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संपादकीय : गांधी क्यों नहीं मरते?

प्रधानमंत्री पद से जाते-जाते नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर अक्ल के सितारे तोड़ दिए हैं। मोदी ने अपना इंटरव्यू लेनेवाले चमचों से पूछा, ‘महात्मा गांधी कौन हैं? गांधी को दुनियाभर में तब जाना गया जब रिचर्ड एटनबरो नाम के एक हॉलीवुड के व्यक्ति ने गांधी पर एक फिल्म बनाई। तब तक, गांधी को बहुत से लोग नहीं जानते थे।’ मोदी का यह बयान न सिर्फ हास्यास्पद है, बल्कि देश का सिर झुकाने वाला है। अब तो ऐसा लगता है कि लोकसभा चुनाव में ४०० का आंकड़ा पार करना मोदी की पार्टी के लिए न सिर्फ भारत का संविधान बदलने के लिए जरूरी है, बल्कि देश के इतिहास, रामायण, महाभारत भी बदलने के लिए जरूरी है। गांधी हमारे देश की पहचान हैं और वे दुनिया में शांति, अहिंसा, मानवता के सबसे महत्वपूर्ण प्रतीक हैं, लेकिन यह मोदी का मानवता और अहिंसा से रिश्ता न निभाने का नतीजा है। जब अल्बर्ट आइंस्टीन ने गांधी से मुलाकात की तब उन्हें स्वर्ग दो अंगुल दूर लगा। गांधी से मिलने के बाद आइंस्टीन कहते हैं, ‘अद्भुत आदमी! आनेवाली पीढ़ियों को विश्वास नहीं होगा कि गांधी जैसा हाड़-मांस का कोई व्यक्ति इस धरती पर कभी पैदा हुआ था।’ मोदी साहब को अल्बर्ट आइंस्टीन के बारे में भी जानकारी नहीं होगी। साल १९८२ में फिल्म ‘गांधी’ रिलीज हुई थी, लेकिन उससे पहले ही गांधी के विचारों ने दुनिया में क्रांति ला दी थी। अल्बर्ट आइंस्टीन अपने स्टडी रूम में गांधी जी की तस्वीर रखते थे और सार्वजनिक रूप से कहा करते थे कि गांधी जी उन्हें प्रेरित करते हैं। मार्टिन लूथर किंग को जूनियर महात्मा गांधी कहा जाता था। मार्टिन भी अपने स्टडी रूम में गांधी जी की एक तस्वीर रखते थे। १९५६ में मार्टिन लूथर किंग ने भारत का दौरा किया। भारत में कदम रखते ही मार्टिन ने कहा, ‘मैं गांधी की धरती यानी मेरे तीर्थ में आया हूं।’ १९३० में ‘टाइम’ मैगजीन के कवर पेज पर छपे और उस साल के ‘पर्सन ऑफ द ईयर’ बन गए। १९३१ में जब गांधीजी लंदन गए तो उनके स्वागत के लिए लाखों का जनसमूह वहां मौजूद था। मोदी जब अपने गांव में मगर से खेल रहे थे उस वक्त विश्व के अधिकांश देशों ने अपनी-अपनी संसद के प्रांगण में, सार्वजनिक स्थानों पर गांधीजी की मूर्तियां स्थापित करके गांधीजी को मानवंदना दी थी। जिन ब्रिटिशों को गांधी जी ने ‘भारत छोड़ो’ का आदेश दिया था उस ब्रिटिश पार्लियामेंट के प्रांगण में गांधी जी की आदमकद प्रतिमा खड़ी है और यह उन पर बनी फिल्म से पहले की है। दुनिया भर में गांधी के नाम पर सैकड़ों संस्थाएं हैं और गांधी के विचार और कार्यों पर शोध अभी भी जारी हैं। अमित शाह ने लफ्फाजी की थी कि मोदी को एंटायर पॉलीटिकल साइंस में मास्टर की डिग्री मिली है, उस एंटायर पॉलीटिकल साइंस में गांधी का होना जरूरी है। यदि नहीं, तो यह मानने का कारण है कि डिग्री झूठी है। गांधी सत्यवादी थे, जबकि मोदी झूठे और लफ्फाज हैं। जिस तरह गुजरात की धरती से गांधी का जन्म हुआ, उसी तरह मोहम्मद अली जिन्ना और नरेंद्र मोदी का जन्म हुआ। औरंगजेब का जन्म वहीं हुआ था। कभी-कभी तुलसी के बीच भांग के पौधे उग आते हैं, लेकिन गुजरात ही नहीं पूरा भारत गांधी की भूमि के रूप में जाना जाता है और मोदी जैसे लोग इस छवि को कभी नहीं मिटा सकते। रामचंद्र गुहा ने २०१३ में गांधी की जीवनी लिखी थी। वह किताब के प्रचार के लिए अमेरिका गए थे। होटल के कमरे में सफाई करने आए सफाईकर्मी ने मेज पर पड़ी किताब पर तस्वीर देखी और पूछा, ‘क्या यह युवा गांधी हैं न?’ वकील की पोशाक में गांधी को उस कर्मचारी द्वारा पहचान लिए जाने से गुहा को आश्चर्य हुआ। कर्मचारी ने कहा, ‘मेरे देश में गांधीजी का बहुत सम्मान किया जाता है।’ गुहा ने पूछा, ‘आपका देश कौन सा है?’ सफाईकर्मी ने कहा, ‘डोमिनिकन रिपब्लिक।’ डोमिनिकन रिपब्लिक का उदय भले ही गांधी के समय में नहीं हुआ हो, लेकिन डोमिनिकन रिपब्लिक गांधी को जानता है। दुनिया ने दो विश्व युद्ध देखे। विनाश और विध्वंस की राजनीति आज भी जारी है। एक तरफ गांधी हैं तो दूसरी तरफ स्वार्थ, चाहत और हथियारों की होड़ है। जब भाषा, धर्म, जाति, त्वचा का रंग, असमानता का संघर्ष मानवता के अंत की ओर ले जाता है, तब गांधी के विचार निराश, थके हुए मन को आशा की किरण दिखाते हैं। मानवता का मार्ग ही सच्चा है यह संदेश देते हैं। ब्रिटेन के पार्लियामेंट स्क्वायर में जहां चर्चिल की प्रतिमा है, वहां गांधी भी खड़े हैं। नंगे फकीर की तरह। यह वह नंगा फकीर ही था जिसने ब्रिटिश साम्राज्य को कमजोर कर दिया था। चर्चिल ने युद्ध किया खेल रचा साम्राज्य को बचाने के लिए। ये वही चर्चिल हैं, जिसने बंगाल का सारा अनाज और चावल ब्रिटेन में मंगवाया और दो अकाल के दौरान पांच लाख लोगों को भूखा मार डाला। जब इन मौतों की खबर चर्चिल तक पहुंची तो उसने फाइल पर एक नोट लिखा, ‘व्हाय नॉट गांधी डाइड यट? इतने सारे लोग मर गए, गांधी अभी तक क्यों नहीं मरे?’ लेकिन गांधी मरे नहीं हैं। इसके बजाय, गांधी पूरी दुनिया में पैâल गए। गांधी दुनिया के हर कोने में, हवा में और धरती पर पहुंच गए। ब्रिटेन आज कमजोर हो गया है। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री भारतीय मूल के हैं। अमेरिकी उपराष्ट्रपति कमला भारतीय मूल की हैं। सभी साम्राज्यवादी देश, जिन्होंने गांधी को अस्वीकार किया, वहां गांधी की मूर्तियां हैं। मोदी तब भी कहीं नहीं थे और अब भी कहीं नहीं हैं। भविष्य में मोदी और उनके लोगों का नाम नहीं रहेगा, गांधी रहेंगे। मोदी के अंधभक्त गांधी की मूर्तियों और तस्वीरों पर गोलियां चलाने का उन्माद दिखाते हैं, यह उनकी विकृति है। लोग ओसामा बिन लादेन को भूल गए। उसकी विकृति का अंत हो गया। उसी तरह इस विकृति का भी अंत हो जाएगा। गांधीजी ने स्वराज, सत्य, अहिंसा, मानवता के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया। मोदी के मुताबिक, देश २०१४ में आजाद हुआ। उससे पहले यह कोई देश नहीं था। इसलिए उन्हें गांधी जी के बारे में १९८२ के बाद रिलीज हुई फिल्म ‘गांधी’ के बाद पता चला। उन्हें रामायण, महाभारत की जानकारी नहीं होगी। क्योंकि वे स्वयं भगवान के अवतार हैं। गांधी भारत माता के महान सपूत थे। यह फर्क बना रहेगा। इतनी कोशिशों के बावजूद ये सब गांधीजी को नहीं मार सके। मोदी का यही दुख है।

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