राष्ट्रवादी कांग्रेस के स्थापना दिवस पर शरद पवार ने पार्टी में कुछ बदलाव किया। इसमें हैरानी भरा कुछ भी नजर नहीं आ रहा है। शरद पवार ने राष्ट्रीय स्तर पर दो प्रमुख नियुक्तियां कीं। राष्ट्रवादी के कार्यकारी अध्यक्ष पद पर सुप्रिया सुले और प्रफुल्ल पटेल की नियुक्ति की। इसे लेकर यदि कुछ लोग शरद पवार ने ‘रोटी पलटी’ ऐसा कह रहे होंगे तो इसमें कोई दम नहीं है। मूलरूप से राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने राष्ट्रीय दर्जा गवां दिया है। नागालैंड में उनके चार-पांच विधायक चुनकर आए। राज्य के बाहर लक्षद्वीप में उनका एक सांसद है। केरल विधानसभा में उनके एक-दो सदस्य हैं। बाकी सभी कामकाज महाराष्ट्र में है। इसलिए सब कुछ दायरे में है। फिर एक ही समय में दो कार्यकारी अध्यक्ष की नियुक्ति करने की जरूरत क्यों पड़ी? यही क्या वह सवाल है। राष्ट्रवादी पार्टी वैसे एक दायरे में हो तो भी उस पार्टी के सर्वेसर्वा श्री शरद पवार देश के शक्तिशाली राजनीतिक व्यक्ति हैं और देश की राजनीति में उनके शब्दों का सम्मान है। बीते कुछ दिनों से राष्ट्रवादी कांग्रेस के भूगर्भ में असंतोष का लावा उबल रहा था और उसका केंद्र बिंदु अजीत पवार के होने की बात मीडिया कह रही है। शरद पवार ने करीब महीना भर पहले अपने आत्मचरित्र प्रकाशन समारोह में पार्टी के अध्यक्ष पद से मुक्त होने की घोषणा की और उस समय सभी को एक तरह से झटका लगा। वैसा झटका सुप्रिया और पटेल की नई नियुक्ति से नहीं लगा। सुप्रिया सुले के पास ही पार्टी संगठन का संचालन जाएगा यह पक्का था, लेकिन दूसरे कार्यकारी अध्यक्ष पटेल की नियुक्ति करके पवार कौन सा संदेश दे रहे हैं? सुप्रिया सुले को कार्यकारी अध्यक्ष पद पर नियुक्त किए जाने पर परिवारवाद का आरोप न लगे इसलिए उन्होंने और एक कार्यकारी अध्यक्ष की नियुक्ति की होगी, लेकिन प्रफुल्ल पटेल पवार के पुराने सहयोगी हैं और उनका महाराष्ट्र से ज्यादा दिल्ली में आना-जाना लगा रहता है। श्री शरद पवार कहते हैं, ‘‘देश के आकार को देखते हुए किसी एक नेता का सभी क्षेत्रों में पहुंचना मुश्किल होता है। इसलिए कार्यकारी अध्यक्ष की जिम्मेदारी दोनों के बीच बांट दी गई है। पिछले दो महीने से पार्टी के वरिष्ठ नेता इस पर चर्चा कर रहे थे। उसके बाद यह पैâसला लिया गया है।’’ यह सच हो सकता है, लेकिन देश की राजनीति में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी से भी बड़ी कई पार्टियां हैं। उन्हें भी देश बड़ा होने के कारण दो कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त करने की जरूरत नहीं पड़ी। शरद पवार ने यह किया। क्योंकि उन्हें पार्टी के पुराने और नए के बीच संतुलन बनाए रखना है। अजीत पवार को नए फेरबदल से बगल कर दिया गया। इसलिए वे दिल्ली का कार्यक्रम छोड़कर चले गए वगैरह हवा उड़ाई गई। अजीत पवार महाराष्ट्र की राजनीति में एक ‘खिलाड़ी’ हैं और राज्य के बाहर काम करने का उनका कोई इरादा नहीं है। अजीत पवार ने स्पष्ट किया कि उनका सुझाव था कि सुप्रिया सुले को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया जाए। अजीत पवार विधानसभा में विपक्ष के नेता हैं और उनके नेतृत्ववाला गुट भाजपा के पत्थर पर पैर रखकर खड़ा है, ऐसा हमेशा कहा जाता है। दो-ढाई साल पहले उनके द्वारा फडणवीस के साथ भोर में शपथ लेने का यह नतीजा है। अजीत पवार भाजपा के तंबू में जाकर वापस आ गए, यह उन पर दोष है और अजीत पवार को ही इस दोष को हमेशा के लिए दूर करने की कोशिश करनी होगी। राजनीति की विश्वसनीयता इस समय भयानक स्थिति में है। सुबह इस पार्टी में रहनेवाला नेता शाम को कहां विलीन हो गया होगा, यह कहा नहीं जा सकता। कुछ लोग इसे राजनीतिक शतरंज की चाल समझते हैं। ऊंट तिरछा चलता है, लेकिन शतरंज की बिसात पर उसे घोड़े की तरह ढाई खाने भी जबरदस्ती चलाया जाता है। इस तरह की राजनीति से लोग तंग आ चुके हैं। महाराष्ट्र की राजनीति में भी फिलहाल यही चल रहा है। इस राजनीति में शरद पवार और उनकी पार्टी एक महत्वपूर्ण घटक हैं, इसे वाकई स्वीकार करना होगा और इसीलिए भविष्य की राजनीति का विचार करके शरद पवार ने अपनी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के कुछ प्यादों को हिलाया है। नई रचना में कार्यकारी अध्यक्ष के तौर पर सुप्रिया सुले के पास महाराष्ट्र की जिम्मेदारी आई है। दूसरे कार्यकारी अध्यक्ष प्रफुल्ल पटेल के पास मध्य प्रदेश, गुजरात, गोवा, राजस्थान आदि प्रदेश रहेंगे। सुनील तटकरे, जितेंद्र आव्हाड, योगानंद शास्त्री, मोहम्मद पैâजल जैसों को महासचिव नियुक्त कर उन्हें कुछ राज्यों की जिम्मेदारी दी गई है। यह सब कागजों पर ही रहेगा। तटकरे को महासचिव के तौर पर प. बंगाल, ओडिशा की जिम्मेदारी दी गई है। साथ ही उन्हें अल्पसंख्यक व किसान विभाग का प्रभारी बनाया गया है। क्या तटकरे की राष्ट्रीय स्तर पर यह सब करने की मानसिकता है? यानी यह सब होते हुए भी महाराष्ट्र की जिम्मेदारी सुप्रिया सुले को सौंपी गई है और उन्हीं की देख-रेख में अगले लोकसभा और विधानसभा चुनाव की तैयारी होगी। मुख्य बात यह है कि उन्हें टिकट आवंटित करने का अधिकार होगा। महाराष्ट्र में जयंत पाटील प्रदेशाध्यक्ष हैं और वे शरद पवार के बेहद विश्वसनीय हैं। इसलिए जयंत पाटील, सुप्रिया सुले और अजीत पवार की तिकड़ी पर महाराष्ट्र में राष्ट्रवादी का भार रहेगा। पार्टी के २५वें स्थापना दिवस पर शरद पवार को जो साधना था, वह उन्होंने साध ही लिया है। सुप्रिया सुले को अब इस कसौटी में खरा उतरना होगा। शरद पवार ने रोटी पलटी नहीं है, बल्कि अब कहीं चूल्हे पर चढ़ा दी है। रोटी कच्ची न रहे इसलिए उसे पलटना ही पड़ता है। अगर पिछली रोटी जलने से नई रोटी बेली गई है तो इंतजार करना होगा।