देश की वर्तमान राजनीति अर्थात मूर्खों का घेरा बन गई है और अभिनेत्री काजोल ने इस पर अपनी स्पष्ट राय व्यक्त की है। काजोल ने कहा कि जिनकी शैक्षणिक पृष्ठभूमि नहीं है, ऐसे राजनेता देश चला रहे हैं। इस पर हमारे देश के अंधभक्तों ने हंगामा मचाना शुरू कर दिया। भक्तों ने मान लिया कि काजोल ने मौजूदा दिल्ली सरकार पर अपने विचार व्यक्त किए हैं और उन्होंने हमेशा की तरह काजोल को ‘ट्रोल’ करना शुरू कर दिया। हमारे देश की एक उच्च शिक्षित कलाकार लोगों को शिक्षा का महत्व समझाती है और ऐसा करने पर भारतीय जनता पार्टी के ‘ट्रोल हमलावर’ अभिनेत्री पर टूट पड़ते हैं। देश में वैचारिक परिवर्तन की प्रक्रिया बहुत धीमी गति से चल रही है। क्योंकि बिना शैक्षणिक पृष्ठभूमि वाले राजनेता देश चला रहे हैं, काजोल ने कहा। काजोल की राय कई लोगों की आंखों में अंजन लगाने जैसी है। वो कहती हैं, ‘हम अभी भी परंपराओं और पुरानी विचारधाराओं में फंसे हुए हैं। निश्चित रूप से इसकी वजह शिक्षा का अभाव ही है। देश चलाने वाले कई नेताओं में दूरदृष्टि का अभाव नजर आता है। शिक्षा से आप में दूरदृष्टि आती है। शिक्षा से आपको विभिन्न दृष्टिकोणों से देखने का मौका मिलता है’, ऐसा काजोल ने कहा। इसमें उससे क्या भूल हो गई? लेकिन चौथी पास राजा के अंध भक्त, समर्थक काजोल पर टूट पड़े। काजोल महाराष्ट्र की बेटी है इसलिए स्पष्टवादिता उसके स्वभाव में होगी ही। फिर शिक्षा के संबंध में एक सोच देनेवाले महात्मा फुले भी इसी मिट्टी से थे। महात्मा फुले ने शिक्षा की वकालत की। वे कहते हैं,
विद्या बिना मति चली गई
मति के बिना नीति चली गई
नीति के बिना गति चली गई
गति के बिना वित्त चला गया
वित्त के बिना छुद्र बढ़ गए
एक अज्ञान ने इतना अनर्थ कर दिया!
महात्मा ज्योतिराव फुले और सावित्रीबाई फुले ने लोगों को बुद्धिमान और शिक्षित बनाने के लिए कड़े प्रयास किए। उन्हीं सावित्री बाई की बेटी काजोल शिक्षा का महत्व बता रही है। काजोल ने शिक्षा का महत्व बताया, वह निश्चित तौर पर किसे और क्यों बुरा लगा? उन्होंने तो किसी का नाम नहीं लिया था। क्या उन्हें देश में विकास, शिक्षा, लोकतंत्र पर अपनी राय व्यक्त करने का अधिकार नहीं है? डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने कहा था, ‘सीखो और संघर्ष करो।’ अज्ञान घातक होता है। अज्ञानता से अंधश्रद्धा और अंधभक्तों की पैदाइश बढ़ती है। भारत देश फिलहाल इसी अंधेरे से गुजर रहा है। अंधभक्तों को काजोल की बातें तीखी लगीं। क्योंकि उनके समक्ष उनके विश्व गुरु, प्रधानमंत्री मोदी की तस्वीर और चरित्र है। प्रधानमंत्री मोदी गुजरात में एक प्लेटफॉर्म पर चाय बेचते थे, लेकिन जिस गांव में वह चाय बेचते थे, ऐसा वे कहते हैं। उस गांव में तब कोई रेलवे ही नहीं थी, फिर वहां प्लेटफॉर्म वैâसे हो सकता है? सवाल यह नहीं है कि चाय बेचने वाला प्रधानमंत्री बन गया, बल्कि प्रधानमंत्री अपनी शैक्षणिक योग्यता क्यों छिपा रहे हैं। हम उच्च शिक्षित हैं, यह दिखाने के लिए मोदी की ओर से गृहमंत्री अमित शाह ने फर्जी ‘डिग्री प्रमाणपत्र’ जारी किए। आखिरकार, प्रधानमंत्री को अपनी डिग्री छिपानी पड़ी और सर्वत्र उनका मजाक बना। कोरोना काल में प्रधानमंत्री मोदी ने ‘थाली और घंटी’ बजाकर कोरोना को भगाने का आह्वान किया। बिना किसी पूर्व सूचना के उन्होंने नोटबंदी की घोषणा की और लोगों को कतारों में खड़ा करके मार डाला। यह शैक्षणिक पृष्ठभूमि न होने का ही ‘झटका’ है। प्रधानमंत्री मोदी के सहयोगी तो उनसे भी चार कदम आगे बढ़-चढ़कर हैं। हिंदुओं को चार बेटे पैदा करने चाहिए। जनसंख्या बढ़ानी चाहिए, ऐसा मोदी के मंत्री कहते हैं। चार में से दो पुत्रों को ‘संघ’ को दे दो, ऐसा भी वे कहते हैं। यह सभ्य और शिष्ट होने के लक्षण नहीं हैं। मध्य प्रदेश में भाजपा का एक पदाधिकारी एक गरीब पिछड़े वर्ग के व्यक्ति के शरीर पर लघुशंका करता है। फिर उस पीड़ित व्यक्ति को मुख्यमंत्री शिवराज मामा अपने निवास पर बुलाते हैं और उसकी पूजा करते हैं। अब पता चला है कि जिसकी पूजा की गई वह व्यक्ति कोई अलग ही था। इससे मामा का मजाक बना। यह शिक्षा और बुद्धि की कमी के लक्षण हैं। प्रधानमंत्री मोदी भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने की बात करते हैं। भोपाल के सम्मेलन में उन्होंने राष्ट्रवादी कांग्रेस और अजीत पवार के भ्रष्टाचार पर हमला बोला, लेकिन अगले ही दिन भाजपा ने अजीत पवार के गुट को उसके भ्रष्टाचार के साथ स्वीकार कर लिया। शिक्षा के अभाव के यही लक्षण हैं। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्रों पर पुलिस ने हमला किया। तब अभिनेत्री दीपिका पादुकोण यूनिवर्सिटी परिसर में गईं और कुछ पल के लिए वहां ‘मौन’ खड़ी रहीं। उन्होंने भाषण नहीं दिया। दीपिका का मौन संस्कृति और शिक्षा का प्रभाव था, लेकिन दीपिका पर अशिष्ट हमले, उनकी फिल्मों का बहिष्कार, अज्ञानता का प्रतीक और अंधेरे में देश के छटपटाने के लक्षण हैं। अब देश की बुद्धिमत्ता पर सवाल उठाने के कारण अभिनेत्री काजोल भी असभ्य, अज्ञानी लोगों के निशाने पर आ गई हैं। इस देश में शिक्षा के बारे में बात करने की भी सहूलियत नहीं बची है। पढ़े-लिखे लोग भी धर्म का गांज्ाा पीकर अंधभक्त बन गए हैं। इस पर इलाज क्या है? यह सच है कि काजोल ने अंधभक्तों की आंखों में ज्ञान का काजल लगा दिया, लेकिन फिर भी भक्त अंधे ही रहे!