चीन ने भारत की २००० किमी से ज्यादा जमीन हथिया ली है। यानी चीन ने बिना किसी आक्रमण के भारत की धरती पर कदम जमा दिया। इस पर प्रधानमंत्री मोदी ने अमेरिकी धरती से चीन को अप्रत्यक्ष चेतावनी देने का पराक्रम किया है। इस पराक्रम के लिए हमारे प्रधानमंत्री को वीरचक्र से सम्मानित करने में कोई समस्या नहीं है। मोदी ‘क्वाड’ देशों के एक समूह को संबोधित करने अमेरिका गए थे। उनकी अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन व अन्य नेताओं से मुलाकात की तस्वीरें जारी की गई हैं। इस समारोह में मोदी ने जो विचार व्यक्त किए उनमें से कुछ क्लिष्ट और बेकार हैं। उन्होंने चीन का नाम लिए बिना चेतावनी देते हुए कहा, एक स्वतंत्र, खुला और समावेशी हिंद-प्रशांत क्षेत्र हमारी प्राथमिकता है। तो क्या उनकी खोखली चेतावनी चीन तक पहुंच गई? चीन, भारत की सीमा पार कर घुसपैठ करे और हम चीन का नाम लिए बगैर चेतावनी दें। यह राष्ट्रीय स्वाभिमान का एक रूप नहीं है। पाकिस्तान के बाबत मोदी और अमित शाह अक्सर नाम लेकर धमकियां देते हैं, लेकिन चीन के मामले में नाम लेने की हिम्मत नहीं दिखाते। मोदी अमेरिका में हैं, जबकि गृहमंत्री अमित शाह कश्मीर चुनाव में पाकिस्तान का नाम लेकर सबक सिखाने की बात कर रहे हैं। कश्मीर में एक चुनावी सभा में गृहमंत्री शाह ने कहा, ‘आतंकवाद खत्म होने तक पाकिस्तान से कोई चर्चा नहीं होगी। पाकिस्तान को सबक सिखाने और शांति के लिए जम्मू-कश्मीर में भाजपा का सत्ता में आना जरूरी है।’ गृहमंत्री का यह बयान सत्ता हासिल करने के लिए आंखों में धूल झोंकने जैसा है। उनका कहना है कि आतंकवाद के खात्मे तक पाकियों से कोई चर्चा नहीं होगी। इसका मतलब यह है कि गृहमंत्री ने स्वीकार किया कि वह मोदी शासन के दस वर्षों में कश्मीर में शांति नहीं ला सके। पुलवामा मोदी काल में हुआ। चालीस जवानों की शहादत के पीछे कौन है? इसकी जांच भी शाह नहीं कर सके। धारा-३७० हटाई और उसका राजनीतिक श्रेय लिया, लेकिन कश्मीर में अशांति और आतंकवाद जारी है। ये सब पाकिस्तान कर रहा है और पाकिस्तान के पास चीन की ताकत है। इसलिए गृहमंत्री शाह को चीन के साथ-साथ पाकिस्तान को भी हड़काना चाहिए, लेकिन चीन का नाम लेने में उनके हाथ-पैर कांपने लगते हैं और दूसरी तरफ हलक फटने तक चीख-चीख कर पाकिस्तान को चेतावनी दे रहे हैं। इस तरह से दो अंकी नाटक चल रहा है। भाजपा के अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने यह भी आरोप लगाया कि कांग्रेस और नेशनल कॉन्प्रâेंस देश विरोधी पार्टियां हैं और ये दोनों पार्टियां जम्मू और कश्मीर में पाकिस्तान का एजेंडा लागू कर रही हैं। इसके लिए उन्होंने पाकिस्तान के रक्षामंत्री की गवाही का संदर्भ दिया है। वास्तव में पाकिस्तान का एजेंडा क्या है? यह बात एक बार स्पष्ट हो जाए। पाकिस्तान के कुछ नेता बयान दे रहे हैं कि जम्मू-कश्मीर में चुनाव के बाद भाजपा को मदद मिलेगी। यह बार-बार देखा गया है कि वहां कुछ लोग भाजपा के वेतनभोगी नौकरों की तरह व्यवहार और बातचीत करते हैं। पाकिस्तान का एजेंडा भारत में मोदी की मदद करना है और कुछ शीर्ष नेताओं को इसका फायदा मिल रहा है। क्या इसमें संदेह की गुंजाइश है कि मोदी के लाडले उद्योगपतियों के व्यापार और उद्योग बांग्लादेश, पाकिस्तान में हैं और वे ही पर्दे के पीछे से ये सारे ताने-बाने बुन रहे हैं। दरअसल, देश में लागू किया जा रहा चीन का एजेंडा पाकिस्तान के एजेंडे से ज्यादा चिंताजनक है। पाकिस्तान, चीन की ही औलाद है। चीन ने भारत की सीमा से लगे सभी देशों में अपने हाथ-पैर पैâला दिए हैं। सीमा पर कोई भी देश भाजपा का मित्र नहीं है और अब चीनी कठपुतली अनुरा कुमारा दिसानायके श्रीलंका के नए राष्ट्रपति बन गए हैं। इसका मतलब है कि अब चीनी आरमर मालदीव, श्रीलंका, बांग्लादेश के समुद्र में डेरा डालेगा और भारत को चुनौती मिलेगी। प्रधानमंत्री मोदी, गृहमंत्री शाह और रक्षामंत्री राजनाथ सिंह इस संकट के बारे में बात नहीं करते हैं, लेकिन पाकिस्तान के खिलाफ जमकर शब्द उछालते हैं। चीन ने भारत की सभी सीमाओं पर कब्जा जमा लिया है। लद्दाख, अरुणाचल में घुसपैठ कर ली है। चीन पर सर्जिकल स्ट्राइक के बजाय केंद्रीय कैबिनेट की तिकड़ी पाकिस्तान को धमकी दे रही है। दूसरे शब्दों में कहें तो जख्म पैर पर है और प्लास्टर पेट पर कर दिया है। अमेरिका में खड़े होकर मोदी बिना नाम लिए अप्रत्यक्ष रूप से चीन को चेतावनी देते हैं। चीन ने २००० किमी जमीन निगल ली है, फिर भी न प्रधानमंत्री का खून खौलता है, न गृहमंत्री को गुस्सा आता है और न ही भाजपा के अंधभक्तों की देशभक्ति उफान मारती नजर आ रही है। डरपोक कहीं के!