राज्य की ‘एक फुल और दो हाफ’ सरकार आगामी शुक्रवार को छत्रपति संभाजीनगर में डेरा डालने आ रही है। गद्दार सरकार के मंत्रिमंडल की एक बैठक मराठवाड़ा में लेनी चाहिए, यह शिष्टाचारपूर्ण करने के लिए ही यह बैठक है, ऐसा प्रतीत होता है। पूरा मंत्रिमंडल शहर में आएगा इसलिए चहुंओर रंगाई-पोताई का काम शुरू हैं। इसी दौरान मराठवाड़ा मुक्ति संग्राम के अमृत महोत्सव का समारोप करने के लिए केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह भी पचहत्तर मिनट के दौरे पर होने के नाते शहर को चमकाने का काम जोर-शोर से शुरू किया गया है। लेकिन सूखे के संकट से जूझ रहे मराठवाड़ा को और मराठवाड़ा के किसानों को इस ऊपरी रंगाई-पोताई से क्या मिलेगा? ऐन बरसात के मौके पर सूखे के संकट, निरंतर बंजरता और सिर पर कर्ज के असहनीय बोझ के चलते मराठवाड़ा में रोज कहीं-न-कहीं किसान मौत को गले लगा रहे हैं। रविवार को तो छत्रपति संभाजीनगर जिले में एक ही दिन में तीन किसानों ने आत्महत्या कर ली। यह हुआ एक दिन का लेकिन पिछले आठ महीनों में मराठवाड़ा में कुल ६८५ किसानों ने आत्महत्या की, जिसमें से ४७५ किसानों की आत्महत्याओं को सरकारी मदद के लिए पात्र ठहराया गया है, तो २०० से अधिक किसान परिवार मदद से वंचित हैं। एक तरफ देश में जी-२० शिखर सम्मेलन के आयोजन पर ‘देखो, देश कितना आगे बढ़ रहा है’, ऐसा ढोल पीटा जा रहा है। सामाजिक माध्यमों पर सतत डेरा जमाए बैठी टोलियां भावनात्मक उन्माद का माहौल बना रही हैं। जी-२० का आयोजन कर विश्वभर से आए राष्ट्रप्रमुखों की आवभगत करके मानो देश की सारी समस्याएं और प्रश्न खत्म हो गए हैं, ऐसी आभासी तस्वीर निर्माण करने में भक्त मंडलों की टोलियों के मशगूल रहते महाराष्ट्र के खासकर मराठवाड़ा, विदर्भ के त्रस्त किसान फांसी लगाकर व जहरीली दवाएं खाकर आत्महत्या कर रहे हैं। हजारों करोड़ रुपए खर्च कर आयोजित जी-२० शिखर सम्मेलन का यशगान करनेवाले पंडितों के मुंह से अपने ही क्षेत्र के किसानों में बढ़ती आत्महत्या पर एक शब्द भी नहीं फूट रहा। महाराष्ट्र में गद्दार सरकार को अब भी किसानों की आत्महत्या को लेकर कोई शर्म बची है क्या? राज्य में किसानों की आत्महत्याओं का सिलसिला ही शुरू हो गया है। लेकिन घाती सरकार में एक भी मंत्री-संत्री इस पर बोलने को तैयार नहीं। एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप करने में ही मगन इस तीन पैरों वाली सरकार के पास किसानों के लिए समय है ही कहां? तकरीबन ४० दिनों तक बरसात के मुंह फेरने से राज्य के अधिकांश हिस्सों में खरीफ फसल का समय किसानों के हाथ से निकल चुका है। सूखी जमीन पर कपास, सोयाबीन, मक्का आदि फसलें किसानों की आंखों के सामने बर्बाद हो गर्इं। चार दिनों पहले थोड़ी-बहुत बरसात हुई, लेकिन फिर दो दिनों से कड़ी धूप हो रही है। मूसलाधार बरसात वाले अगस्त महीने में भी गर्मी की तरह सूखा पड़ा रहा, इसलिए मराठवाड़ा-विदर्भ, उत्तर महाराष्ट्र व पश्चिम महाराष्ट्र के कई जिलों में सूखे की स्थिति पैदा हो गई है। यह संकट साधारण नहीं है। सितंबर का आधा महीना बीत चुका है। मानसून के अब आखिरी १५ दिन ही बचे हैं। दो दिन की फुहारों के बाद बारिश फिर से गायब हो गई है। पिछले साल इसी महीने में राज्य के सभी जलाशय लबालब हो गए थे। मराठवाड़ा में जायकवाड़ी सहित कई जलाशय लबालब होकर बह रहे थे। इस वर्ष हालांकि सभी जलाशय व छोटी-बड़ी परियोजनाओं में जल संचयन ४० फीसदी से नीचे है। बरसात में ही कुएं व तालाबों का जलस्तर नीचे पहुंच गया है इसलिए गर्मी तक वैâसे गुजारा होगा और खेती, फसल व बाग-बगीचे को वैâसे बचाया जाए, इसकी चिंता ने किसानों की नींद उड़ा दी है। खरीफ फसल के लिए किसानों ने गांव के ही साहूकारों से उधार लेकर फसल की बुआई की थी। सूखे की परिस्थिति में उधार पर उधार लेकर की गई बुआई तो बर्बाद हुई ही, लेकिन सीमित समय के तौर पर लिए गए कर्ज को वापस वैâसे करें, यह सवाल किसानों के समक्ष है। इस असमंजस में ही रविवार को छत्रपति संभाजीनगर जिले में तीन किसानों ने अपनी जान दे दी। कन्नड़ तालुका के हतनूर के किसान दिनकर बिडवे ने अपने घर में ही फांसी लगा ली। फुलंब्री तालुका में माणिकराव पाटोले और वैजापुर में अरविंद मतसागर इन किसानों ने जहर खाकर आत्महत्या कर ली। पिछले आठ महीनों में मराठवाड़ा में ६८५ किसानों ने आत्महत्या की। किसानों द्वारा आत्महत्या की यह उच्च दर शर्म से सिर को झुकानेवाली है। हर दिन औसतन तीन किसान आत्महत्या कर रहे हैं और बहुत कम बारिश के चलते मराठवाड़ा पर छाए सूखे के भीषण संकट को देखते हुए आत्महत्या का प्रमाण बढ़ने का खतरा है। अत्यधिक अवसाद और हताशा के कारण मराठवाड़ा के किसान रोज मृत्यु को मजबूर हैं, तो वहीं घातियों का ‘खोके सरकार’ मंत्रिमंडल, बैठक के लिए मराठवाड़ा में आ रहा है। जीवन समाप्त करने के लिए निकले मराठवाड़ा के गरीब किसानों की मदद के लिए इस बैठक से कुछ ‘खोके’ खर्च होंगे क्या?