गरीबों की गलतियों की तुलना में
बड़े लोगों का पाप ही लोगों को अधिक भोगना पड़ता है
– लोकमान्य तिलक
तिलक की पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में प्रधानमंत्री मोदी पुणे आनेवाले हैं। उनके स्वागत के लिए भव्य पंडाल, गलीचा वगैरह बिछाया गया है। लोकमान्य तिलक पुरस्कार से उन्हें सम्मानित किया जाना है। पुणे में हमारे प्रधानमंत्री मोदी श्रीमंत दगड़ूशेठ गणपति के दर्शन करके विधिवत पूजा-अर्चना, अभिषेक, आरती आदि करनेवाले हैं। पुणे दौरे का वे पूरी तरह से सियासी इस्तेमाल करेंगे क्योंकि कसबा की पराजय भाजपा के लिए झकझोरने वाली है। इसलिए मोदी के दौरे पर भाजपा खुद की ही महाआरती करवाएगी। ये सब वे करेंगे इसमें किसी को कोई एतराज करने की कोई वजह नहीं है। परंतु पुरस्कार समारोह में श्रीमान शरद पवार विशेष तौर पर मंच पर उपस्थित रहेंगे और शरद पवार के हाथों से मोदी को पुरस्कार, तिलक पगड़ी देकर सम्मानित किया जाएगा। विवाद की चिंगारी यहीं से भड़की है। प्रधानमंत्री मोदी से पहले यह पुरस्कार इंदिरा गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी, मनमोहन सिंह, सायरस पूनावाला, एस.एम. जोशी ऐसे महान लोगों को दिया गया है। इन लोगों के कारण पुरस्कार भी बड़ा बना। मोदी आज प्रधानमंत्री हैं। उन्होंने जनता में देशभक्ति की भावना जगाई। भारत को आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास शुरू किया और इन्हीं वजहों से उन्हें तिलक पुरस्कार दिया जा रहा है। हिंद स्वराज्य ट्रस्ट पर सुशील कुमार शिंदे से लेकर कई लोग कांग्रेस के विचारों वाले हैं। उनमें शरद पवार भी हैं और कांग्रेस आदि लोगों ने मिलकर मोदी को तिलक पुरस्कार दिए जाने की घोषणा की तथा मोदी ने इसे स्वीकार भी किया। मोदी को तिलक पुरस्कार न दें, ऐसा कई लोगों का कहना है, परंतु तिलक परिवार काफी हद तक भाजपाई हो गया है। इसलिए तिलक के विचारों से संबंध नहीं होनेवालों को भी पुरस्कार दिया जा रहा है। अर्थात विचार भिन्नता होगी फिर भी उनमें उपलब्धि राष्ट्र सेवा होगी तो देने में कोई हर्ज नहीं है। लेकिन मोदी को पुरस्कार देने में एक प्रकार की अपरिहार्यता नजर आ रही है। तिलक के संघर्ष से हासिल किए गए स्वराज्य को गुलामी की बेड़ियों में जकड़ने का प्रयास करनेवाले नेताओं को तिलक के नाम पर पुरस्कार देना, उस पुरस्कार के लिए ऐसे नाम की सिफारिश करना ही आश्चर्यकारक है। ऐसे समय में तिलक का ही एक वचन हमें याद आता है। ‘ऐसा कोई धंधा अथवा आश्रम नहीं है, जहां जालसाजों अथवा अयोग्य पुरुषों ने उसमें अपना प्रवेश नहीं करवाया हो। फिर वह राज करने का धंधा हो अथवा भीख मांगने का धंधा हो।’ तिलक ने जो कहा वह आज प्रतिदिन घटित हो रहा है। अब मुख्य मुद्दे की ओर बढ़ते हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने कुछ दिन पहले श्री शरद पवार की राष्ट्रवादी पार्टी पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया। शरद पवार के लोग भ्रष्टाचारी और लुटेरे हैं, इस तरह से उन्होंने हजारों करोड़ का आंकड़ा रखकर बताया। आज तिलक पुरस्कार स्वीकार करते समय ये तमाम भ्रष्टाचारी वगैरह लोग पुणे में मोदी से सटकर बैठनेवाले हैं और श्री शरद पवार तो मोदी का सम्मान करेंगे। वे इस समारोह के मुख्य अतिथि हैं। प्रधानमंत्री को भ्रष्टाचार के संबंध में यदि थोड़ी भी चिढ़ होती तो ‘ऐसे भ्रष्ट वगैरह लोगों के हाथ से मैं तिलक के नाम का पुरस्कार स्वीकार नहीं करूंगा और इनमें से एक भी व्यक्ति की मंच पर अथवा पंडाल में जरूरत नहीं होनी चाहिए’, ऐसा उन्हें आयोजकों को साफतौर पर कहना चाहिए था। मोदी कल तक जिन्हें भ्रष्ट मानते थे, वे मोदी का सम्मान करेंगे। मोदी उसे स्वीकार करेंगे। इसका दूसरा अर्थ ये है कि मोदी व उनके लोगों द्वारा लगाए गए भ्रष्टाचार के आरोप झूठे ही हैं और सिर्फ पार्टी तोड़ने के लिए ही उन्होंने आरोप लगाए तथा लोगों में भय निर्माण किया। दूसरा आश्चर्य यह है कि श्रीमान शरद पवार। महीने भर पहले मोदी ने ही शरद पवार की पार्टी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए व तुरंत उनकी पार्टी तोड़ दी। महाराष्ट्र की राजनीति को दलदल बनाकर छोड़ दिया, फिर भी शरद पवार पुणे में आज एक कार्यक्रम में उपस्थित रहकर मोदी की आवभगत करेंगे। ये कुछ लोगों को जंच नहीं रहा है। असल में तो लोगों के मन में अपने प्रति मौजूद आशंका को दूर करने का अच्छा अवसर इस कार्यक्रम से मुंह फेरकर शरद पवार साध सकते थे। अब शरद पवार का ऐसा कहना है कि तीन महीने पहले ही हमें उनके इस कार्यक्रम का निमंत्रण दिए जाने के कारण मुझे उपस्थित रहना होगा। लेकिन पुणे में आने से पहले मोदी ने उनके इस विशेष निमंत्रक की पार्टी तोड़कर भाजपा में समाहित कर ली थी। इसके निषेध के दौर पर शरद पवार अनुपस्थित रहे होते तो उनके नेतृत्व, हिम्मत की दाद सह्याद्रि ने दी होगी। लोकमान्य तिलक ने कहा है, ‘समाज का अगुआ होने के लिए विद्वत्ता की तुलना में सदाचार, धर्मनिष्ठा और स्वार्थ त्याग की अधिक जरूरत पड़ती है।’ इसकी आज याद आती है। श्री शरद पवार ‘मराठा’ हैं और शरद पवार मतलब आशादायक चेहरा, ऐसा वे खुद ही कहते हैं। तो ऐसे में उनसे अलग ही आशादायी भूमिका की अपेक्षा है। देश मोदी की तानाशाही के खिलाफ लड़ रहा है और उस संघर्ष के लिए ‘इंडिया’ नामक आक्रामक आघाड़ी तैयार हुई है। श्री शरद पवार उस आघाड़ी में महत्वपूर्ण सेनापति हैं। मोदी के पुणे में रहने के दौरान वहां संसद में दिल्ली सरकार के लोकतांत्रिक अधिकार खत्म करके सर्वोच्च न्यायालय के पैâसले को रौंदते हुए विधानमंडल के अधिकार पर हमला करनेवाला विधेयक संसद में मंजूरी के लिए लाया जा रहा है, ऐसी तानाशाही प्रवृत्ति वाला विधेयक लानेवाले श्री मोदी स्वतंत्रता सेनानी लोकमान्य तिलक के नाम का पुरस्कार लेंगे और श्री शरद पवार संसद में विधेयक का विरोध करने के लिए उपस्थित रहने की बजाय मोदी को पुरस्कार देंगे, यह पवार के चाहनेवालों को पसंद नहीं आएगा। देश में आजादी की दूसरी लड़ाई चल रही है। ऐसे में श्री शरद पवार जैसे वरिष्ठ नेता से लोगों की अलग अपेक्षा है। प्रधानमंत्री मोदी तीन महीने से मणिपुर में चल रही हिंसा पर आज तक कुछ भी बोलने को तैयार नहीं हैं। मणिपुर में आदिवासी महिलाओं की नग्न परेड निकाली गई, फिर भी प्रधानमंत्री मौन हैं। देश के नायक का संकट के समय मौन रहना राष्ट्र के हित में नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी के पुणे दौरे पर ९३ वर्षीय डॉ. बाबा अढाव के नेतृत्व में ‘इंडिया प्रâंट’ की ओर से काले झंडे दिखाकर निषेध व्यक्त किया जाना है। इस आंदोलन में राष्ट्रवादी कांग्रेस के कार्यकर्ता भी शामिल होंगे, ऐसी अजीबोगरीब परिस्थिति पुणे में निर्माण हुई है। नेता मोदी के साथ मंच पर और कार्यकर्ता हाथ में काले झंडे लेकर मोदी के खिलाफ सड़क पर। भगवान दगड़ूशेठ गणराज आप ही इस संकट का समाधान करें! लेकिन उससे पहले महान स्वतंत्रता सेनानी, गुलामी के खिलाफ स्वराज्य का मंत्र देनेवाले लोकमान्य तिलक को सम्मानपूर्वक अभिवादन!