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शिवालय की हर सीढ़ी लाती है सुखों के करीब : गौदुग्ध से प्रगट हुआ था, मुंबई का दिव्य शिवलिंग!…. बाबुलनाथ के स्वयंभू शिव करते हैं मनोरथपूर्ति

आज महाशिवरात्रि का पर्व देशभर में धूमधाम से मनाया जाएगा। सनातन धर्म को माननेवाले शिवभक्त शिवालयों की सीढ़ियां चढ़ेंगे। अपने आराध्य देव के दर्शन और अभिषेक के लिए चढ़े सीढ़ी के हर पायदान के साथ वे इस जीवन में मिलनेवाले हर एक सुख के नजदीक पहुंचेंगे, इस मान्यता को मूर्तरूप देना ही उनकी मनोकामना होगी। जय भोलेनाथ!

रवींद्र मिश्रा / मुंबई
हिंदुओं के महापर्व महाशिवरात्रि को पूरे हिंदुस्थान में धार्मिक अनुष्ठान एवं भक्तिभाव के वातावरण में मनाया जाता है। यह भक्तिभाव मुंबई के सुप्रसिद्ध शिव मंदिर बाबुलनाथ में भी देखने को मिला। यहां का शिवलिंग स्वयंभू होने से इस मंदिर की मान्यता अधिक है इसलिए यहां महाशिवरात्रि पर भक्तों की भीड़ ज्यादा होती है। मंदिर के प्रबंधक मुकेश कनोजिया बताते हैं कि यह उन दिनों की बात है, जब मुंबई सात पर्वत चोटियों पर कभी बसा करता था, तब यहां जंगल, पहाड़ ज्यादा थे। उस समय मुंबई में पारसी समुदाय का वर्चस्व था। एक पारसी सेठ दूध का व्यवसाय करते थे। उनकी गायों का दूध मुंबई में बेचा जाता था। उनकी गायें मलाबार हिल की पहाड़ियों पर चरने जाया करती थीं। उन गायों को चराने का काम बाबुल (बाबल्या) नामक एक चरवाहा किया करता था। जब शाम को सभी गायों का दूध निकाला जाता तो उनमें से एक गाय दूध दुहने के समय अपनी टांगें हटा देती। कुछ दिनों तक यह दृश्य देखने के बाद उस सेठ ने बाबुल से कहा कि इस गाय पर नजर रखो। दूध दुहने के समय गाय टांग क्यों हटा लेती है? बाबल्या ने देखा कि दोपहर १२ बजे वह गाय अपने समूह से हटकर एक अन्य दिशा की ओर चल पड़ी। बाबुल भी उसके पीछे-पीछे चलने लगा। एक पेड़ के नीचे गाय जाकर खड़ी हो गई। अचानक गाय के थन से दूध की धार एक पत्थर पर गिरने लगी। बाबुल इस दृश्य को देखकर भूत-प्रेत की आशंका से डर गया और उसने सारी बात अपने मालिक को बताई। पहले तो मालिक को उसकी बात पर यकीन नहीं हुआ लेकिन जब उन्होंने स्वयं वहां जाकर देखा तो सच्चाई सामने आ गई। जब वहां के घास-फूस की सफाई की गई तो वहां एक स्वयंभू शिवलिंग मिला। मालिक ने बहुत प्रयास किया कि इस शिवलिंग की खुदाई कर कहीं बढ़िया मंदिर बनाकर शिवलिंग की स्थापना की जाए। लेकिन जैसे-जैसे खुदाई की जाती शिवलिंग नीचे धंसता जाता। अंतत: थक-हारकर निर्णय लिया गया कि यहीं पर मंदिर बनाकर भगवान भोलेनाथ को स्थापित कर दिया जाए। सबसे पहले इसे बाबल्या (बाबुल) ने इसे देखा था इसलिए इसका नाम बाबुलनाथ पड़ा।

३०० साल से अधिक पुराना है बाबुलनाथ मंदिर
पुराना मंदिर होने के नाते भक्तों की आस्था इस मंदिर के प्रति ज्यादा है। शिवभक्त कल रात से ही कतार में दर्शन के लिए खड़े हो गए थे। भक्तों की सुरक्षा के लिए ५० से ज्यादा सीसीटीवी वैâमरे लगाए गए हैं। ३०० से ज्यादा पुलिसकर्मी तैनात किए गए हैं। मंदिर की सुरक्षा व्यवस्था देखनेवाले डी.डी. त्रिपाठी ने बताया कि प्रत्येक ८ घंटे के लिए २०० सुरक्षा रक्षक तैनात किए गए हैं। सीनियर सिटीजन, दिव्यांगजन तथा गर्भवती महिलाओं के लिए अलग से कतार की व्यवस्था है। सैकड़ों साल पहले बने इस मंदिर में भगवान के दर्शनों के लिए १०८ सीढ़ियां चढ़कर जाना पड़ता है। इसके अलावा यहां मात्र एक रुपए खर्च पर भक्तों के लिए लिफ्ट तथा ई-व्हीकल की सुविधा भी की गई है। मंदिर की सीढ़ियों पर बाबा जगन्नाथ गिरी की ओर से शिवभक्तों के लिए साबूदाना खिचड़ी की व्यवस्था की गई है।

सीढ़ियों पर कपूर जलाने से पूर्ण होती है मनोकामना
भक्तों का मानना है कि बाबुलनाथ मंदिर की सीढ़ियों पर सोमवार के दिन अगर कोई भक्त पान के पत्ते पर कपूर जलाता है तो उसकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है। यह क्रिया भक्त पांच सोमवार या इससे अधिक बार भी करते हैं। सुबह-शाम यहां भक्तों को पान के पत्तों पर सोमवार को अक्सर कपूर जलाते देखा जा सकता है।

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