दक्षिण के स्वर्ग के तौर पर पहचाना जाने वाला केरल पिछले दो दिनों में मानो नरक में तब्दील हो गया है। प्रकृति के भीषण प्रकोप के कारण हुए भूस्खलन ने केरल के वायनाड में भयंकर कहर बरपाया है। केरल में भूतो न भविष्यति जैसी मूसलाधार बारिश हो रही है। प्रकृति द्वारा धारित इस रुद्रावतार ने पश्चिमी घाट के पहाड़ों को खत्म कर दिया और इस भूस्खलन में वायनाड के मानचित्र से चार गांव गायब हो गए। इस हादसे में अब तक करीब १६० लोगों की मौत हो चुकी है। लेकिन सैकड़ों लोग अभी भी मलबे में दबे हैं, इसलिए मरने वालों की संख्या बढ़ने की आशंका है। ३० जुलाई २०१४ को महाराष्ट्र के पुणे जिले का मालीण गांव इसी तरह के भूस्खलन में जमींदोज हो गया था। उस घटना के ठीक १० साल बाद ३० जुलाई को केरल में भूस्खलन के कारण चार गांव मलबे में दब गए। मालीण में १५१ लोगों की मौत हो गई थी। फिर पिछले साल रायगढ़ जिले का इरशालवाड़ी गांव भूस्खलन में दब गया, जिसमें ८४ लोगों की मौत हो गई। उत्तराखंड के केदारनाथ धाम में तो मौत का तांडव मच गया था। बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई, पहाड़ों पर निर्माण, सड़कों, पुलों के लिए विस्फोट और पहाड़ों में अवैध खनन के कारण मालीण, इरशालवाड़ी और अब वायनाड जैसे भूस्खलन के हादसे बार-बार हो रहे हैं। विकास के नाम पर प्रकृति का चल रहा कत्लेआम अंतत: इंसान के जड़ तक ही पहुंचेगा, दशकों से इस तरह की चेतावनी देने वाले पर्यावरणविदों पर ध्यान देने का समय किसे है? पर्यटन को बढ़ावा देने के नाम पर पर्वत शृंखलाओं और पहाड़ियों को साफ किया जा रहा है। बेशुमार पेड़ों का कत्लेआम किया जा रहा है। इसके अलावा स्थानीय नेताओं और उनके चमचे सरकारी अधिकारियों के साथ हाथ मिलाकर पहाड़ों को काट रहे हैं। पहाड़ों में जेसीबी घुसाकर खुलेआम मुरुम, पत्थर और मिट्टी जैसी मुफ्त खनिज संपदा की लूट की जा रही है। इसके कारण पिछले कुछ वर्षों में दक्षिण से लेकर उत्तर तक कई राज्यों में मिट्टी के कटाव के कारण भूस्खलन और पहाड़ों के दरक कर गिरने की घटनाएं लगातार हो रही हैं। केरल में भी यही हुआ। सोमवार को पूरे दिन हुई भारी बारिश के बाद आधी रात के बाद वायनाड और आसपास के इलाकों में पहाड़ों के दरकने और गिरने से बड़े पैमाने पर भूस्खलन हुआ, जब लोग गहरी नींद में सो रहे थे। मंगलवार रात २ बजे से सुबह ६ बजे तक ऊंचे पर्वत शृंखलाओं की विशाल चोटियों से पहाड़ियां दरकती हुई गिरती रहीं। इससे पहले कि लोगों को पता चलता पानी और कीचड़ के भयानक मलबे के साथ साथ-साथ चट्टान और मिट्टी के प्रचंड वेग ने वायनाड के ४ गांवों को निगल लिया। सेना, वायुसेना और एनडीआरएफ की टीमों ने तुरंत बचाव अभियान शुरू किया और सौभाग्य से मलबे में फंसे १,००० लोगों की जान बचाने में सफल रहीं। हालांकि, केरल में भारी बारिश के कारण बचाव कार्य में बाधा आ रही है। चारुलमाला पूरा गांव मलबे में दब गया है। राहत एवं बचाव कार्य में जुटी टीमें इसके नीचे फंसे लोगों को बचाने का प्रयास कर रही हैं। मुंडक्कई, अट्टमाला और नुलुपुझा गांवों के घर, पुल, सड़कें, वाहन सभी बह गए हैं। प्रत्येक भूस्खलन आपदा में जब भारी जनहानि होती है तो दु:ख जताकर शोक व्यक्त किया जाता है। मृतकों के परिजनों को कुछ लाख की सहायता देकर और दो-चार दिनों तक पर्यावरण की रक्षा की चिंता आदि जताकर सरकार और अधिकारियों की जिम्मेदारी खत्म हो जाती है। उसके बाद ‘आ जाओ मेरे यारों’ की तर्ज पर फिर से पर्वत शृंखलाओं और पहाड़ी चोटियों की सफाई का काम शुरू हो जाता है। अगर प्रकृति का बेशुमार नरसंहार अब भी रोका नहीं गया तो मालीण, इरशालवाड़ी और वायनाड जैसी आपदाएं भविष्य में भी जारी रहेंगी। वायनाड के प्रकोप के बाद भी क्या केंद्रीय सरकार को समझदारी आएगी? जब तक केंद्र सरकार इसे केवल राज्यों की जिम्मेदारी मानकर हाथ न झटकते हुए प्रकृति और पर्यावरण की सुरक्षा के लिए राष्ट्रीय स्तर पर कोई सख्त नीति नहीं बनाएगी, तब तक केरल जैसी आपदाएं कहीं न कहीं जारी रहेंगी!