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जलवायु परिवर्तन का मछलियों पर असर … मुंबई के समंदर से गायब हुईं सुरमई, रावस! … मच्छीमारी में ५० प्रतिशत की गिरावट

सामना संवाददाता / मुंबई
जलवायु परिवर्तन का असर दिखाई देने लगा है। समुद्री मछलियां भी अन्य जीवित चीजों की तरह ही बढ़ती गर्मी से प्रभावित हुई हैं। सुरमई, रावस जैसी मछली तकरीबन गायब हो गई हैं। समुद्र में मछली मारने की अवधि पर प्रतिबंध लागू होने से पहले मच्छीमारी में पचास प्रतिशत की गिरावट आई है। इसलिए अब कोली समुदाय के सामने यह सवाल है कि बरसात के मौसम में ताजी मछलियां सहित सूखी मछलियां लगती हैं, उसे कहां से लाएं?

हर साल इन दिनों सुरमई, रावस, करंदी मछलियां भारी मात्रा में उपलब्ध होती थीं। इस साल उक्त मछलियां नाममात्र ही रह गई हैं। छोटे पापलेट प्राप्त होते हैं, लेकिन उनमें अधिक स्वाद नहीं होता है। बोंबिल भी जाल में नहीं आ रही है। जलवायु परिवर्तन के कारण मछली मिलने में कमी आई है।
१ जून से मच्छीमारी होगी बंद
१ जून से मछली मारने पर प्रतिबंध लगेगा। इस साल अप्रैल और मई दोनों महीने सूखे हो गए हैं, जिससे मछुआरों की चिंता बढ़ गई है। अप्रैल के महीने में खूब मछलियां मिलती हैं। बरसात के दिनों में ताजी मछली के साथ सूखी मछली भी परोसी जाती है। तेज गर्मी होने के कारण मछलियां न मिलने पर बारिश में क्या करेंगे? ऐसा सवाल मछली पकड़ने और बेचने का व्यवसाय करने वाले हर्षा टपके ने किया है।
ईडी सरकार नहीं है गंभीर
जलवायु परिवर्तन का मत्स्य व्यवसाय पर भारी पैमाने पर प्रभाव पड़ता है। इस पर विचार किया जाना चाहिए, लेकिन मत्स्य व्यवसाय को उतनी गंभीरता से नहीं लिया जाता, जितनी गंभीरता से सरकार कृषि को लेती है।
समिति गठित करने की मांग
जलवायु परिवर्तन के साथ समुद्री जीवन पर बाहरी कारकों के प्रभाव का अध्ययन करने के लिए अनुभवी कोली भाइयों के साथ एक विशेष समिति गठित करने की निरंतर मांग की जा रही है। अगर यही स्थिति बनी रही तो भविष्य में मछली पकड़ने का मुख्य व्यवसाय के रूप में नहीं रह जाएगा, जो चिंता का विषय है, ऐसा कोली महासंघ के महासचिव राजहंस टपके ने कहा।

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