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संपादकीय : दंगे कौन भड़का रहा है? …सुलग रहा महाराष्ट्र!

महाराष्ट्र में मिंधे-फडणवीस की सरकार आने के बाद से जातीय और धार्मिक दंगों की संख्या बढ़ गई है। मुख्यमंत्री शिंदे हवा में हैं और गृहमंत्री फडणवीस केवल नाममात्र के हैं, ऐसा ही कुल दिखाई दे रहा है। दंगे भड़का कर राजनीतिक रोटियां सेंकना भाजपा का पीढ़ियों से चला आ रहा धंधा है और चुनाव नजदीक आते ही इस धंधे के निवेश में बढ़ोतरी की जाती है। ऐसे निवेशक अब हमारे राज्य में घुस गए हैं। इसलिए हमें महाराष्ट्र के भविष्य को लेकर चिंता हो रही है। विदर्भ के अकोला में शनिवार को दो गुटों में दंगा भड़क उठा। मामूली विवाद से मारपीट और उससे दंगे की आग भड़क गई। इस दंगे को काबू में करने में पुलिस कम पड़ गई। सोशल मीडिया पर एक विवादित पोस्ट वायरल हुई और उससे विवाद की शुरुआत हुई। इस हिंसा में एक की मौत हो गई। अकोला में फिलहाल धारा-१४४ लागू की गई है। फिर भी पूरे शहर में इस हिंसा के कारण भय का माहौल है। इंस्टाग्राम की एक पोस्ट को लेकर अकोला में एक दंगा भड़का और अकोला शहर दो दिनों तक सुलगता रहा। यह सुलगाव महाराष्ट्र की सामाजिक प्रकृति के लिए अनुकूल नहीं है, लेकिन महाराष्ट्र सुलगता रहे इसका योजनाबद्ध नियोजन पर्दे के पीछे से चल रहा है। अकोला के बाद नगर जिले के शेवगाव में भी हिंसा हुई। रविवार रात को छत्रपति संभाजी महाराज की जयंती के उपलक्ष्य में निकाले गए जुलूस के दौरान दंगा भड़का और स्थिति नियंत्रण के बाहर चली गई। शेवगाव के दंगे में पुलिस वाले जख्मी हुए। शेवगाव में यह सब हो रहा था, वहीं नासिक जिले के त्र्यंबकेश्वर मंदिर में अचानक हंगामे की स्थिति पैदा हो गई। कुछ मुस्लिम मंडली ने त्र्यंबकेश्वर मंदिर के उत्तर दरवाजे से अंदर घुसकर चादर चढ़ाने की कोशिश की। भारतीय जनता पार्टी ‘दंगा-तनाव-भड़काऊ महामंडल’ ने इस पर तुरंत अपने-अपने भोंपू बजाकर राजनीतिक ‘जनजागृति’ का कार्य हाथ में लिया। प्रश्न धार्मिक भावना का है। अजमेर शरीफ दरगाह पर प्रधानमंत्री से लेकर कई भाजपा नेता श्रद्धा की चादर चढ़ाते रहते हैं, लेकिन वह उनका आदर्श है। हिंदू देवताओं पर चादर चढ़ाने की परंपरा नहीं है। गणेशोत्सव में कई मुसलमान बंधु श्रद्धा के साथ आते रहते हैं। मुस्लिम मोहल्लों से होकर विसर्जन के लिए गुजरनेवाले लालबाग के राजा, गणेश गल्ली के राजा आदि जुलूस पर पुष्प वर्षा, पूजा-अर्चना होती रहती है। कुछ दिनों पहले खारघर में अप्पासाहेब धर्माधिकारी को ‘महाराष्ट्र भूषण पुरस्कार’ प्रदान करने का जंगी कार्यक्रम संपन्न हुआ। तेज धूप में लाखों श्री सेवक इकट्ठा हुए। उन्हें पानी की बोतल, शरबत, खाद्य पदार्थ देने का काम मुस्लिम संगठन के युवक कर रहे थे। महाराष्ट्र में जहां यह सद्भाव अच्छे तरीके से बना हुआ है, वहीं कोई इस सद्भावना को नष्ट करना चाहता है। कभी नहीं हुआ, वह इस बार रामनवमी में मुंबई के कुछ हिस्सों में दंगे हुए। छत्रपति संभाजी नगर में हिंसा भड़क गई। इसे कौन सा लक्षण माना जाए? राज्य में इस समय भड़काए जा रहे दंगे, राजनीतिक उद्देश्यों से प्रेरित हैं। ये जानबूझकर कराए जा रहे हैं। कुछ लोग आग में तेल आदि डालने का काम कर रहे हैं। उनके चेहरे मैं शीघ्र सामने लाऊंगा, ऐसा इशारा गृहमंत्री श्री फडणवीस ने दिया। लेकिन उनका बोलना फिलहाल फेल साबित हो रहा है। भाजपा भ्रष्टाचारियों को शुद्ध करनेवाला और दंगे भड़काने वाला कारखाना है। लेकिन यह कारखाना अब दिवालिया हो गया है। प. बंगाल में चुनाव के दौरान दंगा कराने की कोशिश की गई थी। फिर भी तृणमूल कांग्रेस की जीत हुई। हाल के कर्नाटक चुनाव में भी अंतिम समय में बजरंग बली, हनुमान चालीसा जैसे कार्यक्रम आयोजित कर धार्मिक तनाव और दंगा भड़काने की योजना बनाई गई, लेकिन कानडी जनता ने इस योजना को विफल कर दिया और मोदी-शाह की भाजपा को करारी शिकस्त दे दी। बिहार में भी दंगे भड़काए गए, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। मणिपुर में भारतीय जनता पार्टी का शासन है। वहां पूरा राज्य दंगों की चपेट में आ गया और उसका धुआं दिल्ली तक पहुंच गया। इस आग को भी मोदी-शाह अब तक नहीं बुझा पाए हैं। जिनकी सत्ता दंगों की ज्वाला से निर्माण हुई है, उन्हें दंगों और धार्मिक तनावों से प्यार तो रहेगा ही, लेकिन देश की जनता अब ऐसे तनावों से तंग आ चुकी है। महाराष्ट्र में दंगों की प्रयोगशाला खोलकर भाजपा और उसके समर्थक सामाजिक समरसता को बिगाड़कर मतों का ध्रुवीकरण करने की कोशिश कर रहे हैं। कुछ मुद्दों को सामंजस्य और सौहार्दपूर्ण तरीके से सुलझाया जा सकता है, लेकिन शिवसेना को तोड़कर राज किया जा रहा है, उसी तरह समाज को तोड़कर वे चुनाव लड़ना चाहते होंगे। भारतीय संविधान, राष्ट्रीय एकता, धार्मिक सद्भाव की ऐसी-तैसी करके सत्ता का सुख भोगने वाले सुपारीबाज इर्द-गिर्द घूम रहे हैं। राज्य की जनता महाराष्ट्र के हित के लिए सावधान रहे!

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