मुख्यपृष्ठसंपादकीयसंपादकीय : कौन किसको निगलेगा?..अर्थात शकुनि का गौरव समारोह

संपादकीय : कौन किसको निगलेगा?..अर्थात शकुनि का गौरव समारोह

महाराष्ट्र सरकार के पास बहुमत का आंकड़ा है, लेकिन क्या सरकार स्थिर है? इस पर संदेह है। कुल मिलाकर दैनिक घटनाक्रमों से यह देखा जा रहा है कि सरकार स्थिर नहीं है और सरकार का मानसिक स्वास्थ्य भी ठीक नहीं है। देवेंद्र फडणवीस वर्तमान में मुख्यमंत्री हैं। वहीं अजीत पवार भी मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं और उन्होंने खुलकर ऐसा कहा भी है। अजीत पवार छह बार उपमुख्यमंत्री बन चुके हैं, जो एक रिकॉर्ड है, लेकिन इतने मजबूत दावेदार अब तक मुख्यमंत्री नहीं बन पाए और अगर वे भाजपा के साथ रहे तो मुख्यमंत्री बनने की उनकी इच्छा कभी पूरी नहीं होगी। अमित शाह सौतेले भतीजे को मुख्यमंत्री क्यों बनाएंगे? यह एक सीधा सवाल है। ‘मैं भी कई सालों से मुख्यमंत्री बनना चाहता था, लेकिन वह संयोग कहीं भी नहीं आया,’ ऐसी स्वीकारोक्ति अजीत पवार ने शनिवार को फिर से की। अजीत पवार ने ऐसा कहा, लेकिन फडणवीस को उनसे कोई खतरा नहीं है। अमित शाह के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने पूर्व मुख्यमंत्री का गौरव समारोह आयोजित किया था। अजीत पवार महाराष्ट्र में इस पार्टी का काम देखते हैं। महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्रियों के अभिनंदन समारोह का रिवाज उन्होंने शुरू किया। लेकिन वर्ली के जांबोरी मैदान में आयोजित पूर्व मुख्यमंत्रियों के अभिनंदन समारोह में कोई भी नहीं आया। यह तो समझ में आता है कि पूर्व मुख्यमंत्रियों के ‘अभिनंदन समारोह’ में शरद पवार, सुशील कुमार शिंदे, पृथ्वीराज चव्हाण, उद्धव ठाकरे नहीं आए, लेकिन जीते-जागते-ताजे पूर्व मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने भी इस समारोह का बहिष्कार किया और अपने प्रतिनिधि को कार्यक्रम में भेजा। शिंदे ने पूर्व मुख्यमंत्री के तौर पर अभिनंदन समारोह में आने से परहेज किया। क्योंकि ‘मैं अब मुख्यमंत्री नहीं रहा’ यह मानने को
उनका मन
तैयार नहीं है। विधानसभा चुनाव के बाद भी आप ही मुख्यमंत्री रहेंगे, ऐसा उनके ‘पार्टी प्रमुख’ यानी अमित शाह ने उनसे कहा था, लेकिन फडणवीस ने परोसी हुई थाली खींच ली। तब से ये महाशय दाढ़ी में गांठ बांधकर घूम रहे हैं। ‘‘पुन: मुख्यमंत्री बनकर दिखाऊंगा,’ इसी ताव में वो घूमते रहते हैं। दरअसल, अगर शिंदे खुद को ‘भूतपूर्व’ कहने को तैयार नहीं हैं तो उन्हें खुद को हमेशा ‘भावी मुख्यमंत्री’ कहलवाने में कोई हर्ज नहीं है। कुल मिलाकर महाराष्ट्र की मौजूदा सरकार में असमंजस की स्थिति है। इस असमंजस में महाराष्ट्र को नुकसान हो रहा है। अजीत पवार के गुट द्वारा आयोजित सम्मान समारोह में दो पूर्व मुख्यमंत्री मौजूद थे। उनमें से एक नारायण राणे शिवसेना-भाजपा गठबंधन सरकार में मुख्यमंत्री थे। बाद में उन्होंने कई दल बदले, लेकिन मुख्यमंत्री नहीं बन पाए। इसका मतलब है कि शिवसेनाप्रमुख ने कई पत्थरों को सिंदूर लगाकर भगवान बना दिया। ‘‘अगर शिवसेना न होती तो पुलिस ने मेरा एनकाउंटर ही कर दिया होता। शिवसेना की वजह से बच गए,’ ऐसी स्वीकारोक्ति राणे पहले ही कर चुके हैं। दूसरे मौजूद रहे पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण रक्षा विभाग के आदर्श घोटाले में अपना मुख्यमंत्री पद गवां चुके हैं। अब वो भाजपा में शामिल हो गए हैं। ऐसे मुख्यमंत्रियों (पूर्व) का अभिनंदन अजीत पवार गुट ने किया। फडणवीस का सम्मान ‘पूर्व’ या ‘भावी’ के रूप में किया गया, ये नहीं समझ आया, लेकिन ‘ताजे’ पूर्व मुख्यमंत्री नहीं आए और अजीत पवार का समारोह फीका पड़ गया। शरद पवार और अजीत पवार के बीच मुलाकातें बढ़ गई हैं, ऐसा कहा जा रहा है, लेकिन शरद पवार अजीत पवार के राजनीतिक ‘गौरव’ कार्यक्रम में शामिल नहीं हुए, यह एक
महत्वपूर्ण संदेश
महाराष्ट्र को मिल गया है। श्री. फडणवीस ने कहा कि बेहतर होता कि सभी पूर्व मुख्यमंत्री गौरवशाली महाराष्ट्र उत्सव में आते। अन्य सभी पूर्व मुख्यमंत्रियों की बात छोड़िये, सरकार में शामिल ताजे-ताजे पूर्व मुख्यमंत्री भी क्यों नहीं आए, पहले ये बताएं। नए पूर्व मुख्यमंत्री फिर से मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं और इसके लिए वे कुछ भी करेंगे। प्रकाश आंबेडकर ने चेतावनी दी है, ‘‘शिंदे-पवार सावधान रहें। आपको पता नहीं कि अजगर कब आपको निगल जाएगा।’’ आंबेडकर ने फडणवीस को अजगर की उपमा दी, लेकिन जिन्होंने कामाख्या देवी मंदिर में ५६ भैंसों को काटकर बलि चढ़ाई, वो अजगर के सिर पर हमला करने से नहीं हिचकिचाएंगे। महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ दलों के बीच एक तरह का ‘प्रॉक्सी वॉर’ चल रहा है। सभी एक-दूसरे को आजमा रहे हैं। अजीत पवार ने वित्त विभाग में अनुशासन का बांस गाड़ दिया है, जबकि मुख्यमंत्री ने ठेकेदारी के वर्चस्व पर अंकुश लगा दिया है, जिससे नए पूर्व मुख्यमंत्री और उनके लोगों का गला सूख गया है। मंत्री संजय शिरसाट ने अजीत पवार को ‘शकुनि’ कहा। सामाजिक न्याय विभाग का धन ‘लाडलीr बहनों’ की ओर मोड़ दिया। नतीजतन, सामाजिक न्याय विभाग में केवल एक मंत्री का बंगला, कार और दो चपरासी बचे। राज्य सरकार में युद्ध इस बिंदु पर पहुंच गया है कि संबंधित मंत्री को सामाजिक न्याय विभाग को बंद करने की मांग करनी चाहिए और अजीत पवार को ‘शकुनि’ कहना चाहिए। अब ताजे-ताजे पूर्व मुख्यमंत्री ने शकुनिमामा द्वारा आयोजित गौरव समारोह में भाग लेने से परहेज किया है। सवाल यही है कि आज अजीत पवार को ‘शकुनि’ कहने वाले कल फडणवीस को दुर्योधन कहने में संकोच नहीं करेंगे। आंबेडकर कहते हैं, ‘वो निगलने’ का क्षण करीब आ रहा है। कौन किसको निगलेगा, बस यही देखना है!

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