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अनुच्छेद ३७० हटाने के ५ साल बाद भी कश्मीर को हिंसा से मुक्ति नहीं मिली

• औसतन प्रतिदिन एक मौत को देख रहा है कश्मीर
सुरेश एस डुग्गर / जम्मू
इस महीने की पांच तारीख को कश्मीर में जिस अनुच्छेद ३७० को हिंसा का प्रमुख कारण बताते हुए हटा दिया गया था, उसके ५ साल बीत जाने के बाद भी कश्मीर को हिंसा से मुक्ति नहीं मिल पाई है। हिंसा में कमी तो आई है, पर आज भी कश्मीर प्रतिदिन एक मौत को देखने को मजबूर है।

इसकी पुष्टि खुद सरकारी आंकड़े करते थे। आंकड़े बताते हैं कि २०१९ से लेकर १ अगस्त २०२३ तक के ५ साल के अरसे में कश्मीर ने १,२७७ मौतें देखी हैं। हालांकि, इनमें सबसे बड़ा आंकड़ा आतंकियों का ही था, जिनके विरुद्ध कई तरह के ऑपरेशन चला कर उन्हें मैदान से भाग निकलने को मजबूर किया गया। लेकिन नागरिकों व सुरक्षाबलों की मौतेंं भी यथावत हैं। आंकड़े कहते हैं कि ८१९ आतंकी इस अवधि में ढेर कर दिए गए तो इसी अवधि में २२२ सुरक्षाकर्मियों को शहादत देकर इस सफलता को प्राप्त करना पड़ा। आतंकियों द्वारा नागरिकों को मारने का सिलसिला भी यथावत जारी था। हालांकि, पुलिस के दावानुसार इस अवधि में कोई भी नागरिक कानून व्यवस्था बनाए रखने की प्रक्रिया के दौरान नहीं मारा गया, बल्कि इन ५ सालों में जो २३६ नागरिक मारे गए उन्हें आतंकियों ने ही मार डाला। इतना जरूर था कि अनुच्छेद ३७० हटाए जाने के बाद आतंकियों के सबसे अधिक हमले प्रवासी नगरिकों के साथ-साथ हिंदुओं पर भी हुए हैं, जो लगातार जारी हैं। पिछले साल पांच अगस्त की बरसी की पूर्व संध्या पर भी आतंकियों ने पुलवामा में ग्रेनेड हमला कर एक बिहारी श्रमिक की जान ले ली थी।

अगर इन आंकड़ों पर जाएं तो कश्मीर ने प्रतिदिन औसतन एक मौत देखी है और आतंकियों व अन्य मौतों के बीच २:१ का अनुपात रहा है। अर्थात अगर दो आतंकी मारे गए तो एक सुरक्षाकर्मी व नागरिक भी मारा गया। पहले यह अनुपात ३:२ का था, जबकि इस अवधि में प्रदेश में ६१४ आतंकी वारदातें हुई हैं, जिनमें कुल १,२७७ मौतें हुई हैं। अर्थात यह अनुपात १:२ का रहा है। इतना जरूर था कि ५ अगस्त की कवायद के उपरांत कश्मीर में आतंकवाद का चेहरा भी बदल गया है। अब कश्मीर हाइब्रिड आतंकियों की फौज से जूझने को मजबूर है, जो सुरक्षाबलों के लिए एक बड़ी चुनौती साबित हो रहे हैं।

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