनों तक यह बेमौसम बारिश का संकट महाराष्ट्र को झेलना पड़ेगा। केरल से लेकर महाराष्ट्र तक बने कम दबाव के क्षेत्र के कारण यह आपदा महाराष्ट्र समेत कुछ अन्य राज्यों पर भी मंडरा रही है। महाराष्ट्र के कोकण, मराठवाड़ा, विदर्भ, पश्चिम महाराष्ट्र और उत्तर महाराष्ट्र जैसे सभी क्षेत्रों में बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि से फसलों और बाग-बगीचों को भारी नुकसान हुआ है। खासकर, रबी की फसलों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचा है। राज्य के २१ जिलों में करीब ९७ हजार हेक्टेयर जमीन पर
फसलों को नुकसान
हुआ है। प्याज, अरहर आदि हरीभरी फसलें प्रभावित हुई हैं। विदर्भ में जो फसलें कटाई और मड़ाई के लिए तैयार थीं, वे पूरी तरह नष्ट हो गई हैं। कोकण में आम पर फूल कीड़े और फलों पर कीटाणु के प्रकोप की आशंका है। काजू पर ढेकण्या रोग का भी खतरा है। पालघर जिले में सुपारी के बागान और सब्जियों को नुकसान हुआ है। नासिक जिले में करीब डेढ़ हजार हेक्टेयर बाग-बगीचों और फसलों को नुकसान पहुंचा है, जिसमें खासकर प्याज, गेहूं और टमाटर शामिल हैं। साथ ही अंगूर, आम और अनार की फसलों को भी भारी नुकसान हुआ है। रायगड जिले में बेचारे र्इंट भट्ठोंवालों को भी आर्थिक नुकसान झेलना पड़ा है। पिछले कुछ वर्षों से महाराष्ट्र और यहां के किसानों को हर साल इस तरह की बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि की मार झेलनी पड़ रही है। मौसम विभाग अनुमान जताता है और सरकार हमेशा की तरह किसानों को सावधानी बरतने की सलाह देकर पल्ला झाड़ लेती है। अंत में प्रत्यक्ष नुकसान तो किसानों को ही उठाना पड़ता है। नुकसान के बाद पंचनामे (सर्वे) से लेकर मुआवजे के धनादेश हाथ में आने तक की प्रक्रिया में इतना विलंब होता है कि किसान सोचते हैं कि ‘बेमौसम बारिश तो चल गया, लेकिन
सरकार की नुकसान भरपाई
नहीं’ ऐसी गंभीर स्थिति किसानों की हो चुकी होती है। इतना सबकुछ सहने के बाद भी कई किसानों के हाथ में मुआवजे के नाम पर ३०-३५ रुपए के चेक थमा दिए जाते हैं। बेमौसम वर्षा से होनेवाले नुकसान और उसके बाद सरकारी तंत्र की ओर से मुआवजे के नाम पर किए जाने वाला यह क्रूर मजाक अब महाराष्ट्र के किसानों के लिए हर वर्ष की नियति बन चुकी है। इस वर्ष भी स्थिति कुछ अलग नहीं है। पिछले आठ दिनों से बेमौसम वर्षा, तेज हवाएं और ओलावृष्टि से भारी नुकसान राज्य के बड़े हिस्से में हो रहा है। इसके चलते एक लाख से अधिक हेक्टेयर की फसलों पर संकट है। किसानों को होनेवाले इस नुकसान का राज्य के सत्ताधारियों को कोई बोध है क्या? कई जगहों पर खेतों की फसलें बेमौसम वर्षा से धराशायी होने के बावजूद प्रशासन की ओर से ‘नुकसान नहीं हुआ’ जैसी रिपोर्ट प्राथमिक सर्वे में भेजने की शिकायतें सामने आ रही हैं। मुंह से ‘किसान प्रथम’ कहनेवाले इन सत्ताधारियों के कर्म पूरी तरह से किसान विरोधी हैं। किसानों से किए गए कर्जमाफी के वादे इन लोगों ने पहले ही ठंडे बस्ते में डाल ही दिए हैं। अब कम से कम बेमौसम वर्षा से पीड़ित किसानों को तो ऐसे बेसहारा मत छोड़ो।