ओडिशा के बालासोर में हुए भीषण रेल हादसे ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। हर कोई भयभीत हो गया है। देशवासियों का दिल दहल गया है। वहीं सुरक्षित रेल यात्रा के दावे फेल होने से सभी के मन में गुस्से का ज्वालामुखी भी उबल रहा है। मोदी सरकार ने रेल दुर्घटना अवरोधी `सुरक्षा कवच’ के दावे किए थे। लेकिन बालासोर के ट्रेन हादसे ने उसकी पोल खोल दी है। २८८ यात्रियों की बलि लेनेवाली और ९०० से अधिक यात्रियों को घायल करनेवाली, ये दुर्घटना वैâसे हुई, उसकी प्राथमिक वजहें अब सामने आ रही हैं। आगे की जांच में और विवरण सामने आएंगे, लेकिन शुक्रवार शाम को हुए हादसे ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि देश में रेल यात्रा असुरक्षित है, रेल यात्रियों का जीवन क्षणभंगुर और बेभरोसे है। बहनगा रेलवे स्टेशन के पास पहले कोरोमंडल एक्सप्रेस और मालगाड़ी में टक्कर हुई और उसी दौरान वहां से गुजर रही बंगलुरु-हावड़ा सुपरफास्ट एक्सप्रेस पीछे से टकरा गई। इस तरह इस तिहरे रेल हादसे का रूप सामने आया है। हमेशा की तरह मानवीय भूल जिम्मेदार है या तकनीकी गड़बड़ी, इस पर अब बहस छिड़ गई है। यह आगे भी चलती रहेगी, लेकिन हादसे में बेवजह मारे गए यात्रियों और उनके परिवारवालों का क्या? उनका इसमें क्या कसूर था? कोई भी गलती न होते हुए भी कइयों को अपनी जान गंवानी पड़ी, कई स्थाई रूप से विकलांग हो गए, कई लोगों के परिवार बर्बाद हो गए। इससे पहले भी हमारे देश में कई छोटे-बड़े रेल हादसे हो चुके हैं। लेकिन बालासोर की दुर्घटना पिछले दो दशकों की सबसे बड़ी और भीषण बताई जा रही है। मोदी सरकार के आने के बाद से रेलवे के विकास और सुरक्षा को लेकर जो दावे किए जा रहे हैं, उन दावों पर ही यह दुर्घटना सवाल खड़े कर रही है। पिछले छह-सात वर्षों में बुलेट ट्रेन, `वंदे भारत’ ट्रेन जैसे रेलवे विकास के कई गुब्बारे हवा में छोड़े गए। उन सभी गुब्बारों की हवा शुक्रवार को हुए हादसे ने निकाल दी है। दो ट्रेनों के बीच टक्कर न हो, इसके लिए रेलमंत्री ने `सुरक्षा कवच’ का गुणगान पिछले वर्ष किया था। यह सुरक्षा कवच यानी रेल दुर्घटना रोकनेवाली बड़ी क्रांति (भक्तों की भाषा में `मास्टर स्ट्रोक’) है, यदि ट्रेनें एक ही ट्रैक पर आमने-सामने आ जाती हैं, तो इस सुरक्षा प्रणाली के कारण वे पहले ही रुक जाएंगी और टकराने से बच जाएंगी, ऐसा बताया गया था। खुद रेलमंत्री ने इसका प्रैक्टिकल करके दिखाया था। फिर भी शुक्रवार को भयानक ट्रेन हादसा वैâसे हुआ? यहां दो नहीं बल्कि तीन ट्रेनें आपस में टकरा गईं। कहां गया आपका वह `सुरक्षा कवच’? क्या अब यह कहा जाए कि जनता को दिखाए गए ये `कवचकुंडल’ केवल उन्हीं रेलगाड़ियों के लिए ही थे, जिनमें रेलमंत्री ने प्रैक्टिकल करके दिखाए थे? इस सुरक्षा कवच का उपयोग चरणबद्ध तरीके से बढ़ाया जाएगा, आपके उस आश्वासन का क्या हुआ? दुर्घटनाग्रस्त गाड़ियों में वह प्रणाली होती तो शुक्रवार की यह भीषण दुर्घटना टल सकती थी और कई लोगों की जान बच सकती थी। लेकिन सरकार के सुरक्षित रेल यात्रा की इस क्रांति का बिगुल बालासोर दुर्घटना पीड़ितों की चीख-पुकार, आक्रोश, मरणप्राय वेदना और पीड़ा के वेग में दब गया है। सुरक्षा कवच का वह प्रैक्टिकल यानी `मास्टर स्ट्रोक’ आदि नहीं था, बल्कि मोदी सरकार की पसंदीदा `स्टंटबाजी’ थी, ऐसा कोई कहे तो उस पर सरकार के पास क्या जवाब है? संक्षेप में कहें तो रेलमंत्री का `प्रैक्टिकल’ ट्रेनों के कवचकुंडल आम रेल यात्रियों के लिए नहीं हैं। उन्हें अपनी यात्रा आज भी `बेभरोसे’ ही करनी है। यही बालासोर ट्रेन हादसे का मतलब है। सुरक्षित और सुखद यात्रा के दावों को `मृगजाल’ समझते हुए ट्रेन के डिब्बे में चढ़ जाएं और ईश्वर की कृपा से यात्रा अच्छी हुई तो राहत की सांस लेते हुए उतर जाएं, बस इतना ही आम यात्रियों के हाथ में है। शुक्रवार को दुर्घटनाग्रस्त ट्रेन यात्रियों का न भाग्य का सहारा था और न ही तथाकथित `कवच’ कुंडल का? इसलिए शुक्रवार की शाम उनके लिए जिंदगी की आखिरी शाम साबित हुई। मानव चीख, आक्रोश और रुदन के कारण वह रात कई लोगों के लिए काली रात साबित हुई। बालासोर में मृत्यु का महातांडव हुआ। उसमें २८८ यात्रियों की जान चली गई। उसे केवल आकस्मिक मृत्यु वैâसे कहेंगे? सुरक्षित रेल यात्रा का वादा करनेवाली मोदी सरकार के खोखले दावों ने ये बलि ली है। इसकी जिम्मेदारी सरकार को लेनी ही होगी। तकनीकी खराबी, मानवीय भूल या पटरी से उतरे डिब्बों पर ठीकरा फोड़कर सरकार अपनी जिम्मेदारियों से नहीं भाग सकती। दुर्घटना तो दुर्घटना होती है, यह कहकर हाथ भी खड़े नहीं कर सकते। प्रधानमंत्री ने तुरंत घटनास्थल का दौरा किया, घायलों के बारे में पूछताछ की, सांत्वना दी, राहत एजेंसियों को हिम्मत दी, यह सब ठीक है, लेकिन एक सरकार के रूप में आपके उत्तरदायित्व का क्या? मुआवजे की रकम और संवेदना न तो सवाल का जवाब है और न ही प्रायश्चित। इस भीषण और भयानक दुर्घटना के लिए सरकार प्रायश्चित करेगी या नहीं? दुर्घटनाग्रस्तों की चीखें, आक्रोश और उनके परिजनों के रुदन यही सवाल पूछ रहे हैं।