मनोज श्रीवास्तव / लखनऊ
लोकसभा चुनाव में मिली हार से उत्तर प्रदेश भाजपा के कार्यकर्ता हतोत्साहित हो गए हैं।इतनी बड़ी मिली हार के बाद भी प्रदेश अध्यक्ष के रवैए में कोई परिवर्तन नहीं आ रहा है। लोकसभा चुनाव में 80 में 80 सीट जीतने का दावा करने वाले प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह के गृह क्षेत्र में भाजपा बुरी तरह पराजित हुई।
उनकी स्थानीय मुरादाबाद लोकसभा सीट पर भी भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। कार्यकर्ताओं से मिलने में प्रदेश अध्यक्ष की सुस्ती ने यूपी में भाजपा की वाट लगा दिया, लगातार कार्यकर्ताओं ने उपेक्षा का आरोप लगाया उसके बाद भी अध्यक्ष प्रदेश मुख्यालय में आने वालों से मिलने से कतराते हैं। सोमवार को पार्टी के राष्ट्रीय कार्यक्रम हर घर तिरंगा की तैयारी के लिये बैठक थी, जिसमें प्रदेश के सभी जिला-महानगरों के 98 अध्यक्ष, 98 प्रभारी, क्षेत्रीय अध्यक्ष व प्रभारी के अलावा अन्य महत्वपूर्ण पदाधिकारियों की बैठक थी।
बड़ी संख्या में आये नेता और कार्यकर्ता अध्यक्ष के कमरे के बाहर बने प्रतिक्षालय कक्ष में इंतजार करते-करते सो गए। अपने खास रणनीतिकारों जिनके सलाह से 80 में 80 जीतने निकले थे, उन्हीं से घिर कर रह गए। उनके कमरे के बाहर बैठे कई लोग सोकर उठे तो उन्हें पता चला अध्यक्ष जी यहां से चले गए। घर वह केवल उन्हीं लोगों से मिलेंगे, जिनको टाइम देते हैं या जो उनकी काकस का अनुयाई हो। कई लोग यह कहते सुने कि जाट के नाम पर ठाट काटने वाले अध्यक्ष जी पिछले दस वर्षों में सबसे बड़ी पराजय दिलवाए हैं। इसलिए कहीं विधानसभा की 10 सीटों पर होने वाले चुनाव के पहले सुस्ती तोड़ दिए तो परिणाम सुधर जाएगा। लोकसभा चुनाव में सपा-कांग्रेस के सामने खास कर सपा की रणनीतिक के आगे भाजपा नेतृत्व हार गया।
अखिलेश यादव ने चुनाव के दौरान नरेंद्र उत्तम और श्याम लाल पाल को प्रदेश अध्यक्ष बना कर कुर्मी और पाल वर्ग का वोट तोड़ लिया, जो लोकसभा चुनाव के पूर्व तक पारम्परिक रूप से भाजपा के वोटर होते थे, लेकिन भाजपा 4 लोकसभा सीटों के चक्कर में जाट प्रदेश अध्यक्ष ढोती रही। जिसका दुष्परिणाम आज पूरी पार्टी भुगत रही है। यदि उपचुनाव के पहले यूपी के सुस्त प्रदेश अध्यक्ष को बदला नहीं गया तो 10 सीटों पर हो रहे उपचुनाव में 2 विधानसभा भी भाजपा नहीं जीत पाएगी। इस अध्ययन के रहते कार्यकर्ताओं के पस्त हौसले वापस होना नामुमकिन सा लगता है।