लद्दाख की जनता के मसलों को लेकर दिल्ली तक पैदल निकले मशहूर पर्यावरणवादी और शिक्षाविद सोनम वांगचुक को मोदी सरकार ने दिल्ली की सीमा पर ही रोककर जेल में डाल दिया है। वांगचुक का गुनाह सिर्फ इतना था कि वह दिल्ली आ रहे थे। मानो चीन पर ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ कर रहे हैं, ऐसा दिखावा करते हुए केंद्र सरकार ने वांगचुक और उनके साथ आए लद्दाखी कार्यकर्ताओं को दिल्ली की सीमा पर रोक दिया। क्या वांगचुक और उनके कार्यकर्ता मोदी और शाह का सिंहासन उखाड़ने के लिए राजधानी आ रहे थे? वांगचुक सहित सभी १३० पदयात्रियों को गिरफ्तार कर लिया गया। वे लद्दाख के लेह से करीब एक महीने की पैदल यात्रा कर दिल्ली पहुंचे थे। उनका इरादा राजघाट जाकर महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि देने और लद्दाखी लोगों की मांगों के लिए राष्ट्रीय राजधानी में शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने का था। सोनम वांगचुक अपनी चार प्रमुख मांगों को लेकर दिल्ली आए थे और अगर इनमें से कोई भी मांग देश विरोधी है तो सरकार को बताना चाहिए। चूंकि लद्दाख एक जनजातीय क्षेत्र है, इस प्रदेश को भारतीय संविधान की छठी अनुसूची में शामिल किया जाना चाहिए, स्थानीय लोगों को अपनी जमीन, पर्वत और सांस्कृतिक अस्मिता की रक्षा के लिए कानून बनाने का अधिकार दिया जाना चाहिए, लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाना चाहिए और पर्यावरण की रक्षा होनी चाहिए, उनकी ये चार मांगे थीं। इन मांगों को गलत कहा जाए इसमें ऐसा क्या है? अनुच्छेद-३७० हटाने के पैâसले का वांगचुक समेत पूरे लद्दाख की जनता ने इस इरादे से स्वागत किया कि इससे लद्दाख को स्वायत्तता मिलेगी। ३७० हटने के बाद जम्मू-कश्मीर और लद्दाख दो अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेश बन गए। इसमें जम्मू-कश्मीर को विधानसभा मिल गई। विधायकों का चुनाव करने और अपने अधिकारों के कानून बनाने का अधिकार मिल गया, लेकिन लद्दाख का ये अधिकार छीन लिया गया। यहां कोई विधायक या स्थानीय लोकप्रतिनिधि नहीं है। लद्दाख की जनता अब केवल लोकसभा के लिए वोट कर सकती है। लद्दाखी लोगों की मांग है कि छठी अनुसूची में असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम के आदिवासी क्षेत्रों के स्वायत्त जिला परिषद की तरह अपने जनप्रतिनिधि चुनने और आदिवासी जमीन, जंगल, पानी और कृषि के मामले में कानून बनाने का अधिकार दिया जाना चाहिए। पिछले दो-तीन सालों में लद्दाखी जनता हजारों की संख्या में सड़कों पर उतरी है। इन्हीं मुद्दों पर सोनम वांगचुक ने कई दिनों तक भूख हड़ताल भी की थी, लेकिन सरकार ने भूख हड़ताल और लद्दाखी जनता की मांगों की तरफ पलट कर देखा तक नहीं। हैरानी की बात यह है कि २०१९ के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने खुद अपने घोषणा-पत्र में लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने का वादा किया था। फिर २०२० में हुए हिल डेवलपमेंट काउंसिल चुनाव में गृह मंत्री अमित शाह ने पंद्रह दिनों के भीतर लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल करने का वादा किया। जिस पर विश्वास करते हुए सोनम वांगचुक और लद्दाख की जनता ने अपना आंदोलन रोक दिया था, लेकिन बाद में सरकार ने अपनी बात बदल दी। लद्दाख की जनता को डर है कि देश की कॉर्पोरेट लॉबी की नजर लद्दाख की हजारों एकड़ जमीन पर है और अपने उद्योगपति दोस्तों के लिए काम करनेवाली यह सरकार लद्दाख की जनता की राय पर विचार किए बिना वहां उद्योग लाने की कोशिश कर रही है। अन्यथा घोषणा-पत्र में किए गए वादे भाजपा सरकार पूरे क्यों नहीं कर रही है? ये वांगचुक का सवाल है। इसीलिए उद्यमियों के दबाव में मौजूदा सरकार पर भी लोकतांत्रिक तरीकों से दबाव बनाया जा सके इसलिए सोनम वांगचुक ने लद्दाख से राजघाट तक ‘चलो दिल्ली’ पदयात्रा निकाली। लेकिन केंद्र सरकार के आदेश पर लगभग हजार एक पुलिस बल ने वांगचुक की पदयात्रा को हरियाणा-दिल्ली मार्ग के सिंघु बॉर्डर पर रोक दिया और उन्हें राजधानी में प्रवेश करने पर मना कर दिया। पुलिस ने पदयात्रियों को वापस लौटने को कहा। लेकिन एक महीने तक पैदल चलकर दिल्ली पहुंचे वांगचुक और उनके कार्यकर्ताओं के पीछे हटने से इनकार करते ही उन सभी को हिरासत में ले लिया गया और चार अलग-अलग पुलिस स्टेशनों में बंद कर दिया गया। वांगचुक ने थाने में ही भूख हड़ताल शुरू कर दी है। दरअसल, सोनम वांगचुक अपने शैक्षणिक, शोध और पर्यावरण संबंधी कार्यों के लिए देशभर में लोकप्रिय हैं। न केवल लद्दाख, बल्कि संपूर्ण हिंदुस्थान की जनता के दिलों में उनके लिए सम्मान है। इसलिए केंद्र सरकार को दिल्ली की सीमा पर जाकर सोनम वांगचुक के मार्च का स्वागत करना चाहिए था और समझना चाहिए था कि आखिर लद्दाख की जनता क्या कहना चाह रही है। लेकिन सरकार ने इस शांतिपूर्ण आंदोलन को दमन के जरिए कुचलकर अपनी संकीर्ण मानसिकता का परिचय दिया। लद्दाख हिंदुस्थान का मुकुट है और इसके पर्यावरण की रक्षा करके इस मुकुट को संभालकर रखना केंद्र सरकार का प्राथमिक कर्तव्य होना चाहिए। लेकिन इसे छोड़कर लद्दाख के पर्यावरण और वहां के जनजातीय लोगों के मुद्दों पर चर्चा करने के लिए दिल्ली में प्रवेश करनेवाले सोनम वांगचुक को सरकार द्वारा गिरफ्तार करना, यह मूर्खता की पराकाष्ठा है। सोनम वांगचुक जैसे देशभक्त नायक की मुश्कें कसी गर्इं, क्या वे आतंकी हैं या चीनी घुसपैठिए हैं? सरकार को लद्दाखियों का दमन रोककर हिंदुस्थान के इस मुकुटमणि को संभालकर रखना चाहिए!