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फेंसिंग और लोहे की ग्रिल भी नहीं रोक पाई हिमलिंग को पिघलने से

अब श्राइन बोर्ड को अत्याधुनिक तकनीक का है सहारा
सुरेश एस डुग्गर / जम्मू
अमरनाथ यात्रा श्राइन बोर्ड के सारे अनुमान धरे के धरे रह गए हैं। हिमलिंग को बचाने के लिए जिस लोहे व शीशे की ग्रिल का सहारा लिया गया था वह भी पिघलने से नहीं बचा पाया, क्योंकि इस बार १८ फुट का हिमलिंग पिघल कर अब अंतर्ध्यान हो चुका है। ऐसा भक्तों की सांसों की गर्मी के साथ-साथ ग्लोबल वार्मिंग के कारण भी हुआ बताया जा रहा है। अब इससे निपटने का तरीका अत्याधुनिक तकनीक का ही सहारा है। पर श्राइन बोर्ड फिलहाल तकनीक का सहारा क्यों नहीं ले पा रहा है इसके पीछे के कारण स्पष्ट नहीं हैं।

श्राइन बोर्ड के अधिकारियों के अनुसार, अमरनाथ की गुफा को तकनीक के सहारे ठंडा और वातानुकूलित बनाने की योजना श्राइन बोर्ड ने उसी समय तैयार की थी, जब वह अस्तित्व में आया था। लेकिन यह मामला कई साल तक कोर्ट में रहा, जिस कारण श्राइन बोर्ड इस संबंध में कोई कदम उठाने से परहेज कर रहा है।

वे कहते हैं कि गुफा को पूरी तरह से वातानुकूलित करने, आइस स्केटिंग रिंक तकनीक का इस्तेमाल करने की योजना है। इसी के तहत कई अन्य प्रस्तावों पर भी विचार किया गया था, जिनमें एयर कर्टन, रेडियंटस कूलिंग पैनलस और प्रâोजन ब्राइन टेट्ठ का इस्तेमाल भी था। उनका कहना था कि इनमें से कई तकनीकों का सफल प्रयोग मुंबई, श्रीनगर तथा गुलमर्ग में कर लिया गया था, लेकिन अमरनाथ गुफा में इनका प्रयोग करने से पूर्व ही माननीय कोर्ट ने इन सब पर रोक कुछ साल पहले लगा दी थी, जब गुफा में कथित तौर पर कृत्रिम हिमलिंग बनाने का मामला उठा था। हालांकि, वे कहते थे कि श्राइन बोर्ड के अधिकारियों को रेडियंट कूलिंग पेनलस का विकल्प बहुत ही जायज लगा था, लेकिन हाईकोर्ट द्वारा इस पर रोक लगा दिए जाने के कारण मामला अंतिम चरण में जाकर रुक गया था।

विशेषज्ञों के मुताबिक, अमरनाथ ग्लेशियरों से घिरा है। ऐसे में ज्यादा लोगों के वहां पहुंचने से तापमान के बढ़ने की आशंका होगी। इससे ग्लेशियर जल्दी पिघलेंगे। साल २०१६ में भी भक्तों की ज्यादा भीड़ अमरनाथ पहुंचने से हिमलिंग तेजी से पिघल गया था। आंकड़ों के मुताबिक, उस वर्ष यात्रा के महज १० दिन में ही हिमलिंग पिघलकर डेढ़ फीट के रह गए थे। तब तक महज ४० हजार भक्तों ने ही दर्शन किए थे। साल २०१६ में प्राकृतिक बर्फ से बनने वाला हिमलिंग १० फीट का था। जो अमरनाथ यात्रा के शुरुआती सप्ताह में ही आधे से ज्यादा पिघल गया था। ऐसे में यात्रा के शेष १५ दिनों में दर्शन करने वाले श्रद्धालु हिमलिंग के साक्षात दर्शन नहीं कर सके थे। साल २०१३ में भी अमरनाथ यात्रा के दौरान हिमलिंग की ऊंचाई कम थी। उस वर्ष हिमलिंग महज १४ फुट के थे। लगातार बढ़ते तापमान के चलते वे अमरनाथ यात्रा के पूरे होने से पहले ही अंतरध्यान हो गए थे। मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार, साल २०१३ में हिमलिंग के तेजी से पिघलने का कारण तापमान में वृद्धि था। उस वक्त पारा ३४ डिग्री सेल्सियस के पार पहुंच गया था।

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